मानकों के साथ खिलवाड़ कर चोखा कमाई
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जौनपुर। स्कूल प्रबंधन मानकों के खिलवाड़ के साथ अभिभावकों की जेब खाली कर रहे हैं। एक रूट - एक वाहन का फार्मूला अपना बेखौफ बच्चों को भूसे की तरह भरकर सफर कराया जा रहा है। सब कुछ जानते हुए भी जिम्मेदार अधिकारी आंख मूंदे हुए हैं। यदि विभागीय आंकड़ों पर गौर करें तो ओवरलोडिग को लेकर न के बराबर कार्रवाई की जाती है। शहर समेत कस्बाई इलाकों में संचालित स्कूल बस, टैक्सी, मैजिक, वैन, ई-रिक्शा समेत सभी वाहनों में मानक से कई गुना तक बच्चों को सफर कराया जाता है। प्रत्येक बच्चे से स्कूल से लाने ले जाने के एवज में विद्यालय संचालक मोटी रकम वसूलते करते हैं। 50 सीट की एक बस के जिम्मे लगभग 80 बच्चे होते हैं। औसतन 400 रुपए प्रति बच्चे के एवज से गणना करें तो 32 हजार रुपए एक स्कूल बस से प्रतिमाह विद्यालय प्रबंधन को मिलता है। वहीं बस के खर्च पर नजर डालें तो महीने में डीजल खर्च 12 हजार रुपए, चालक 5 हजार रुपए प्रतिमाह, क्लीनर को 2 हजार रुपए दिए जाते हैं। कुछ यही गणना स्कूल वैन की भी है। ज्यादातर विद्यालय प्रशासन एक स्कूल वैन को दस हजार रुपए प्रति माह किराए पर रखते हैं। जिसमें चालक, डीजल खर्च वाहन मालिक का होता है। स्कूल वैनों से एक दिन में विभिन्न रूटों पर एक से चार चक्कर लगवाए जाते हैं। जिससे स्कूल प्रबंधन को वैन से भी दस से 15 हजार रुपए बचते हैं। जबकि अभिभावकों की जेब खाली होती है। बताते हैं कि स्कूल प्रबंधक की ओर से प्रति माह परिवहन विभाग को भी खर्च देना पड़ता है। विद्यालय प्रशासन की ओर से हर कदम पर अभिभावकों की जेब खाली की जाती है। बच्चों से कन्वेंस शुल्क के नाम पर पूरे महीने की वसूली होती है। जबकि एक माह में औसतन चार से अधिक छुट्टियां पड़ जाती हैं। इन छुट्टियों के दौरान बस-वैन का किराया, डीजल आदि सब बचता है। ज्यादातर स्कूल प्रशासन छुट्टी के दिनों में गाड़ी मालिक का भाड़ा काट लेते हैं। विद्यालयों में उगाही के नाम पर अभिभावक संघ की चुप्पी भी सवालों के घेरे में है। ज्यादातर विद्यालयों में अभिभावक संघ बना हुआ है। ताकि वह सभी मुद्दों पर अधिकारियों के साथ मिलकर मानक विहीन वाहनों पर सवालों का जवाब दे सकें। अक्सर चर्चा यह भी रहती है कि विद्यालय द्वारा संघ में उन्हीं अभिभावकों को जगह दी जाती है जो स्कूलों की हां में हां मिलाएं। बच्चे कहते हैं कि इस चिलचिलाती धूप और गर्मी की वजह से बस में सफर करना बेहद मुश्किल भरा है। एक सीट पर चार से पांच बच्चों तक बैठते हैँ। कई बच्चे खड़े रहते हैं ।