खत्म हो चली है आमदनी की 'अठन्नी
https://www.shirazehind.com/2017/07/blog-post_946.html
गौरव उपाध्याय
चलन के आभाव में डंप पड़े हैं कई सिक्के, शासन को परवाह नहीं
जौनपुर। आमदनी के नाम से जुडऩे वाला शब्द आज भी अठन्नी के नाम से जाना जाता है। यह चलन में खत्म हो गया है। शासन और आरबीआई की ओर से आदेश जारी नहीं होने के बावजूद भी इस सिक्के का वजूद नहीं के बराबर है। चलन के आभाव में कई सिक्के डंप हो चुके हैं। सिक्कों में अभी तक आरबीआई ने चवन्नी ही बंद की है। रसूखदारों और बड़े कारोबारियों के बेतुके फरमान के नाते ही यह समस्या खड़ी है। चलन धीरे-धीरे मझौले फिर छोटे कारोबारियों तक पहुंचा और परिणाम रहा की अठन्नी बंद हो गई। इसकी शिकायत आज तक किसी ने न की और न ही प्रशासन ने इस ओर ध्यान दिया। नतीजा अठन्नी अपने वजूद को बचाने के लिए संघर्ष कर रही है। उपभोक्ताओं को इस समस्या के एवज में तिल-तिल कर नुकसान उठाना पड़ रहा है।
भारतीय सभ्यता में कहावत चरितार्थ रही आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपया। कहावत का यही सिक्का अब प्रचलन से बाहर हो चला है। विमुद्रीकरण का यह खेल केन्द्र सरकार का फैसला नहीं है। इसके अलावा आरबीआई ने भी अठन्नी के प्रचलन की समाप्ति की घोषण नहीं की है। बड़े कारोबारियों के पास से यह प्रचलन शुरू हुआ। अपने मझले कारोबारियों से सिक्का लेना बंद कर दिया। ऊपर से शुरू हुई इस कुप्रथा ने नीचे तक अपने पांव यहीं से पसारने शुरू कर दिए। धीरे-धीरे इसका असर आम नागरिकों पर भी पड़ा। जहां-तहां पड़े आठ आने की सिक्के डंप हो गए। नतीजतन नुकसान और नफा का खेल शुरू हो गया। जग जाहिर है फायदा बड़े और मझले कारोबारियों को हो रहा है। नुकसान रूपी चक्की में हमेशा की तरह आम जनता को ही पिसना पड़ा। बानगी की तौर पर किसी सामान की कीमत से ली जा सकती है। वह भी भारत सरकार के अहम फैसले जीएसटी के साथ। सामान की कीमत अगर 21.47 है तो उपभोक्ताओं को पूरे 22 रुपए चुकाने पड़ते हैं। बाजार में ऐसे सामानों की भरमार है। धीरे-धीरे आम उपभोक्ता दिनभर में कई सामान पर ओवर रेटिंग का शिकार होता है। बड़े कारोबारी इस फोकट की कमाई से एक दिन में हजारों का मुनाफा बटोर लेते हैं। अठन्नी का प्रचलन बंद होना कैंसर सरीखा बन चुका है। अब तो अठन्नी के अलावा दुकानदार एक, दो और पांच तक के सिक्के लेने से मना कर रहे हैं। कहीं-कहीं तो दस रुपए के सिक्के भी नहीं लिया जा रहा है। आए दिन इसे लेकर दुकानदारों और उपभोक्ताओं के बीच तक-झक होती है। इस मुद्दे पर प्रशासन कठोर कदम नहीं उठा रहा। संविधान में इसके लिए सख्त प्रावधान है। सिक्के न लेना भारतीय मुद्रा का अपमान होता है। राष्टï्रीय मुद्रा के अपमान में अर्थदण्ड के अलावा कारावास की सजा है। प्रशासन के ढुलमुल रवैया के नाते अभी तक राष्टï्रीय मुद्रा के अपमान में अभी तक किसी को निरुद्ध नहीं किया गया। परिणामत: कारोबारी नफे में हैं और उपभोक्ता नुकसान में। जल्द ही कदम न उठाए गए तो मसला हाथों से निकल जाएगा और इसके नतीजे भयावह होंगे।
इस बाबत संवाददाता ने लीड बैंक (यूबीआई) के प्रबंधक से बात की। विस्तारपूवर्क में बताया कि सारे बैंक के मैनजर को हिदायत दी गई कि सिक्के जमा कराए जाएं। बाजार में अफवाह के नाते यह चलन से बाहर होते जा रहे हैं। बैंक अपना काम बखूबी कर रही है। दिक्कत मार्केट में है। सिक्कों के चलन का दायित्व जिला प्रशासन का है
चलन के आभाव में डंप पड़े हैं कई सिक्के, शासन को परवाह नहीं
जौनपुर। आमदनी के नाम से जुडऩे वाला शब्द आज भी अठन्नी के नाम से जाना जाता है। यह चलन में खत्म हो गया है। शासन और आरबीआई की ओर से आदेश जारी नहीं होने के बावजूद भी इस सिक्के का वजूद नहीं के बराबर है। चलन के आभाव में कई सिक्के डंप हो चुके हैं। सिक्कों में अभी तक आरबीआई ने चवन्नी ही बंद की है। रसूखदारों और बड़े कारोबारियों के बेतुके फरमान के नाते ही यह समस्या खड़ी है। चलन धीरे-धीरे मझौले फिर छोटे कारोबारियों तक पहुंचा और परिणाम रहा की अठन्नी बंद हो गई। इसकी शिकायत आज तक किसी ने न की और न ही प्रशासन ने इस ओर ध्यान दिया। नतीजा अठन्नी अपने वजूद को बचाने के लिए संघर्ष कर रही है। उपभोक्ताओं को इस समस्या के एवज में तिल-तिल कर नुकसान उठाना पड़ रहा है।
भारतीय सभ्यता में कहावत चरितार्थ रही आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपया। कहावत का यही सिक्का अब प्रचलन से बाहर हो चला है। विमुद्रीकरण का यह खेल केन्द्र सरकार का फैसला नहीं है। इसके अलावा आरबीआई ने भी अठन्नी के प्रचलन की समाप्ति की घोषण नहीं की है। बड़े कारोबारियों के पास से यह प्रचलन शुरू हुआ। अपने मझले कारोबारियों से सिक्का लेना बंद कर दिया। ऊपर से शुरू हुई इस कुप्रथा ने नीचे तक अपने पांव यहीं से पसारने शुरू कर दिए। धीरे-धीरे इसका असर आम नागरिकों पर भी पड़ा। जहां-तहां पड़े आठ आने की सिक्के डंप हो गए। नतीजतन नुकसान और नफा का खेल शुरू हो गया। जग जाहिर है फायदा बड़े और मझले कारोबारियों को हो रहा है। नुकसान रूपी चक्की में हमेशा की तरह आम जनता को ही पिसना पड़ा। बानगी की तौर पर किसी सामान की कीमत से ली जा सकती है। वह भी भारत सरकार के अहम फैसले जीएसटी के साथ। सामान की कीमत अगर 21.47 है तो उपभोक्ताओं को पूरे 22 रुपए चुकाने पड़ते हैं। बाजार में ऐसे सामानों की भरमार है। धीरे-धीरे आम उपभोक्ता दिनभर में कई सामान पर ओवर रेटिंग का शिकार होता है। बड़े कारोबारी इस फोकट की कमाई से एक दिन में हजारों का मुनाफा बटोर लेते हैं। अठन्नी का प्रचलन बंद होना कैंसर सरीखा बन चुका है। अब तो अठन्नी के अलावा दुकानदार एक, दो और पांच तक के सिक्के लेने से मना कर रहे हैं। कहीं-कहीं तो दस रुपए के सिक्के भी नहीं लिया जा रहा है। आए दिन इसे लेकर दुकानदारों और उपभोक्ताओं के बीच तक-झक होती है। इस मुद्दे पर प्रशासन कठोर कदम नहीं उठा रहा। संविधान में इसके लिए सख्त प्रावधान है। सिक्के न लेना भारतीय मुद्रा का अपमान होता है। राष्टï्रीय मुद्रा के अपमान में अर्थदण्ड के अलावा कारावास की सजा है। प्रशासन के ढुलमुल रवैया के नाते अभी तक राष्टï्रीय मुद्रा के अपमान में अभी तक किसी को निरुद्ध नहीं किया गया। परिणामत: कारोबारी नफे में हैं और उपभोक्ता नुकसान में। जल्द ही कदम न उठाए गए तो मसला हाथों से निकल जाएगा और इसके नतीजे भयावह होंगे।
इस बाबत संवाददाता ने लीड बैंक (यूबीआई) के प्रबंधक से बात की। विस्तारपूवर्क में बताया कि सारे बैंक के मैनजर को हिदायत दी गई कि सिक्के जमा कराए जाएं। बाजार में अफवाह के नाते यह चलन से बाहर होते जा रहे हैं। बैंक अपना काम बखूबी कर रही है। दिक्कत मार्केट में है। सिक्कों के चलन का दायित्व जिला प्रशासन का है