ईमानदारी के मिसाल थे सांसद राजदेव सिंह

जौनपुर । तीन बार सांसद रहने वाले राजदेव सिंह ईमानदारी के मिसाल थे वे अपने जीवन काल में एक आवास तक जौनपुर शहर में नहीं बनवा सके जबकि अब एक बार एमएलए या एमपी बन जाय तो वह अरबपति नहीं तो करोड़पति तो बन ही जाते हैं। जिले की सदर तहसील क्षेत्र के नाथूपुर गांव निवासी ठाकुर रणधीर सिंह के पुत्र के रूप में चार अक्टूबर सन 1908 को राजदेव उर्फ भाई साहब पैदा हुए उनकी प्राथमिक शिक्षा गांव के ही प्राथमिक पाठशाला में हुई। माध्यमिक शिक्षा क्षत्रिय कालेज जो अब टीडी कालेज हो गया है, में हुई। उच्च शिक्षा के लिए वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी गये और यहीं से उन्होने राजनीति में कदम रखा। 1930 में जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की गिरफतारी का विरोध शुरू हुआ ता बीएचयू में क्षेत्रीय कांग्रेस का गठन हो चुका था और पंण्डित मदन मोहन मालवीय के पुत्र गोविन्द मालवीय अध्यक्ष व राजदेव ंिसंह महांमत्री बनाये जा चुके थे। छात्रों ने जुलूस निकाला और टाउनहाल तक गये थे कि पुलिस ने गोली चला दी । चार लोग मारे गये। इसका असर राजदेव सिंह पर इतना अधिक पड़ा कि सीधे हास्टल पहुंच गये और विश्वविद्यालय में शान्ति छा गयी। इसी दौरान मालवीय जी पहुंचे और छात्रों से कहा कि मैने चन्दा लेकर इसलिए विश्वविद्यालय नहीं बनवाया है कि देश जले और यहां का छात्र चुप्पी साधे रहे। राजदेव इतना सुनकर वाराणसी से लखनऊ और वाराबंकी पहुंचे वहां गोरखपुर के मन्मथनाथ गुप्त और आजमगढ़ के शिब्बन लाल सक्सेना से भेट हुई सभी ने मिलकर इण्डियन यूथ लीग का गठन किया और इसके भी महामंत्री भी राजदेव सिंह को बनाया गया। यूथ लीग पूरी तरह से आजाद हिन्द फौज की तर्ज पर काम कर रही थी। इसकी क्रान्तिाकारी गतिविधियों से सरकार घबरा गयी और वाराबंकी से जौनपुर आते समय उन्हे दो अन्य साथियों के साथ गिरफतार कर लिया गया और इन्हे काले पानी की सजा सुनाई गयी। कालापानी से तीनों साथी एक लकड़ी के सहारे कलकत्ता के समीप किनारे लगे और वहां से जौनपुर आये तथा गिरफतार हुए। इसी दौरान लखनऊ में इनकी मुलाकात इन्दिरा गांधी से हुई। जब देश आजाद हुआ तो ये जौनपुर आये। जौनपुर में 1963 में सांसद ग्रहमजीत सिंह की मौत के बाद उपचुनाव हो रहा था। इन्दिरागांधी से हस्तक्षेप से कांग्रेस ने पहली बार जौनपुर से राजदेव सिंह को चुनाव मैदान में उतारा। उस समय उनका मुकाबला संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार एवं जनसंघ अध्यक्ष पण्डित दीन दयाल उपाध्याय से हुआ। चुनाव में पण्डित दीलदयाल हारे और राजदेव सिंह जीत गये। इसके बाद 1967 व 1971 में भी जौनपुर से सांसद चुने गये। तीन बार लोक सभा सदस्य रहे राजदेव सिंह को टीडी कालेज प्रबन्ध समिति का अध्यक्ष होने के नाते इन्हे वहां विद्यालय के गेस्टहाउस में रहने के लिए स्थान दिया गया क्योकि इनके पास जौनपुर शहर में रहने के लिए कोई आवास नहीं था। जीवन पर्यनत वे कांग्रेस में रहे और 25 फरवरी 1984 को यह संसार छोड़कर सदा के लिए चले गये। उनके निधन का समाचार सुनकर देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरागांधी ने अपने शोक संदेश में कहा था कि आज हमने एक सच्चा देशभक्त, सच्चा राजनेता और कर्तव्य का पुजारी खो दिया। अब राजदेव सिंह केवल जन्मदिन और पुण्यतिथि पर ही याद किये जाते है।

Related

news 4869543985790845063

एक टिप्पणी भेजें

emo-but-icon

AD

जौनपुर का पहला ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल

आज की खबरे

साप्ताहिक

सुझाव

संचालक,राजेश श्रीवास्तव ,रिपोर्टर एनडी टीवी जौनपुर,9415255371

जौनपुर के ऐतिहासिक स्थल

item