तो इसलिये पसन्द है शिव को सावन मास
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जौनपुर । पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सृष्टि के आरंभ से ही ब्रह्मा, विष्णु व महेश इस सृष्टि की रक्षा करते आ रहे हैं। सावन के प्रारंभ होने से ठीक पहले विष्णु जी देवशयनी एकादशी पर योग निद्रा में चले जाते हैं और सृष्टि के पालन की सारी जिम्मेदारियों से मुक्त होकर पाताल लोक में विश्राम करने लगते हैं। उधर सावन के प्रारंभ होते ही भगवान शिव जागृत हो जाते हैं और माता पार्वती के साथ पृथ्वीलोक का सारा कार्यभार संभाल लेते हैं। इसीलिए इस माह में उनकी पूजा का महत्व बढ़ जाता है। सावन के महीने में भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकला विष पीकर सृष्टि की रक्षा की थी। इसी के चलते सावन का महीना शिवजी की पूजा के लिए शुभ माना जाता है। सावन का महीना शिव जी को प्रिय होने के और भी वजह हैं। इसी तरह सावन महीने में देवी सती ने पिता दक्ष के घर योग शक्ति से शरीर त्यागने से पूर्व शिव जी को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। इसलिए उन्होंने अपने दूसरे जन्म में पार्वती के रूप में भगवान शिवजी की पूजा की और सावन के महीने में कठोर तप किया इसके बाद उन्हें शिव जी की पत्नी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। सावन से प्रारंभ कर सोलह सोमवार के व्रत करने से कन्याओं को सुंदर पति मिलते हैं तथा पुरुषों को सुंदर पत्नियां। इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हिदू वर्ष में महीनों के नाम नक्षत्रों के आधार पर रखे गए हैं। जैसा पहला माह चैत्र होता है जो चित्रा नक्षत्र से संबंधित है। इसी तरह सावन महीना श्रवण नक्षत्र से संबंधित है। श्रवण नक्षत्र का स्वामी चंद्र होता है और चंद्रमा शंकर जी के मस्तक पर सुशोभित है। जब सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करता है तब सावन महीना प्रारंभ होता है।