झोलाछाप डॉक्टरों के प्रति स्वास्थ्य विभाग बरत रहा नरमी
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जौनपुर। योगी सरकार ने फरमान जारी किया था कि झोलाछाप कोई और काम ढूंढ लें। लेकिन जिले भर में इस फरमान का यहां कोई असर दिखाई नहीं दे रहा है। यहां तो स्वास्थ्य विभाग ने ही ऐसे डॉक्टरों को संरक्षण दे रखा है। सूचना के नाम पर दो-चार डॉक्टर ही अनधिकृत दर्शाए जाते हैं। जबकि झोलाछापों की संख्या हजारों है। प्रदेेश के स्वास्थ्य मंत्री ने झोलाछापों को आगाह किया है कि वे कोई और पेशा चुन लें। साथ ही उनके विरुद्ध कार्रवाई के लिए स्वास्थ्य महकमे को दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं। सीधे तौर पर ऐसे लोगों को झोलाछाप ठहराया जाता है जिनके पास चिकित्सा अध्ययन की वैध डिग्री नहीं है। साथ ही सीएमओ कार्यालय में जिनका पंजीकरण नहीं हैं। जबकि गर्मी, बरसात जैसे अधिक बीमारियों वाले मौसम में इनकी संख्या में और इजाफा हो जाता है। इस समय भी सामान्य वायरल संक्रमण से लेकर डायरिया, मलेरिया के मामले बढ़ गए हैं। जिसे देख झोलाछापों ने भी पैर फैलाने शुरू कर दिए हैं। पुराने डॉक्टरों के अलावा कई नए डॉक्टर भी सामने आ रहे हैं। यह समस्या केवल लखना बकेवर नगर तक ही सीमित नहीं है बल्कि महेवा विकास खंड के गांव स्तर पर भी दर्जनों झोलाछाप शान से अपने क्लीनिक चला रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग द्वारा की गई कार्रवाई की बात करें तो स्वास्थ्य विभाग ने अब तक इन झोला छाप डॉक्टरों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई धरातल पर नहीं की है। लोगों के स्वास्थ्य और जान से खिलवाड़ करने वाले ऐसे लोगों के खिलाफ अफसरों को सख्ती दिखाने में कसर नहीं रखनी चाहिए। लेकिन इसका बिल्कुल ही उल्टा हो रहा है। वे झोलाछापों के प्रति नरमी बरतने में कसर नहीं छोड़ते। शिकायतों पर जब कभी स्वास्थ्य विभाग के अफसर किसी झोलाछाप के यहां पहुंचते भी हैं तो सिर्फ नोटिस थमाकर आ जाते हैं। बाद में झोलाछाप डॉक्टर अफसरों से संपर्क करता है और विभागीय कर्मियों की जेबें गर्म करने के बाद उसका कसूर ही खत्म हो जाता है।झोलाछापों पर अंकुश लगाने में सरकारी अस्पतालों के इंतजाम भी नाकाफी हैं। यदि सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टर व उपचार मिल जाए तो मरीज भटकने को मजबूर न हो। लेकिन स्थिति यह है कि प्राथमिक व सामुदायिक केंद्र में कहीं डॉक्टरों की कमी है तो कहीं पहुंचते ही नहीं हैं। साथ ही दोपहर तक ही सेवाएं मिल पाती हैं। ऐसी स्थिति में मरीजों के लिए झोलाछाप ही विकल्प बचते हैं।