रफ्तार की मार से छोटा हो रहा जीवन का सफर
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जौनपुर। भागमभाग के इस दौर में वाहनों की रफ्तार भी बढ़ती जा रही है। हर व्यक्ति को अपने स्थान पर जाने की जल्दबाजी है और यही जल्दबाजी उसे इस दुनिया से रूखसती का मार्ग भी दिखला देती है। आये दिन जर्जर मार्गों एवं डग्गामार वाहनों की वजह से आये दिन हादसे हो रहे हैं। जहां एक साल में करीब दो सौ से अधिक लोग हादसे में मौत का शिकार हो गए। जबकि दो हजार लोग पूरे जीवन इस दर्द को झेलने को मजबूर हैं। सैकड़ों की संख्या में वाहनों की बर्बादी हुई। बावजूद इसके वाहनों को सजगता से नहीं चलाया जाता। हालाकि इन हादसों के पीछे सड़क की खामियां भी सामने आती हैं। जिले की सड़कों पर डग्गामार वाहनों की भरमार, जर्जर सड़के, जल्दी पहुंचने की होड़ , यातायात नियमों का पालन न करना, नशे में वाहनों का संचालन आदि भी सड़क हादसों के लिए जिम्मेदार हैं। वर्तमान में वाहनों की रफ्तार में खासी बढ़ोत्तरी हुई है। एक दौर था जब परिवहन तथा लोक निर्माण विभाग अधिकतम स्पीड 40 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से वाहन चलाने के प्रेरित करता था, इसके अलावा आबादी तथा निर्माण कार्य क्षेत्र में 10 किमी की स्पीड से वाहन चलाने के संकेतक लगाकर सचेत करता था। वर्तमान दौर में स्पीड को लेकर कोई सीमा निर्धारित नहीं है, अचानक संपर्क मार्गों से निकले वाहन, यांत्रिक खामी के चलते सड़कों पर खड़े वाहन तथा अचानक सड़क पर जानवरों का आना बेतहाशा रफ्तार के चलते हादसे का सबब बन हुआ है। सड़क हादसों पर अंकुश तभी लग सकता है जब सभी वाहन चालक यातायात नियमों के प्रति सजगता बरतें, इसी के साथ वाहन दौड़ाने के दौरान मनोरंजन संसाधन बंद रखें और नियंत्रित रफ्तार में वाहन चलाते हुए ध्यान सड़क पर ही बनाए रखें। इससे काफी हद तक सड़क हादसों पर अंकुश लगेगा। यातायात विभाग अभियान चलाकर स्कूली बच्चों को आवागमन के नियमों का पाठ पढ़ाता है इसके बावजूद सड़कों पर कम आयु के बच्चे दो पहिया और चार पहिया वाहन चलाते दिखाई देते है। बच्चों के पास ड्राइविग लाइसेन्स नहीं होते लेकिन उनके अभिभावक वाहन चलाने की अनुमति दे देकर उनके जीवन के साथ खिलवाड़ करते है। ऐसा करने से अभिभावकांे को रोकना होगा तथा पुलिस को भी इस पर सख्ती करनी चाहिए।