नाम किसी का दुकान चला रहा कोई और
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जौनपुर। जिले में संचालित राशन दुकानों में 100 से अधिक दुकानें खड़ाऊंराज के सहारे संचालित हैं। यानि नाम किसी का और दुकान कोई और चला रहा। इसे मजबूरी समझा जाए या कार्रवाई से बचने का नायाब तरीका, हो कुछ भी लेकिन खाद्यान्न माफिया खुद को बचाने के लिए अपनों के नाम राशन की दुकानें करा लेते हैं। यदि कहीं आरक्षण व अन्य विधिक मामला बाधा बना तो अपने शुभचितकों के नाम कोटे की दुकान आवंटित कराकर खुद संचालित करते हैं। ऐसे में रसूख के दम पर सरकारी राशन की कालाबाजारी का खेल जारी है। नियमतः कोटेदारों को आवंटित खाद्यान्न का मूल्य बैंक के माध्यम से जमा करना होता है। कई ऐसे कोटेदार हैं जिनकी आर्थिक स्थिति उतनी सही नहीं है कि वह कोटे के लिए आवंटित खाद्यान्न की धनराशि अपने पास से जमा कर सकें। ऐसे में वह किसी बलवान व धनवान से सहायता लेते हैं। बस यहीं से खेल शुरू हो जाता है। दूसरी तरफ कई कोटेदार ऐसे भी हैं जिनके सारे कागजी कोरम उनके आका पूरा करते हैं और धनराशि भी वही जमा करते हैं। असली कोटेदारों को केवल अंगूठा लगाना व हस्ताक्षर करना होता है। वैसे कोई भी कोटेदार अपने आकाओं के सामने सिर उठाने का साहस नहीं करता और न ही अधिकारियों व माननीयों के सामने जुबान खोलता है। समस्या उस समय आती है, जब जांच होती है और कोटेदार के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो जाता है। कभी-कभी तो ऐसे कोटेदार भी पुलिस की कार्रवाई की जद में आ जाते हैं जिन्हें कुछ मालूम ही नहीं होता। एक कोटेदार ने बताया कि उसके पास खाद्यान्न उठान के लिए पैसा नहीं था। उसने एक व्यक्ति से पैसा लिया तो सौदा ही हो गया। अब उसे पांच से दस हजार रुपये प्रतिमाह खाद्यान्न माफिया द्वारा दिया जाता है। विभाग के उच्चाधिकारी कहते हैं जिनके नाम कोटे की दुकान आवंटित है उन्हीं के खाते से ड्राफ्ट जमा कराए जाने का नियम है। यदि कोई कोटेदार शिकायत करेगा तो उस पर जांच कर कार्रवाई की जाएगी। अभी तक उनके संज्ञान में ऐसी कोई शिकायत नहीं आई है।