खतरे में नौनिहालों की जान, प्रशासन बेफिक्र
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जौनपुर। अधिक कमाने के चक्कर में नौनिहालों की जान जोखिम में डालना कतई ठीक नहीं है। शहर के विभिन्न स्कूलों द्वारा छात्रों की जिदगी खतरे में डालकर उन्हें घर से लाने और ले जाने का काम किया जा रहा है। विद्यालय में डग्गामार वाहन बच्चों को लाने ले जाने में लगे हुए हैं। यह बच्चों को आटो में भूसे की तरह भर लेते हैं। अपनी सीट के बगल में भी बच्चों को बैठा कर फर्राटा भरते सड़कों पर देखे जाते हैं। इस ओर न स्कूल प्रशासन और न ही अभिभावकों को ध्यान है। शहर की सड़कों पर कुछ ऐसा ही नजारा है। पहले प्रशासन इस बारे में गंभीर हुआ था लेकिन गर्मियों की छुट्टी के साथ में वह सभी आदेश गायब हो गए हैं। मार्च, अप्रैल में प्रशासन के साथ बैठक में आटो में बैठाने वाले बच्चों की संख्या तय करने वाले स्कूल ही अब इस बात पर ध्यान नहीं दे रहे हैं कि आटो में कितने बच्चे बैठ कर जा रहे हैं। शहर के कई स्कूलों में बच्चों को रिक्शे में बैंच रख कर आठ से दस बच्चे बैठाए जाते हैं जो कभी भी हादसे का सबब बन सकते हैं। लेकिन मोटर व्हील एक्ट से बाहर होने के कारण इस तरफ अधिकारियों की नजर नहीं है। इसके लिए अभिभावकों को अपने बच्चों के प्रति संजीदा होना पड़ेगा। स्कूली वाहनों के चालकों द्वारा की जानी वाली मनमानी से अभिभावक भी परेशान है। प्रशासन की सख्ती के बाद स्कूली वाहनों की फीस बढ़ गई। दो सौ से तीन सौ रुपये महीने तक का बोझ अभिभावकों पर पड़ा, लेकिन सुविधाएं नहीं बढ़ी। अभिभावकों का कहना कि प्रशासन स्कूली वाहनों का शुल्क भी तय करे। किलोमीटर के हिसाब से एक शुल्क तय किया जाए। जिससे स्कूली वाहनों के चालक मनमाना शुल्क न वसूल पाए।