जौनपुर। कई महीने से मुंह के कैसर से पीड़ित और खाने पीने में असमर्थ रहे वरिष्ठ प्रेस छायाकार अनिल विश्वकर्मा का रविवार को तड़के उनके पैतृक आवास शकर मण्डी पर निधऩ हो गया। उनके निधन की खबर से जिले के पत्रकारों व छायाकारों में शोक की लहर दौड़ गयी । बड़ी सख्या मंे समाज के सभी वर्ग उनको अन्तिम विदायी देने के लिए उमड़ पड़े। उनका अन्तिम संस्कार रामघाट पर पूरे नागरिक सम्मान के साथ किया गया। जहां श्रद्धाजंलि व्यक्त करने के लिए पत्रकार, राजनेता, व्यापारी, अधिकारी , कर्मचारी सहित सैकड़ों लोग मौजूद रहे। आर्थिक रूप से कमजोर और अभावों से जूझते हुए कैसर से पीड़ित विश्वकर्मा इलाज के लिए कई बार मुम्बई और वाराणसी जाते रहे लेकिन उनकी हालत में सुधार नहीं हुआ। जिले के किसी राजनेता ने आर्थिक मदद दिलाने के लिए पहल नहीं किया जिससे उन्हे सरकारी स्तर की आर्थिक सहायता नहीं मिल सकी। सभी दलों के कार्यक्रमों और समारोह का कवरेज के करने के लिए इस कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार छायाकार को सर्वप्रथम याद किया जाता रहा लेकिन अपेक्षित आर्थिक सहायता दिलाने में न किसी पत्रकार संगठन ने कदम बढ़ाया न किसी राजनेता ने। कुछ लोगों ने व्यक्तिगत स्तर से जरूर सहायता किया जो उनकी बीमारी में ऊंट के मुंह में जीरा साबित हुई। उनके तीन पुत्रियों में एक का विवाह दो महीने पहले किसी प्रकार से हो गया था । ज्ञात हो कि अनिल विश्वकर्मा शहर के सभी जाति विरादरी, राजनैतिक दल, क्लबों, धार्मिक, शैक्षिक, सरकारी कार्यक्रमों का बढ़चढ़ कर बिना स्वार्थ और लालच के कवरेज करते रहे। चाहे देर रात तक के आयोजन हो या तड़के डाला छठ के दौरान उगते सूरज को अघ्र्य देने की फोटो ग्राफी रही हो। उसमें वे अग्रणी रहते थे। एक तीन साल पहले वे हनुमानघाट पर उगते सूरज को अघ्र्य देने की फोटो ग्राफी करते समय गोमती में गिर गये थे और उनका कैमरा खराब हो गया था। बड़े अखबारों के छायाकार भी उनसे फोटो लेने के लिए पीछे लगे रहते थे और वे उन्हे फोटो देते भी रहे। जूनून की सीमा तक फोटोग्राफी में तल्लीन रहने वाले ऐसे कर्मठ और सभी के प्रिय रहे अनिल विश्वकर्मा के निधन से जिले का मीडिया जगत शोकाकुल और व्यथित है।
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