इंसेफेलाइटिस, डेंगू, चिकनगुनिया का खात्मा करेंगी गोरखनाथ मठ की मछलियां!
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गोरखपुर। सूबे में आस्था व सत्ता का केन्द्र बना गोरखनाथ मंदिर एक बार फिर से चर्चा में है। मंदिर के भीम ताल में पाली जाने वाली गंबूजिया मछली को मत्स्य पालन विभाग मच्छरों के खात्मे के लिए प्रयोग करने जा रहा है। विभाग के इस प्रस्ताव को मंदिर प्रशासन व शासन से मंजूरी मिल गई है।
गौरतलब है कि मंडल में करीब डेढ़ करोड़ आबादी इस समय मच्छरों से होने वाली बीमारियों के प्रकोप से जूझ रही है। इनमें इंसेफेलाइटिस, डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया का प्रकोप सबसे ज्यादा है। बरसात के सीजन में मच्छरों के बढ़ते प्रकोप पर नियंत्रण के लिए मत्स्य पालन विभाग ने तालाबों में गंबूजिया मछली डालने का फैसला किया है। विभाग ने मछली खरीदने का प्रस्ताव गोरखनाथ मंदिर प्रशासन व शासन को दिया।
मत्स्य पालन विभाग ने मछलियों को डालने के लिए मंडल में 210 तालाबों का चयन किया है। सबसे ज्यादा 72 तालाब कुशीनगर में हैं। महराजगंज में 64, देवरिया में 53 और गोरखपुर में 21 तालाबों का चयन किया गया। इन तालाबों का कुल क्षेत्रफल करीब 144 एकड़ है। प्रति एकड़ में दो हजार गंबूजिया मछली डाली जाएगी। विभाग के मुताबिक इन तालाबों में करीब दो लाख 86 हजार 266 मछलियां डालने की योजना है।
मंदिर परिसर में भीम ताल आस्था का एक केन्द्र हैं। इस ताल में कई प्रजाति की मछलियां पाली जाती है। वर्ष 2010 में बंगलुरू से आए कुछ विशेषज्ञों ने इसमें गंबूजिया मछली भी डाल दी। प्रजनन के कारण आज ताल में गंबूजिया की संख्या लाखों में है। मत्स्य पालन विभाग ने मछलियों की खरीद के लिए शासन से करीब 12 लाख रुपये की मांग की है। स्वास्थ्य विभाग के निदेशक वेक्टर बार्न डिजीज को भेजे गए पत्र में मत्स्य पालन विभाग ने प्रति मछली चार रुपये खरीदने की दर बताई है। हालांकि गोरखनाथ मंदिर प्रशासन मत्स्य पालन विभाग को यह मछलियां मुफ्त में दे रहा है। इसकी तस्दीक मंदिर के प्रबंध समिति से जुड़े द्वारिका तिवारी ने की। उन्होंने कहा कि कुछ साल पहले भी विभाग इन मछलियों को ले गया था। तब भी मुफ्त में ही दी गई थी और इस वर्ष भी इन मछलियों के लिए कोई रकम नहीं ली गई।
मच्छरों के प्रजनन पर नियंत्रण के लिए मंडल में गंबूजिया मछली का प्रयोग पहली बार नहीं हो रहा है। वर्ष 2013 में पहली बार गंबूजिया मछली भोपाल की फर्म खरीदी गई। मंडल में दो लाख 31 हजार से अधिक मछलियां तालाबों व नालों में डाली गई। हालांकि स्वास्थ्य विभाग की मानें तो उस दौरान मछलियों के प्रयोग से मच्छरों का घनत्व कम नहीं हुआ था। इस मछली को मच्छरों का दुश्मन कहा जाता है।
इस मछली की खासियत है कि यह दूसरी मछलियों की तुलना में नाले के पानी में भी जिन्दा रह लेती हैं। यह अंडे नहीं देती, बल्कि बच्चे देती हैं। ये मछली तीन इंच तक लंबी होती है। इस मछली के बच्चे भी दो मिलीमीटर होने पर मच्छरों के लार्वा को खाने लगते हैं। एक दिन में एक गम्बूसिया मछली 100 से 300 लार्वा खा सकती है। इस मछली को बढ़ाने के लिए 3 से 6 महीने का समय लगता है। यह लगभग 4 से 5 साल तक जीवित रह सकती है। यह एक महीने में करीब 50 से 200 बच्चे देती है।