पैथालाजी भी डाल रहे जोखिम में जान
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जौनपुर। नीम-हकीम ही नहीं झोलाछाप पैथालाजी संचालक भी खतरे जान बने हैं।
साधारण बीमारी में गंभीर रोग की जांच रिपोर्ट थमा देते हैं। जिसे लेकर
मरीज और तीमारदार चिकित्सकों के यहां भागता फिरता है। रिपोर्ट के आधार पर
उल्टी-सीधी दवाओं के सेवन से पीड़ित की हालत गंभीर हो जाती है। समय रहते न
चेतने वालों को जान से भी हाथ धोना पड़ता है।
जनपद में नीम-हकीम की तरह फर्जी पैथालाजी व अल्ट्रासाउंड केंद्रों की भी भरमार है। अधिकांश का जहां पंजीकरण नहीं है वहीं पंजीकृत केंद्रों पर नामित विशेषज्ञ सेवा नहीं देते। उनकी डिग्री लगाकर लाइसेंस तो ले लिया गया है लेकिन जांच अप्रशिक्षित लोगों के हाथों किया जाता है। सामान्य बीमारी में टीबी, मलेरिया, डेंगू की रिपोर्ट पाकर पीड़ित घबरा जाता है। अधिकांश जांच रिपोर्ट में बचने के लिए संभावित बीमारी बता देते हैं। रिपोर्ट के आधार पर उपचार में जहां आर्थिक क्षति उठानी पड़ती है वहीं उल्टी-सीधी दवाओं के सेवन करने पर स्थिति नाजुक हो जाती है। जान से भी हाथ धोना पड़ता है। कुछ चिकित्सक एक केंद्रों पर मरीजों पर भेजते हैं तो तमाम कमीशन मिलने पर रिपोर्ट को गलत नहीं बताते। इतना ही नहीं ग्रामीण अंचल के कई अल्ट्रासाउंड केंद्र संचालक भ्रूण की जांच करके भी मनमाना कमाई कर रहे हैं। विभागीय सूत्रों के अनुसार जिले में पंजीकृत 196 पैथालाजी, 73 अल्ट्रासाउंड केंद्रों में पचास फीसद से अधिक पर लाइसेंस में अंकित विशेषज्ञ न तो बैठते हैं और न ही उनका हस्ताक्षर होता है।
जनपद में नीम-हकीम की तरह फर्जी पैथालाजी व अल्ट्रासाउंड केंद्रों की भी भरमार है। अधिकांश का जहां पंजीकरण नहीं है वहीं पंजीकृत केंद्रों पर नामित विशेषज्ञ सेवा नहीं देते। उनकी डिग्री लगाकर लाइसेंस तो ले लिया गया है लेकिन जांच अप्रशिक्षित लोगों के हाथों किया जाता है। सामान्य बीमारी में टीबी, मलेरिया, डेंगू की रिपोर्ट पाकर पीड़ित घबरा जाता है। अधिकांश जांच रिपोर्ट में बचने के लिए संभावित बीमारी बता देते हैं। रिपोर्ट के आधार पर उपचार में जहां आर्थिक क्षति उठानी पड़ती है वहीं उल्टी-सीधी दवाओं के सेवन करने पर स्थिति नाजुक हो जाती है। जान से भी हाथ धोना पड़ता है। कुछ चिकित्सक एक केंद्रों पर मरीजों पर भेजते हैं तो तमाम कमीशन मिलने पर रिपोर्ट को गलत नहीं बताते। इतना ही नहीं ग्रामीण अंचल के कई अल्ट्रासाउंड केंद्र संचालक भ्रूण की जांच करके भी मनमाना कमाई कर रहे हैं। विभागीय सूत्रों के अनुसार जिले में पंजीकृत 196 पैथालाजी, 73 अल्ट्रासाउंड केंद्रों में पचास फीसद से अधिक पर लाइसेंस में अंकित विशेषज्ञ न तो बैठते हैं और न ही उनका हस्ताक्षर होता है।