धनंजय सिंह का चुनाव लड़ना तय, पार्टी का झण्डा बैनर तय नही
https://www.shirazehind.com/2017/01/blog-post_225.html
जौनपुर। बसपा के पूर्व सांसद धनंजय सिंह का मल्हनी विधानसभा से चुनाव लड़ना तय है। वह किस पार्टी के झण्डा बैनर तले चुनाव मैदान में उतरेंगे यह अभी तय नही है। सूत्रो से मिली जानकारी के अनुसार वे कई पार्टियों के सम्पर्क में है। जल्द ही बात बन जायेगी। यदि किसी पार्टी ने टिकट नही दिया तो वे निर्दल ही ताल ठोकेगें।
सन् 2002 विधानसभा चुनाव में पहलीबार राजनीत में कदम रखने वाले धनंजय सिंह रारी सीट से विधायक चुने गये थे। उसके बाद वे लोकसभा चुनाव 2004 में कांग्रेस लोक जनशक्ति पार्टी के गठबंधन से सांसद का चुनाव लड़ा। इस चुनाव में खुद तो जीत नही पाये थे लेकिन भाजपा प्रत्याशी केन्द्रीय गृहराज्यमंत्री स्वामी चिन्मयानंद के हार का कारण जरूर बने थे। 2007 विधानसभा चुनाव में वे रारी सीट से ही दूसरी बार विधायक चुने गये। उसके बाद 2009 लोकसभा चुनाव में वे हाथी पर सवार हो गये। मायावती ने उन्हे जौनपुर सीट से अपना प्रत्याशी बनाया। इस बार वे दिल्ली पहुंच गये। अपनी सीट खाली होने के बाद उन्होने अपने पिता राजदेव सिंह को बसपा से टिकट दिलाकर उन्हे विधायक बना दिया। 2012 विधानसभा चुनाव से पूर्व उनका मायावती से अनबन हो गयी। इसी बीच धनंजय सिंह बेलाव घाट डबल मर्डर केश में जेल चले गये। धनंजय के जेल जाने के बाद 2012 चुनाव में उनकी पत्नी जागृति सिंह ने मोर्चा सम्भालते हुए निर्दल प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरी थी। वे खुद 51 हजार से अधिक मत पाकर दूसरे स्थान पर रही साथ ही बसपा प्रत्याशी पाणिनी सिंह की राजनितिक हत्या कर डाली। 2014 लोकसभा चुनाव के पहले धनंजय की ग्रहदशा फिर खराब हो गयी। नौकरानी की हत्या करने के आरोप में वे पत्नी जागृति सिंह सहित जेल पहुंच गये। जेल रहते हुए धनंजय सिंह खुद निर्दल प्रत्याशी के रूप में जौनपुर लोकसभा से निर्दल प्रत्याशी के रूप चुनाव लड़े। लेकिन मोदी की आधी में उनकी जमानत जब्त हो गयी।
जेल से निकलने के बाद धनंजय सिंह का बसपा से कुछ अच्छे रिश्ते बनते दिखाई पड़ी। धनंजय के इस नये रिश्ते पर किसी की बुरी नजर पड़ गयी। बसपा ने उन्हे बाहर का रास्ता दिखा दिया।
उसके बाद धनंजय सिंह कई पार्टियों के सम्पर्क में है लेकिन आज तक तस्वीर साफ नही हो पायी है। उनके कई करीबी समर्थको से बातचीत किया गया तो सभी ने कहा कि धनंजय सिंह मल्हनी विधानसभा से चुनाव जरूर लडेगे।
सन् 2002 विधानसभा चुनाव में पहलीबार राजनीत में कदम रखने वाले धनंजय सिंह रारी सीट से विधायक चुने गये थे। उसके बाद वे लोकसभा चुनाव 2004 में कांग्रेस लोक जनशक्ति पार्टी के गठबंधन से सांसद का चुनाव लड़ा। इस चुनाव में खुद तो जीत नही पाये थे लेकिन भाजपा प्रत्याशी केन्द्रीय गृहराज्यमंत्री स्वामी चिन्मयानंद के हार का कारण जरूर बने थे। 2007 विधानसभा चुनाव में वे रारी सीट से ही दूसरी बार विधायक चुने गये। उसके बाद 2009 लोकसभा चुनाव में वे हाथी पर सवार हो गये। मायावती ने उन्हे जौनपुर सीट से अपना प्रत्याशी बनाया। इस बार वे दिल्ली पहुंच गये। अपनी सीट खाली होने के बाद उन्होने अपने पिता राजदेव सिंह को बसपा से टिकट दिलाकर उन्हे विधायक बना दिया। 2012 विधानसभा चुनाव से पूर्व उनका मायावती से अनबन हो गयी। इसी बीच धनंजय सिंह बेलाव घाट डबल मर्डर केश में जेल चले गये। धनंजय के जेल जाने के बाद 2012 चुनाव में उनकी पत्नी जागृति सिंह ने मोर्चा सम्भालते हुए निर्दल प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरी थी। वे खुद 51 हजार से अधिक मत पाकर दूसरे स्थान पर रही साथ ही बसपा प्रत्याशी पाणिनी सिंह की राजनितिक हत्या कर डाली। 2014 लोकसभा चुनाव के पहले धनंजय की ग्रहदशा फिर खराब हो गयी। नौकरानी की हत्या करने के आरोप में वे पत्नी जागृति सिंह सहित जेल पहुंच गये। जेल रहते हुए धनंजय सिंह खुद निर्दल प्रत्याशी के रूप में जौनपुर लोकसभा से निर्दल प्रत्याशी के रूप चुनाव लड़े। लेकिन मोदी की आधी में उनकी जमानत जब्त हो गयी।
जेल से निकलने के बाद धनंजय सिंह का बसपा से कुछ अच्छे रिश्ते बनते दिखाई पड़ी। धनंजय के इस नये रिश्ते पर किसी की बुरी नजर पड़ गयी। बसपा ने उन्हे बाहर का रास्ता दिखा दिया।
उसके बाद धनंजय सिंह कई पार्टियों के सम्पर्क में है लेकिन आज तक तस्वीर साफ नही हो पायी है। उनके कई करीबी समर्थको से बातचीत किया गया तो सभी ने कहा कि धनंजय सिंह मल्हनी विधानसभा से चुनाव जरूर लडेगे।