
जौनपुर । परिषदीय स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था लड़खड़ा गई है। सभी जिद्दोजहद कागजी बनकर रह गई। सरकारी स्कूलों की प्राथमिक शिक्षा पटरी पर नही लौट पाई। शैक्षणिक सत्र का पहला माह अप्रैल बीता। गर्मी की छुट्टी बीत गई। इधर 2 जुलाई को स्कूल खुले तो यह माह भी पूरा बीत गया। अगस्त माह शुरू हो गया है।अभी तक पचास फीसद बच्चों के लिए भी किताब शासन से आवंटित नही हो पाई है। दो प्रयास में कुल 27 फीसद किताबों की आपूर्ति विभाग को मिल पाई है। 63 फीसद किताब का इंतजार अभी भी है। स्कूलों में किताब न पहुंचने से परिषदीय बच्चे अभी नए पाठ्यक्रमों के बारे में ठीक से जान भी नही पाए है। उन्हें नई किताब का दर्शन नही हुआ है। सरकारी स्कूलों में बेहतर पढ़ाई का दावा झूठा साबित हो रहा है। अधिकांश स्कूलों में अभी तक पठन-पाठन का माहौल ही सृजित नही हो पाया है। बच्चे स्कूल में मध्याह्न भोजन करने तक सीमित है। पूरा दिन स्कूल में खेलकूद में बीत रहा है। शिक्षक भी किताब न होने की आड़ में मौज कर रहे है। शिक्षा का स्तर निम्न बना हुआ है। जिस तेजी से सरकारी स्कूलों की शिक्षा सुधारने की कवायद छिड़ी थी उस हिसाब सुधार आखिरकार नही हो पाया। इस सत्र में भी नौनिहालों का भविष्य अंधकारमय बना हुआ है। न जाने कब व्यवस्था रहम बरसाएगी और बच्चे नई पुस्तकों का दर्शन पाएंगे। जिम्मेदार भी बेफिक्र है। प्राप्त पुस्तकों का वितरण कराकर फुर्सत में हो लिए। पुस्तक न आने से सर्वाधिक नुकसान जूनियर बच्चों का हो रहा है। कक्षा 6 से 8 तक की पढ़ाई बगैर किताब के संभव नही हो पा रही है। पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में बच्चों की पढ़ाई चैपट हो रही है। नए पाठ्यक्रमों की पुस्तकों के इंतजार में अगस्त माह का पहला सप्ताह भी गुजर गया है। अभी हिदी, गणित, विज्ञान, अंग्रेजी जैसे महत्वपूर्ण विषयों की पढ़ाई ही नही शुरू हो पा रही है। बस किसी तरह स्कूल खोलकर रस्म अदायगी की जा रही है। पढ़ने और पढ़ाने की बात सिर्फ कहने सुनने तक है। बच्चों की पढ़ाई का एक अध्याय भी शुरू नही हो पाया है।