आसन श्रृंखला: प्रारंभिक- ४


योगी अश्विनी
सनातन क्रिया में दिए गए  प्रारंभिक आसन हमारे शरीर की नाड़ियों (सूक्ष्म प्रणालियों) को शुद्ध करने में अत्यंत सक्षम हैं| इस श्रृंखला में अब तक हमने शरीर के जोड़ों की ताकत के लिये विभिन्न आसनों पर चर्चा की| जोड़ों में प्राण के अवरोध से हीे शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं, इसलिए इन आसनों का नियमित अभ्यास शरीर को स्वस्थ, तेजस्वी एवं उर्जात्मक बनाता है|

सबसे पहले अपने पैर सीधे फैलाकर बैठें| अपनी पीठ सीधी रखें और आपने दोनों पैरों और एड़ियों को जोड़ें| अपनी हथेलियों को ज़मीन पर कूल्हों के समीप इस तरह रखें, जिसमें आपके हाथों की अंगुलियाँ आपके शरीर से विपरीत दिशा में हों| यदि आपके लिए इस अवस्था में बैठना कठिन हो तो आप वज्रासन में भी बैठ सकते हैं| वज्रासन में अाप पैरों को इस तरह मोड़कर बैठें कि कूल्हे आपकी एड़ियों पर टिके होें और आपके पंजों के अंगूठे एक दूसरे के ऊपर हों|

अब अपने दोनों हाथों के बीच की तीन उँगलियों को अपने दोनों कंधों पर रखें और अपने दोनों हाथों को आगे की दिशा में चक्रानुक्रम करें| इस चक्रानुक्रम के दौरान अपनी दोनों कोहनियों को अपने चहरे के सामने जोड़ें और हाथ पीछे ले जाने पर दोनों हाथों के पंजों के पीछे के भाग एक दूसरे से जोड़ें| हर पूवार्ध चक्रानुक्रम के दौरान श्वास को अंदर लें और उत्तरार्ध चक्रानुक्रम के दौरान श्वास को बाहर छोडें| यही प्रक्रिया सात बार घड़ी की सुई की दिशा में और फिर सात बार घड़ी की सुई की विपरीत दिशा में करें |

अब हम आँखों के चक्रानुक्रम की ओर बढ़ते हैं| अपने  नेत्रगोलकों का सात बार घड़ी की सुई की दिशा में और फिर सात बार उसकी विपरीत दिशा में चक्रानुक्रम करें, ध्यान रखें कि हर चक्रानुक्रम के पूर्वार्ध में श्वास को अंदर लें एवं उत्तरार्ध में श्वास को बाहर छोड़ें|

इस आसन श्रृंखला का अंतिम आसन गर्दन का चक्रानुक्रम है| अपनी गर्दन को घड़ी की सुई की दिशा में सात बार चक्रानुक्रम करें, हर चक्रानुक्रम के पूर्वार्ध में श्वास को अंदर लें तथा उत्तरार्ध में श्वास को बाहर छोड़ें| इसी प्रक्रिया को घड़ी की विपरीत दिशा में दोहराएँ | ये आसान से प्रतीत होनेवाले चक्रानुक्रम आपके शरीर के विभिन्न जोड़ों में होने वाले ऊर्जा के अवरोधों को दूर करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं | अधिक लाभ के लिए इन आसनों को करते समय अपनी आँखें बंद रखें तथा अपना पूर्ण ध्यान शरीर के भीतर उस भाग पर रखें, जिसका चक्रानुक्रम किया जा रहा है|

इस लेख के साथ प्रारंभिक आसनों की चर्चा पूर्ण होती है| इन आसनों का प्रतिदिन अभ्यास करने से शरीर स्वस्थ एवं रोगमुक्त रहता है| योग के साधक के लिए इन आसनों का नियमित अभ्यास अनिवार्य है, क्योंकि यही आसन उसे योग साधना की उच्च श्रेणी की क्रियाओं के  लिए तैयार करते  हैं |

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