गोमूत्र , गोबर एवं गुड़ डालो लाखो पाओ
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जौनपुर। समाज मे आज जितने भी रोग फैल रहे है उसका सबसे प्रमुख कारण
कीटनाशक युक्त भोजन ही है। जागरूकता की कमी से आज देश का हर व्यक्ति हर
वर्ष तीन सौ ग्राम जहर विभिन्न खाद्यान्नों के नाम पर खा रहा है जिसके कारण
आज हमारे देश में सात करोड़ से ज्यादा लोगों को डायबिटीज इससे दूने लोगों
को हार्ट रोग तथा हाइपरटेंशन एवं गैस की समस्या तो घर - घर की आम विमारी बन
गई हैं। आमदनी का ज्यादा भाग दवाई में खर्च हो रहा है । इतना ही नहीं खेतो
में अन्धाधुन्ध हानिकारक रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के प्रयोग से
मृदा उर्वरता में निरंतर गिरावट के साथ पर्यावरण का संतुलन भी विगड़ता जा
रहा है। जलवायु परिवर्तन के दौर में ऊसर के कगार पर पहुंच चुकी मृदा से
लाभकारी खेती करना एक बहुत बड़ी चुनौती बन गयी है।
कृषि विभाग के उप परियोजना निदेशक " आत्मा " रमेश चंद्र यादव ने किसानों को सुझाव देते हुए कहा है कि जब हमारे देश की संस्कृति गंगा , गऊ एवं गीता पर आश्रित थी तो हम जगतगुरु कहलाते थे । किंतु आज सामुहिक एवं दीर्धकालीन हितों के बजाय व्यक्तिगत एवं त्वरित लाभ के लिए गंगा एवं धरती को कूड़ा बना दिए जिसका खामियाजा समाज को भुगतना पड़ रहा रहा है।
डिप्टी पीडी आत्मा रमेश चंद्र यादव ने बताया कि स्वास्थ्य भारत के लिए अब जैविक खेती ही विकल्प रह गया है। किसान जागरूक व स्वावलम्बी होकर खेती करे तो देश को पुनः सोने की चिड़िया बना सकते है। उन्होंने कहा कि किसान एक देशी गाय से जीरो बजट में स्वच्छ पर्यावरण में वेहतर उत्त्पादन प्राप्त कर अपनी समृद्धि करके कृषि का सतत विकास कर सकते है।
डिप्टी पीडी रमेश चंद्र यादव ने बताया कि जहा देशी गाय का दूध अमृत है वही गोमूत्र एवं गोबर आयुर्वेद का खजाना है। एक ग्राम देशी गाय के गोबर में 300 - 500 करोड़ लाभदायक जीवाणु पाए जाते है जो मृदा की संरचना को बनाने से लेकर उत्त्पादन बढ़ाने में योगदान देते है। उन्होंने कहा कि गोमूत्र में कार्बोलिक एसिड होता है जो हानिकारक कीटाणु नाशक है। करक्यूमिन होती है जो कैंशर रोकने की क्षमता रखती है। देशी गाय के गोमूत्र एवं गोबर के मिश्रण में प्रोपिलीन ऑक्साइड उत्पन्न होती हैं जो वारिस लाने में सहायक होती हैं । इसी मिश्रण में इथीलीन आक्साइड गैस निकलती हैं जो आपरेशन थिएटर में काम आती है। गोमूत्र में सोलर खनिज तत्व होते है जो प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते है।
* जीवामृत से अब लहलहाएगी फसले
हानिकारक रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशक दवाओं के प्रयोग से ऊसर - बंजर के कगार पर पहुंच चुकी मृदा एवं हमारे स्वास्थ्य को अब जीवामृत ही बचाएगी ।
कैसे बनाए जीवामृत -
10 ली0 देशी गाय का गोमूत्र, 10 किग्रा0 गोबर , एक किग्रा0 गुड़ , एक किग्रा0 बेसन एवं 200 ग्राम पीपल या बरगद के बृक्ष के जड़ के पास की मिट्टी को लेकर सबको एक पात्र में 200 ली0 पानी मे मिलाकर तीन दिवस के लिए रख देते है । प्रतिदिन तीन बार डण्डे से चला कर ढक दिया जाता हैं। इसके बाद इसे सिचाई जल के साथ कम्पोस्ट खाद में मिलाकर प्रति एकड़ क्षेत्रफल की दर से खेतो में देने से मृदा का स्वास्थ्य ठीक रखते हुए वेहतर उपज लिया जाता हैं।
जीवामृत से उत्त्पादित खाद्यान्न गुड़ावत्ता युक्त पोषक तत्वों से भरपूर्ण , स्वादयुक्त एवं ससायनो से मुक्त होते है।
कृषि विभाग के उप परियोजना निदेशक " आत्मा " रमेश चंद्र यादव ने किसानों को सुझाव देते हुए कहा है कि जब हमारे देश की संस्कृति गंगा , गऊ एवं गीता पर आश्रित थी तो हम जगतगुरु कहलाते थे । किंतु आज सामुहिक एवं दीर्धकालीन हितों के बजाय व्यक्तिगत एवं त्वरित लाभ के लिए गंगा एवं धरती को कूड़ा बना दिए जिसका खामियाजा समाज को भुगतना पड़ रहा रहा है।
डिप्टी पीडी आत्मा रमेश चंद्र यादव ने बताया कि स्वास्थ्य भारत के लिए अब जैविक खेती ही विकल्प रह गया है। किसान जागरूक व स्वावलम्बी होकर खेती करे तो देश को पुनः सोने की चिड़िया बना सकते है। उन्होंने कहा कि किसान एक देशी गाय से जीरो बजट में स्वच्छ पर्यावरण में वेहतर उत्त्पादन प्राप्त कर अपनी समृद्धि करके कृषि का सतत विकास कर सकते है।
डिप्टी पीडी रमेश चंद्र यादव ने बताया कि जहा देशी गाय का दूध अमृत है वही गोमूत्र एवं गोबर आयुर्वेद का खजाना है। एक ग्राम देशी गाय के गोबर में 300 - 500 करोड़ लाभदायक जीवाणु पाए जाते है जो मृदा की संरचना को बनाने से लेकर उत्त्पादन बढ़ाने में योगदान देते है। उन्होंने कहा कि गोमूत्र में कार्बोलिक एसिड होता है जो हानिकारक कीटाणु नाशक है। करक्यूमिन होती है जो कैंशर रोकने की क्षमता रखती है। देशी गाय के गोमूत्र एवं गोबर के मिश्रण में प्रोपिलीन ऑक्साइड उत्पन्न होती हैं जो वारिस लाने में सहायक होती हैं । इसी मिश्रण में इथीलीन आक्साइड गैस निकलती हैं जो आपरेशन थिएटर में काम आती है। गोमूत्र में सोलर खनिज तत्व होते है जो प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते है।
* जीवामृत से अब लहलहाएगी फसले
हानिकारक रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशक दवाओं के प्रयोग से ऊसर - बंजर के कगार पर पहुंच चुकी मृदा एवं हमारे स्वास्थ्य को अब जीवामृत ही बचाएगी ।
कैसे बनाए जीवामृत -
10 ली0 देशी गाय का गोमूत्र, 10 किग्रा0 गोबर , एक किग्रा0 गुड़ , एक किग्रा0 बेसन एवं 200 ग्राम पीपल या बरगद के बृक्ष के जड़ के पास की मिट्टी को लेकर सबको एक पात्र में 200 ली0 पानी मे मिलाकर तीन दिवस के लिए रख देते है । प्रतिदिन तीन बार डण्डे से चला कर ढक दिया जाता हैं। इसके बाद इसे सिचाई जल के साथ कम्पोस्ट खाद में मिलाकर प्रति एकड़ क्षेत्रफल की दर से खेतो में देने से मृदा का स्वास्थ्य ठीक रखते हुए वेहतर उपज लिया जाता हैं।
जीवामृत से उत्त्पादित खाद्यान्न गुड़ावत्ता युक्त पोषक तत्वों से भरपूर्ण , स्वादयुक्त एवं ससायनो से मुक्त होते है।