अब कैसेट में ही सुने जाते हैं फगुआ गीत

जौनपुर। समय के साथ माटी से जुड़ी लोकविधा फगुवा गीत की परंपरा अब गांवों में धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है, जिसको लेकर समाज के लोग चिन्तित है। बसंत के आगमन पर गांवों के मंदिरों से लेकर लोगों के घरों तक ढोल मजीरा के बीच फाग के गीत गाए जाते थे।  गां के वृद्ध जनों ने कि बताया कि लोक विधा से फाग गीत का लुप्त होना चिता का विषय है। इनका कहना है कि अब सिर्फ कैसेट पर ही फाग की धुन धुनाई सुनाई देती है, जिसे युवा वर्ग ही पसंद कर रहा है। इससे समाज का बुद्धिजीवी वर्ग इत्तेफाक नहीं रख रहा हैं। फाग गीत के दूर होने से से गांव की परंपरा पर ग्रहण लगता जा रहा है। इस विधा को बचाने के लिए लोगों के जागरूक होने की आवश्यकता है। बताते है कि पहले गांव में जब किसी के वहां फाग गीत गाया जाता था तो उस समय सभी लोग एक साथ अबीर-गुलाल लगाकर रात भर इसका आनंद उठाते थे। आज फूहड़पन के बीच फाग गीत सिर्फ कैसेटों सुने जा रहे हैं। उपभोक्तावाद के बढ़ते प्रचलन के कारण यह विकृति आई है

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