मन करता है सुख दुःख का निर्धारण
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जौनपुरं। जीव सुख व दुख का जो भी अनुभव करता है वह मन से ही सम्मभव है क्योकि अच्छा-बुरा, ठीक-खराब, सुख-दुख इसका निर्धारण मन ही करता। मन नही देवता है, मन ही ईश्वर है मन से कोई बड़ा नही हो सकता इसलिए जब मन को इच्छा होती है तो सुखी रोटी भी आनन्द की अनुभूति कराती है यदि मन की इच्छा ना हो तो छप्पन प्रकार के व्यंजन निः स्वाद हो जाते है। इतना ही नही सभी इन्द्रिया भी संचालित होती है मन से मनुष्य का मन रूपी मन्दिर उसकी इच्छाओं से भरा पड़ा रहता है और यदि उसी मन्दिर में परमात्मा को बैठाना है तो इच्छा रूपी गन्दगी को पहले बाहर करना पड़ेगा तथी परमात्मा मन रूपी मन्दिर से विराजमान हो सकते है । उक्त बातें जनसन्त योगी देवनाथ जी महाराज के श्रीमद्भागवम कथा के अन्तर्गत कही। उन्होने भक्त प्रहलाद के चरित्र पर प्रकाष डालते हुए कहा की वास्तविक रूप से पुत्र वही है जो पिता को परमात्मा से मिलाने का कार्य करता है झाॅकी के माध्यम से भक्त प्रहलाद व भगवान वामन के चरित्र पर बड़ा ही प्रकाश डाला ।प्रातः डाॅ0 रजनीकान्त द्विवेदी के निर्देशन में मुख्य यजमान राजा सुचन्द्र ी ने सभी वेदियो का पूजन किया। सायं कथा से पूर्व व्यास पूजन कर डाॅ0 जगदीश सिंह, डा. सर्वेष सिंह, रघुवर मौर्या, जगदीष गाढ़ा, ज्ञान जायसवाल, बृजभारती, श्रीमती गीता रानी-प्रेम गाढ़ा आदि ने माल्यार्पण किया। आयोजन के सफल बनाने में रवि देवनाथ ,कमलेष पाण्डेय, अंशिका देवनाथ, जवाहर मौर्या, अमित गाढ़ा, विजय मौर्या आदि लगे रहें । साय कथा में हजारों महिलाये व पुरूषो की अपार भीड़ उपस्थिति रही।