महादेव मन्दिरों पर जलाभिषेक को भीड़

जौनपुर। सावन के चैथे सोमवार को जिले में सभी शिवमन्दिरों में कांवरियों सहित अन्य श्रद्धालुओं ने जलाभिषेक कर भाले नाथ का पूजन अर्चन किया। त्रिलोचन महादेव के प्राचीन शिव मंदिर पर शिव भक्तो का रेला उमड़ पड़ा। भोर से ही महिलाओं और पुरुषों की अलग-अलग कतारें लग गयी। कावंरिया और श्रद्धालु मंदिर के पवित्र सरोवर से जल लेकर बाबा भोले शंकर को जलाभिषेक कर दर्शन -पूजन किया। सुरक्षा की दृष्टि से भारी फोर्स मौजूद रही। थानाध्यक्ष  जलालपुर तहसीलदार सिंह व अन्य पुलिस कर्मी लोगों को दर्शन-पूजन कराने मे मदद कर रहे थे। सावन महीने को भगवान शिवजी का महीना माना जाता है। इस महीने में भक्त भगवान शिवजी को खुश करने के लिए अलग-अलग तरीकों से उनकी पूजा करते हैं। इन्हीं तरीकों में से एक है कांवड़ लाना। सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ के भक्त केसरिया रंग के कपड़े पहनकर कांवड़ लाते हैं, इसमें गंगा जल होता है। इन्हीं भक्तों को कांवड़ीया कहा जाता है।कांवड़ को सावन के महीने में ही लाया जाता है। कांवड़ को सावन के महीने में लाने के पीछे की मान्यता है कि इस महीने में समुद्र मंथन के दौरान विष निकला था, दुनिया को बचाने के लिए भगवान शिव ने इस विष का सेवन कर लिया था। विष का सेवन करने के कारण भगवान शिव का शरीर जलने लगा। भगवान शिव के शरीर को जलता देख देवताओं ने उन पर जल अर्पित करना शुरू कर दिया। जल अर्पित करने के कारण भगवान शिवजी का शरीर ठंडा हो गया और उन्हें विष से राहत मिली। भोलेनाथ के भक्त यूं तो सालों भर कांवड़ चढ़ाते रहते हैं लेकनि सावन में इसकी धूम कुछ ज्यादा ही रहती है क्याेिंक यह महीना है भगवान शवि को समर्पति है और अब तो कांवड़ सावन महीने की पहचान बन चुका है। शिव जी सबसे पहले कांवड़ किसने चढ़ाया और इसकी शुरुआत कैसे हुई।  कथाओं के अनुसार  भगवान परशुराम ने अपने आराध्य देव शिव के नियमित पूजन के लिए  पूरा महादेव में मंदिर की स्थापना की और कांवड़ में गंगाजल लाकर पूजन किया। वहीं से कांवड़ यात्रा की शुरूआत हुई जो आज भी देश भर में प्रचलित है।

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