मारीशस का भारत से खून का रिश्ता है : डाॅ सरिता बुधु
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जौनपुर। भोजपुरी स्पीकिंग यूनियन मारीशस की चेयर मैन डाॅ सरिता बुधु अपने
पुरखो की जन्मभूमि को तलास करने के लिए भारत आयी हुई है। काफी प्रयास के
बाद आखिकार उन्हे पांच दिन पूर्व सफलता मिल गयी। उन्होने बलिया जिले में
अपने पुस्तैनी गांव में पहुंचकर गांव की मिट्टी से तिलक करने के बाद अपने
खानदान के लोगो से मिलकर अभिभूत हो गयी। पूरे दिन परिजनो के साथ बीताने के
बाद अब वे पूर्वाचंल की संस्कृति सभ्यता और साहित्य से रू ब रू होने के लिए
पूर्वाचंल के दौरे पर है। इसी सिलसिले में डाॅ0 बुधु सोमवार को जौनपुर
जिले में आ गयी है। अपने तीन दिनो की प्रवास के दरम्यान मंगवालवार को डा0
सरिता पत्रकारो से बातचीत की।
डा0 सरिता ने बताया कि हमारे पूर्वज माखन सिंह मात्र 18 वर्ष की उम्र में 21 सितम्बर 1872 को देश छोड़कर गिरमिटिया मजदूरो के साथ मारीशस चले गये थे। उसके बाद से वे गांव नही लौटे वही पर अपना आशियान बनाकर घर संसार बसा लिया। मैं उनकी चैथी पीढ़ी हूं। मुझे बचपन से ही अपने पुरखो के गांव जाने की तमंन्ना थी। मैने काफी प्रयास किया। मरीशस में स्थित महात्मा गंाधी लाईबे्ररी से पता निकालकर खोज शुरू किया। काफी प्रयास के बाद पता चला कि हमारा मूल गांव भारत देश में स्थित उत्तर प्रदेश के बलिया जिले का दरामपुर है। बस अपने गांव की मिट्टी का चंदन लगाने के लिए मरीशस से भारत आ गयी। पांच पहले मैने अपने गांव जाकर खून खानदान वालो से मुलाकात की। अपने खून के रिश्तेदारो से मुलाकात की कहानी बताते बताते उनकी आंखो में खुशी की आशू आ गयी। डा0 सरिता ने साफ कहा कि मारीशस का भारत से खून का रिश्ता है। मरीशस में बसने वाले जौनपुर, गोरखपुर, फैजाबाद, आजमगढ़, बलिया, देवरिया, वाराणसी समेत पूर्वाचंल के अन्य जनपदो के लोग ही है। मेरी तरह हजारो लोग अपने पूर्वजो का मूल गांव तलास रहे है। डा0 सरिता ने यह भी बताया कि हम लोग मारीशस में भारत की सभ्यता, संस्कृति ,कला को सजोकर रखी हूं। खासकर भोजपुर भाषा को। आने वाली पीढ़ी के लिए 125 स्कूल खोला गया है। अगले वर्ष मारीशस का 50 वीं वर्ष गांठ है। इस मौके पर करीब 150 स्कूल की स्थापना किया जायेगा। भारत में फिल्म निर्माताओ द्वारा भोजपुर भाषा की गंदी फिल्म बनाकर अश्लीलता फैलाने के सवाल पर वे गम्भीर हो गयी। उन्होने कहा कि ऐसा नही करना चाहिए भोजपुरी भाषा में समाजिक व परिवारिक फिल्म बनाकर समाज को एक अच्छा संदेश देना चाहिए।
डा0 सरिता ने बताया कि हमारे पूर्वज माखन सिंह मात्र 18 वर्ष की उम्र में 21 सितम्बर 1872 को देश छोड़कर गिरमिटिया मजदूरो के साथ मारीशस चले गये थे। उसके बाद से वे गांव नही लौटे वही पर अपना आशियान बनाकर घर संसार बसा लिया। मैं उनकी चैथी पीढ़ी हूं। मुझे बचपन से ही अपने पुरखो के गांव जाने की तमंन्ना थी। मैने काफी प्रयास किया। मरीशस में स्थित महात्मा गंाधी लाईबे्ररी से पता निकालकर खोज शुरू किया। काफी प्रयास के बाद पता चला कि हमारा मूल गांव भारत देश में स्थित उत्तर प्रदेश के बलिया जिले का दरामपुर है। बस अपने गांव की मिट्टी का चंदन लगाने के लिए मरीशस से भारत आ गयी। पांच पहले मैने अपने गांव जाकर खून खानदान वालो से मुलाकात की। अपने खून के रिश्तेदारो से मुलाकात की कहानी बताते बताते उनकी आंखो में खुशी की आशू आ गयी। डा0 सरिता ने साफ कहा कि मारीशस का भारत से खून का रिश्ता है। मरीशस में बसने वाले जौनपुर, गोरखपुर, फैजाबाद, आजमगढ़, बलिया, देवरिया, वाराणसी समेत पूर्वाचंल के अन्य जनपदो के लोग ही है। मेरी तरह हजारो लोग अपने पूर्वजो का मूल गांव तलास रहे है। डा0 सरिता ने यह भी बताया कि हम लोग मारीशस में भारत की सभ्यता, संस्कृति ,कला को सजोकर रखी हूं। खासकर भोजपुर भाषा को। आने वाली पीढ़ी के लिए 125 स्कूल खोला गया है। अगले वर्ष मारीशस का 50 वीं वर्ष गांठ है। इस मौके पर करीब 150 स्कूल की स्थापना किया जायेगा। भारत में फिल्म निर्माताओ द्वारा भोजपुर भाषा की गंदी फिल्म बनाकर अश्लीलता फैलाने के सवाल पर वे गम्भीर हो गयी। उन्होने कहा कि ऐसा नही करना चाहिए भोजपुरी भाषा में समाजिक व परिवारिक फिल्म बनाकर समाज को एक अच्छा संदेश देना चाहिए।