पत्रकार रामचन्द्र छत्रपति जी आपको नमन

 विकास तिवारी
 विकास तिवारी
दरअसल छत्रपति केवल एक पत्रकार का नाम नहीं है। वे गणेश शंकर विद्यार्थी की परंपरा के एक ऐसे पत्रकार थे जो  सच्चाई के पक्ष में निर्भीकता के साथ खड़े रहे।  उनके जीते जी हम उनका सही मूल्यांकन नही कर पाए लेकिन उनके जाने के बाद हम महसूस करते हैं कि उनका कद कितना बड़ा था।
छत्रपति एक सामान्य किसान परिवार में पैदा हुये थे। वे बेहद संवेदनशील होने के साथ साथ बेहद जहीन भी थे। उन्होंने वकालत पास की थी लेकिन इस व्यवसाय से दूर रहे, उनके सामने एक ऐसा समाज था जो कदम-कदम पर अपने को उपेक्षित महसूस करता था। इस वंचित और उपेक्षित समाज और उसके सपनों के रास्ते में कितनी बाधाएं थीं, कितने षड़यंत्र थे वे प्रत्यक्ष देखा करते थे। उन्होंने पत्रकारिता को व्यवसाय के रूप में अपनाया और उसे समाज हित के मिशन में बदल दिया। लेकिन हर पत्रकार इतना भाग्यशाली नहीं होता की वह स्वतंत्र होकर सच लिख सके। कई अखबारों में काम करने के बाद अंततः उन्होंने अपनी हैसियत के अनुरूप एक छोटा अखबार निकाला। अखबार का नाम था “पूरा सच”। अखबार का स्वरुप स्थानीय था तो जाहिर है उसे टकराना भी स्थानीय ताकतों से था। उसने कई ऐसे षड्यंत्रो का भंडाफोड़ किया कि सरकार काँप उठी। हर सरकार के नजदीक रहने वाला बहुत शक्तिशाली संस्थान डेरा सच्चा सौदा पाखण्ड और षड्यंत्र का गढ़ बना हुआ था। डेरा प्रमुख और वहां रहनेवाले साधुओं पर बहुत गंभीर आरोप लग रहे थे। वे आरोप चर्चा में आते और विलीन हो जाते क्योंकि कोई भी पत्रकार इतनी बड़ी सत्ता से टकराना नहीं चाहता था लेकिन छात्रपति को इसी में मजा आ रहा था। उसने डेरा सच्चा सौदा के कच्चे चिट्ठे खोलने शुरू किये। डेरा द्वारा बिजली चोरी, साधुओ, (अनुयायियों) की गुड़ागर्दी की घटनाएं जब अखबार की सुर्खियां बनने लगी तब डेरा प्रमुख बौखला गये। सबसे बड़ी खबर जो छत्रपति की मौत का कारण बनी वह एक पीड़ित साध्वी (अनुयायी) की प्रधानमंत्री को लिखी चिठ्ठी थी जिसमें यह जिक्र था कि डेरा प्रमुख ने उसका यौन शोषण किया और डेरे में रहने वाली अन्य साध्वियों के साथ अक्सर यही होता है। इस चिठ्ठी के प्रकाश में आने के बाद साध्वी का भाई जो कि डेरा की महत्त्वपूर्ण प्रबंधक कमेटी का सदस्य था की रहस्यमयी परिस्थितियो में हत्या हो गई। डेरा को शक था कि साध्वी की लिखी चिठ्ठी रणजीत सिंह ने ही लीक की है और जब साध्वी की यह चिठ्ठी पूरा सच में प्रमुखता से छपी तो अब तक छत्रपति को खरीदने की कोशिश करता आया डेरा यह बर्दाश्त नहीं कर पाया और 24 अक्टूबर 2002 करवाचौथ के दिन डेरे द्वारा भेजे गए दो शूटरों ने 5 गोलियां छत्रपति की देह में उतार दी। संयोगवश एक  हत्यारा मौके पर भागते वक्त पकड़ लिया गया। दूसरा बाद में गिरफ्तार किया गया। हरियाणा पुलिस ने हर संभव कोशिश की कि छत्रपति की हत्या के आरोप से डेरा मुखी साफ़ बच जाए लेकिन छत्रपति के परिवार ने कानूनी लड़ाई लड़ी और  सीबीआई जांच की मांग की। लेकिन डेरा सीबीआई जांच से इतना खौफ खाये था कि वह सीबीआई जांच टालने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक गया और अपने अनुयायियों के आक्रामक जुलूस प्रदर्शनों से शक्ति प्रदर्शन भी किये।
रामचंदर छत्रपति ने हमें बहुत से सच नजदीक से अनुभव करवाये। आज़ादी के संघर्ष के बाद के तमाम संघर्ष अधूरे हैं क्योंकि वह संघर्ष देश की भीतरी नापाक ताकतों से लड़े जाने हैं और नापाक ताकतें पूरे तंत्र पर काबिज हैं। जन, जान और तंत्र सब उनके हाथ हैं। हमारे हाथ सिर्फ लड़ना है। ऐसे में लड़ना कब आसान होता है, लेकिन कोई लड़ता है तो उसके साहस को सौ सौ सलाम हैं। उसकी प्रतिबद्धता को सौ सौ सलाम हैं।  कोई पत्रकार होकर खबर दबा जाता है क्योंकि उसके अपने  गुणा-भाग पत्रकारिता से बड़े हैं,  कोई पत्रकार खबर का पीछा करता है ताकि पत्रकारिता का स्तर बचा रहे, बना रहे। खबर का पीछा करने वाले पत्रकार का मौत भी उसी प्रकार पीछा कर रही होती है जिस प्रकार वह खबर का पीछा करता है। यह इसलिए है की आज़ादी के बाद की हमारी अलमस्ती ने राजनीती और धर्म को वाकई बहुत आज़ाद और बेकाबू कर दिया है। यही छत्रपति को स्वीकार नहीं था और उसने एक बार की शानदार मौत चुनी और यही हम कायरता से स्वीकार करके रोज-रोज मरते हैं। राजनीती और धर्म की धींगामुश्ती और बेकाबूपन पर लगाम लगाने के लिए देश में हर घर में छत्रपति चाहिए लेकिन अफ़सोस कि जो था वह भी सहेजा ना गया।
छत्रपति का सच के साथ खड़े होने का जिद्दी व्यक्तित्व इतना प्रेरणास्पद है कि हम बार बार उस जिद पर आंसू भी बहाते हैं और अश्रुपूर्ण आँखों से उनकी जिद को सलाम भी कर रहे होते हैं। उनकी प्रेरणा का आलम ये है कि डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत सिंह की बढ़ती ताकत को धता बताते हुए तमाम पीड़ित और गवाह अदालत के बाहर खड़ी उनकी आक्रामक अनुयायियों की भीड़ से नहीं डरते, वे गुरमीत सिंह के लाव लश्कर से प्रभावित नहीं होते, उन्हें मालूम है कि धारा 302, 120 बी और धारा 376 के आरोप में बिना जेल जाए डेरा प्रमुख नियमित जमानत पर हैं तो उसके पास ना संपर्कों की कमी है, न पैसे की, न हथियारों की। उसके लिए कुछ और लोग मरवा देना मुश्किल नहीं, लेकिन पीड़ित लड़ रहे हैं क्योंकि लड़ने की राह छत्रपति आसान करके गये,  लड़ने की जिद छत्रपति दे कर गये। छत्रपति इतना करके गये की डेरा प्रमुख को उसकी सुरक्षित गुफा से निकाल कर अदालतों के फेर में डाल गया। आगे अदालत जाने, हमारे देश का कानून जाने,गुरमित सिंह की गिरफ्तारी हो चुकी है, 28 अगस्त 2017को सजा सुनाई जायेगी | 21 नवम्बर 2002 को छत्रपति हमसे जुदा हो गये लेकिन उसने शहर, समाज, मुल्क, सत्ता, धर्म और पत्रकारिता के सामने ढेर सारे सवालों का पुलिंदा डाल दिया। सवाल जस के तस हैं। लोग जो 2002 में डेरा फूंक देना चाहते थे आज उसी बाबा के बढ़ते प्रभाव के आगे नतमस्तक हैं। नेता जो छत्रपति के अंतिम संस्कार में डेरा मुखी को जेल भेजने की हुंकार भरके आये थे वह सभी चुनाव में उस से आशीर्वाद मांगने कतारबद्ध खड़े होते हैं। इन लोगो को तब लगता था कि डेरा उनके अहसान को ताउम्र ढोता रहेगा। तीन राज्यों में इनके अनुयायोयियों ने सीबीआई जांच के विरोध में सुनियोजित तरीके से बसें जलाई लेकिन पंजाब में इनके 35 लोगों को सजा हुई। बाकी जगह इनका कुछ नहीं बिगड़ा। रोज अदालत में धारा 144 तोड़कर हजारों अनुयायी गुरमीत की पेशी के वक्त खड़े होते हैं। उनकी गाड़ियों में लाठी, जेली, बन्दूक, राइफल सब होते हैं लेकिन कोई केस कोई गिरफ्तारी नहीं। बाबा को जेड प्लस सुरक्षा है। वर्तमान पूरी राज्य सरकार डेरा में माथा टेक चुकी है। बाबा का दावा है कि उनके 5 करोड़ अनुयायी हैं। अनुयायी बनाने का काम छत्रपति की हत्या के बाद युद्ध स्तर पर किया गया। ताकत पैसा और संपर्क बढाने का काम भी युद्धस्तर पर हुआ ताकि दम्भ और ताकत से फरेब की लड़ाई जीती जा सके। हम किसी मुगालते में नहीं क्योंकि हमारे तमाम मुगालते छत्रपति दूर कर गये। छत्रपति लेकिन हमें जो एक चीज देकर गये वह अनमोल है कि तमाम अंधकारों के बीच लड़ना हमारे हाथ है। हम लड़ रहे हैं अपने सीमित साधनों से लेकिन हौसले असीमित हैं। बिलकुल छत्रपति जैसे,  क्योंकि हम देख रहे हैं कि देश के कोने कोने में बहुत से छत्रपति लड़ रहे हैं।

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