इतिहास में सिमट गये जाने माने शायर

 शशिराज सिन्हा
जौनपुर । उर्दू अदब के नामी-गिरामी हस्तियों ने कभी मछलीशहर को राष्ट्रीय क्षितिज पर पहचान दिलाई। इस दौर में लोग उन्हें भूलते जा रहे हैं। कई शायरों एवं साहित्यकारों की कृतियों के प्रकाशित न होने से उनकी साहित्य के क्षेत्र में पहचान भी समाप्त हो रही है। 19वीं सदी में मछलीशहर के दर्जनों शायरों एवं कवियों ने अपनी कलम से इस विधा को सजाया-संवारा। उर्दू कविता में कई विधाएं हैं, मसलन हम्द, नात, नज्म, रुबाई, कता और गजल आदि। इस कस्बे में जन्में शायरों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से देश में अपनी पहचान बनाई। यहां की मिट्टी से इतना लगाव था कि बुलंदी पर पहुंचने के बाद भी मछलीशहरी शब्द को अपने नाम से लगाए रखा। जानकार लोगों का कहना है कि हादी मछलीशहरी पाकिस्तान चले गए, मगर वतन से लगाव अंतिम सांस तक रहा। इनकी दीवान नामक कृति छपी थी। ख्याति प्राप्त शायर सलाम मछलीशहरी, आदिल, मतीन, होश आदि ने मछलीशहर को अपने नाम से जोड़े रखा था। नाम व शोहरत से दूर रहने वाले इन शायरों की कृतियां इनके वंशजों के पास सुरक्षित बताई जा रही है। मगर आधुनिकता के दौर में उन्हें धीरे-धीरे खोते जा रहे हैं। यही नहीं हिंदी के क्षेत्र में चर्चित शंभूनाथ, रामजनक सिंह विदेह, हरिहर सिंह हरी तथा साहेबदीन भी इतिहास के पन्नों की ही शोभा बनकर रह गए हैं। इनकी कृतियां ढूंढने पर भी नहीं मिल रही है। थाती न सहेजे जाने से ये साहित्यकार व शायर अपने ही वतन में बेगानेपन की अनुभूति कर रहे हैं।

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