मल्हनी विधानसभा में होगा दिलचस्प मुकाबला, कैबनेट मंत्री और पूर्व सांसद की प्रतिष्ठा दांव पर
https://www.shirazehind.com/2017/03/blog-post_244.html
जौनपुर। बुधवार की सूबह से वोट डाला जायेगा। जिले के नौ विधानसभाओ में सबसे दिलचस्प मुकाबला मल्हनी विधानसभा सीट पर चल रहा है। इस सीट पर कैबिनेट मंत्री पारसनाथ यादव समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ रहे है। भाजपा से सतीश सिंह ताल ठोक रहे हे। बसपा ने युवा प्रत्याशी विवेक यादव पर दांव अजमायी है। उधर निषादराज पार्टी से पूर्व सांसद धनंजय सिंह अपनी सीट को सपा से वापस लेने के लिए पूरे दमखम से लगे हुए है।
सपा प्रत्याशी पारसनाथ यादव राजनीति के पुराने पहलवान है। वे पार्टी का वोट बैंक और अपने 32 वर्षो के अनुभव के सहारे सपा की साईकिल लखनऊ तक ले जाने का प्रयास कर रहे है। उधर भाजपा के सतीश सिंह छात्र जीवन से राजनीति में कदम रख दिया था। वे 1988 में टीडी इण्टर कालेज के अध्यक्ष चुने गये थे उसके बाद वे एबीवीपी बजरंग दल विश्व हिन्दू परिषद के बाद भाजपा की राजनीति किया। बाद में वे सपा का दामन थाम लिया था। एक वर्ष पूर्व हुए एमएलसी चुनाव में सतीश सिंह पुनः भाजपा में शामिल हो गये। भाजपा ने उन्हे टिकट दिया लेकिन उन्हे हार का मुंह देखना पड़ा। चुनाव हारने के बाद से सतीश सिंह भाजपा के लिए काम करना शुरू कर दिया। पार्टी ने उन्हे इस बार मल्हनी विधानसभा चुनाव मैदान में उतार दिया है। सतीश मोदी की लहर बीजेपी का वोट बैंक और सरल स्वभाव के सहारे इस सीट कमल खिलाने के फिराक में है।
उधर बसपा प्रत्याशी विवेक यादव पार्टी का वोट बैंक के साथ ही सपा के वोट बैंक में भी जबरदस्त सेधमारी कर रहे है।
2002 से 2012 तक इस सीट पर पूर्व सांसद धनंजय सिंह का कब्जा था। धनंजय 2002 में पहलीबार इस सीट पर निर्दल प्रत्याशी के रूप चुनाव लड़कर विधायक बने थे। 2007 चुनाव वे राष्ट्रीय लोकदल के बैनर तले चुनाव लड़कर अपना कब्जा बरकरार रखा। 2009 लोकसभा चुनाव में धनंजय सिंह हाथी पर सवार हो गये। बसपा के टिकट पर जौनपुर के सांसद चुने गये। यह सीट खाली होने के बाद धनंजय ने अपने पिता राजदेव सिंह को इस सीट पर बीएसपी का विधायक बनवा दिया। 2012 के चुनाव में वे बेलाव घाट डबल मर्डर केश में जेल चले गये। वह चुनाव धनंजय सिंह की पत्नी जागृति सिंह निर्दल प्रत्याशी के रूप मैदान में उतरी थी। डा0 जागृति खुद तो जीत नही पायी लेकिन बसपा के पाणिनी सिंह को हरा दी थी।
इस चुनाव में धनंजय सिंह खुद एक बार फिर विधायक बनने का सपना लेकर मैदान में है। यह चुनाव उनके राजनीतिक कैरियर की दशा और दिशा तय करेगी। धनंजय सिंह निषादराज पार्टी से चुनाव लड़ रहे है।
इस सीट पर जीत का सेहरा किसके सिर पर बधेगा यह तो 11 मार्च को मतगणना के बाद ही पता चल पायेगा।
सपा प्रत्याशी पारसनाथ यादव राजनीति के पुराने पहलवान है। वे पार्टी का वोट बैंक और अपने 32 वर्षो के अनुभव के सहारे सपा की साईकिल लखनऊ तक ले जाने का प्रयास कर रहे है। उधर भाजपा के सतीश सिंह छात्र जीवन से राजनीति में कदम रख दिया था। वे 1988 में टीडी इण्टर कालेज के अध्यक्ष चुने गये थे उसके बाद वे एबीवीपी बजरंग दल विश्व हिन्दू परिषद के बाद भाजपा की राजनीति किया। बाद में वे सपा का दामन थाम लिया था। एक वर्ष पूर्व हुए एमएलसी चुनाव में सतीश सिंह पुनः भाजपा में शामिल हो गये। भाजपा ने उन्हे टिकट दिया लेकिन उन्हे हार का मुंह देखना पड़ा। चुनाव हारने के बाद से सतीश सिंह भाजपा के लिए काम करना शुरू कर दिया। पार्टी ने उन्हे इस बार मल्हनी विधानसभा चुनाव मैदान में उतार दिया है। सतीश मोदी की लहर बीजेपी का वोट बैंक और सरल स्वभाव के सहारे इस सीट कमल खिलाने के फिराक में है।
उधर बसपा प्रत्याशी विवेक यादव पार्टी का वोट बैंक के साथ ही सपा के वोट बैंक में भी जबरदस्त सेधमारी कर रहे है।
2002 से 2012 तक इस सीट पर पूर्व सांसद धनंजय सिंह का कब्जा था। धनंजय 2002 में पहलीबार इस सीट पर निर्दल प्रत्याशी के रूप चुनाव लड़कर विधायक बने थे। 2007 चुनाव वे राष्ट्रीय लोकदल के बैनर तले चुनाव लड़कर अपना कब्जा बरकरार रखा। 2009 लोकसभा चुनाव में धनंजय सिंह हाथी पर सवार हो गये। बसपा के टिकट पर जौनपुर के सांसद चुने गये। यह सीट खाली होने के बाद धनंजय ने अपने पिता राजदेव सिंह को इस सीट पर बीएसपी का विधायक बनवा दिया। 2012 के चुनाव में वे बेलाव घाट डबल मर्डर केश में जेल चले गये। वह चुनाव धनंजय सिंह की पत्नी जागृति सिंह निर्दल प्रत्याशी के रूप मैदान में उतरी थी। डा0 जागृति खुद तो जीत नही पायी लेकिन बसपा के पाणिनी सिंह को हरा दी थी।
इस चुनाव में धनंजय सिंह खुद एक बार फिर विधायक बनने का सपना लेकर मैदान में है। यह चुनाव उनके राजनीतिक कैरियर की दशा और दिशा तय करेगी। धनंजय सिंह निषादराज पार्टी से चुनाव लड़ रहे है।
इस सीट पर जीत का सेहरा किसके सिर पर बधेगा यह तो 11 मार्च को मतगणना के बाद ही पता चल पायेगा।