प्रकृति का उत्सव है शारदीय नवरात्र
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जौनपुर। जिले के तहसील, ब्लाक सहित विभिन्न बाजारो व ग्रामीणांचलो में पूजा पण्डालो को रंग-बिरंगे विद्युत रोशनियां से सजाया जा रहा है। मां की प्रतिमाओ के पहुंचने पर लोग उत्साहित हैं और जोरदार तैयारियां चल रही है। नवरात्र पर प्रकाश डालते हुए संत बाबा बालकदास ने बताया कि शारदीय नवरात्र वास्तव में प्रकृति का उत्सव है। नारी का अनोखा दर्शन है। देवी के नौ स्वरूपो में प्रथम स्वरूप मां शैल पुत्री का है। इसलिए प्रकृति का संरक्षण कर¨। प्रकृति को मां की तरह पूजो । उसका तिरस्कार मत करो । यही शैलपुत्री की आराधना का मंत्र है। देवी का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी, तीसरी चन्द्र घण्टा, चौथी कुष्मांडा, पांचवी स्कन्दमाता, छठीं कात्यायनी, सातवीं कालरात्रि , आठवीं महागोरी है। इसमें देवी भगवती के पांच स्वरूप शिवदूती के हैं। शृंष्टि से लेकर जगत की मातृशक्ति के ये रूप प्रकृति और प्रवृत्ति के रूप हैं। यह रूप सदा और सर्वदा जीव के साथ-साथ चलते हैं। हर जीव-जन्तु के साथ-साथ यह शक्ति चलती है। कात्यायनी का स्वरूप कुछ हटकर है। आमतौर पर पिता का कुल पुत्र से चलता है बेटी से नहीं। लेकिन कात्यायन ऋषि की पुत्री के रूप में आयी और पुत्री से ही वंश चला। सातवां रूप कालरात्रि का है काली काल है। काल को जीतने का भी काम काली मां ही करती है। भगवान शिव का काम भी यही देवी आसान करती है। आठवां स्वरूप महागौरी का है यह नारी शक्ति का मुख्य भाव है। गृहलक्ष्मी का भाव है। इसलिए नारी शक्ति स्वरूपा समझो नौवी सिद्धिदात्रि देवी कहती हैं हे जीव मेरे बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता मैं चारो ओर हूं। मुझसे ही जगत है मुझसे ही ब्रह्माण्ड है तथा यह शृष्टि और समष्टि है। वास्तविक अर्थों में यही नवरात्र की शक्ति है इसलिए नवरात्र में अपनी ऊर्जा को पहचानो और दूसरो की ऊर्जा का सम्मान करे क्यो कि शारदीय नवरात्र हिन्दू धर्मावलम्बियो के वर्ष के आखिरी माह से पूर्व प्रारम्भ ह¨ती है। बच्चे का प्रारम्भ भी मां से ही होता है। इसलिए कि मां ही जीवन है। वही जीवन की गति है। मां के चरणों में ही स्वर्ग है। मां स्वयं में तीर्थ है। मां स्वयं में इतिहास है। मां ही जीवन है। मां का ही दूसरा नाम देवी है इसलिए मां कहती है कि जो मेरा जिस रूप में ध्यान करता है मैं उसी रूप में उसके साथ होती हैं।