|
फाइल फोटो |
जौनपुर। जनपद के प्रमुख डग्गामार माफिया की आड़ में कई छुटभैये भी पनप गए हैं। माफिया अब सिडीकेट बन चुका है। सिडीकेट में शामिल माफिया अलग-अलग राजनीतिक दलों में पहुंच रखते हैं, और लखनऊ से दिल्ली तक बदलती सियासी फिजा के लिहाज से सरकार के मेार्चे पर कमान संभालते हैं। जिले भर के विभिन्न सड़कों पर दर्जनों बसें रोजाना चार से पांच हजार लोगों को मौत के सफर पर रवाना करती है। जो यात्री मौत के मुंह से बच कर गंतव्य तक पहुंच जाते हैं, वह भाग्यशाली होते हैं। जो हादसे का शिकार होते हैं, उन्हें जरूरी नहीं है कि हर बार मुख्यमंत्री राहत कोष से अनुदान मिल ही जाए। इस प्रकार की कई बसें तो फिटनेस, इंश्योरेंस के बिना ही सरकार को चुना लगा रही हैं। कुछ की तो नंबर प्लेट तक फर्जी है। इन्हें तो चालान कटने या मुकदमा लिखने का भी कोई अंतर नहीं पड़ता। प्रशासन और पुलिस की मासिक यकजाई के अलावा हर नाके-चैकी का नजराना फिक्स है। विगत दो दशकों में डग्गामारी जनपद का प्रमुख व्यवसाय बन गया है। रोडवेज बस स्टेशन और उसके आसपास के क्षेत्र पर पूरी तरह से काबिज प्रमुख डग्गामार माफिया की छत्र-छाया में अब कई छुटभैये भी तेजी से डग्गामार बसों का बेड़ा बढ़ा रहे हैं। पूरी तरह सिडीकेट की तर्ज पर विकासित हो चुकी डग्गामारी अब नए आयाम पर है। रोजाना लाखों रुपये के शासकीय राजस्व को चूना लगा रही डग्गामार बसों के खिलाफ कार्रवाई के बजाय एआरटीओ रुटीन कामों में व्यस्तता के बहाने प्रवर्तन से भाग रहे हैं। इन डग्गामार बसों में सफर करने वाले यात्रियों को पता ही नहीं होता है कि वह कितना बड़ा जोखिम उठा रहे होते हैं। कई डग्गामार बसों के पास तो फिटनेस प्रमाणपत्र और बीमा तक नहीं होता है। कई के तो नंबर प्लेट तक फर्जी होते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें