हरियाली की होड़ में किया गुणवत्ता दरकिनार
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जौनपुर। हरियाली बढ़ाने की होड़ में पेड़ों की गुणवत्ता पर कभी गौर नहीं किया गया। वन विभाग ने इस तरफ कोशिश नहीं की तो नतीजा यह रहा कि लोग अपने-अपने हिसाब से पौधे लगाने लगे। इन पौधों का जमीन और वातावरण पर क्या असर पड़ेगा इसका किसी ने ध्यान नहीं दिया। नतीजा यह है कि अधिकांश लोगों को पता ही नहीं है कि इलाके के हिसाब से कौन से पौधे लगाए जाएं। या कौन से पेड़ को काटने से पहले वन विभाग से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। वानिकी के हिसाब से जनपद की जलवायु अच्छी है लेकिन सही पौधों का चयन इसे और अच्छा बना सकता है। पिछले कुछ वर्षों से जिले में पापुलर और यूकेलिप्टिस की खेती की प्रचलन बढ़ा है। पानी की उपलब्धता वाले क्षेत्रों में तो इन पेड़ों की खेती ठीक है लेकिन जहां पर पानी कमी कमी है वहां के लिए यह नुकसानदायक हो सकती है क्योंकि यह पेड़ भूजल का अत्यधिक दोहन करते हैं। बिना यह जाने किसान अपने खेतों में यूकेलिप्टिस और पापुलर की भरमार करते जा रहे हैं। बिना किसी योजना और मनमाने तरीके से किए पौधारोपण ने यूकेलिप्टिस और पापुलर के दाम पर भी भारी असर डाला है। इन पेड़ों की भरमार हो जाने के बाद से यूकेलिप्टिस और पापुलर की लकड़ियों के दाम काफी गिर गए हैं। पौधों का चयन केवल आर्थिक लाभ के लिए ही नहीं बल्कि पर्यावरण के लिहाज से भी करना चाहिए। पर्यावरण के लिए सहायक पेड़ों को धर्म से भी जोड़ा गया है। वृक्षों में देवताओं का वास बताया गया है। पीपल दिन-रात आक्सीजन देता है। हिदू धर्म में पीपल की पूजा की जाती है तथा जल दिया जाता है। इसके अलावा आंवला और वट वृक्ष भी हिदू धर्म में पूज्य बताए गए हैं। पुराणों में बेल, कदंब, अशोक, नीम, गुड़हल, अश्वगंधा आदि पेड़ों का भी महत्व बताया गया है। यह पौधे अनेक रोगों का नाश करने वाले हैं। ज्योतिष के जानकार कहते हैं कि पौधों में नकारात्मकता को दूर करने की क्षमता होती है। वाटिकाओं में शामिल पेड़ सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा देते हैं। इसमें शामिल पेड़ों का औषधीय और धार्मिक महत्व है। जानकारी में अभाव में किसान अपनी मर्जी से पौधे लगा लेते हैं। हां जब पेड़ काटने की बारी आती है तो उन्हें वन विभाग के चंगुल में फंसना पड़ता है।