केराकत में जलाभिषेक के लिए जाते कांवरिये।

जौनपुर । कहते हैं, पहले कांवड़िया रावण थे। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने भी सदाशिव को कांवड़ चढ़ाई थी। आनंद रामायण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि भगवान श्री राम ने कांवड़िया बनकर सुल्तानगंज से जल लिया और देवघर स्थित बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया। कंधे पर गंगाजल लेकर भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों पर चढ़ाने की परंपरा, ‘कांवड़ यात्रा’ कहलाती है। कहते हैं यह भक्तों को भगवान से जोड़ती है। महादेव को प्रसन्न कर मनोवांछित फल पाने के लिए कई उपायों में एक उपाय कांवड़ यात्रा भी है, जिसे शिव को प्रसन्न करने का सहज मार्ग माना गया है। कांवड़ तब बनती है, जब फूल-माला, घंटी और घुंघरू से सजे दोनों किनारों पर वैदिक अनुष्ठान के साथ गंगाजल का भार पिटारियों में रखा जाता है। धूप-दीप की खुशबू, मुख में ‘बोल बम’ का नारा, मन में ‘बाबा एक सहारा।’ भोले नाथ कांवर से गंगाजल चढ़ाने से सबसे ज्यादा प्रसन्न होते हैं। इसके पीछे मान्यता यह भी है कि जब समुद्रमंथन के बाद 14 रत्नों में विष भी निकला था और भोलेनाथ ने उस विष का पान करके दुनिया की रक्षा की थी। विषपान करने से उनका कंठ नीला पड़ गया और कहते हैं इसी विष के प्रकोप को कम करने के लिए, उसे ठंडा करने के लिए शिवलिंग पर जलाभिषेक किया जाता है और इस जलाभिषेक से शिव प्रसन्न होकर आपकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।सामान्य कांवड़िए कांवड़ यात्रा के दौरान जहां चाहे रुककर आराम कर सकते हैं। आराम करने के दौरान कांवड़ स्टैंड पर रखी जाती है, जिससे कांवड़ जमीन से न छूए। इस यात्रा में बिना नहाए कांवड़ यात्री कांवड़ को नहीं छूते। तेल, साबुन, कंघी की भी मनाही होती है। यात्रा में शामिल सभी एक-दूसरे को भोला, भोली या बम कहकर ही बुलाते हैं। जिले के लगभग सभी क्षेत्रो से होकर दर्शनार्थी भगवान भोले शंकर के शिवलिंग पर जलाभिषेक करने लोग जा रहे है।  जिसमें श्रद्धालु केसरिया रंग में वेशभूषा धारण कर नाचते गाते हर्षोल्लास के साथ देवस्थलीयों के लिए रवाना हो रहे है एवं वापसी कर रहे है । जिससे यहां के गलियों ,चैराहों व मुहल्लों में भक्तिमय माहौल बना हुआ है । जिसमें भगवान शिव के जयकारे ,बोल बम के नारे  के  उद्घोष  से पूरा क्षेत्र भक्ति के रस में डूबा हुआ है । जैसे लगता है कि हर गली मोहल्लों में शिव ही शिव हो ।

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