छात्रों की प्रतिभाओं को कब्र में दफन कर रहा है पूर्वांचल विश्वविद्यालय,, वीसी ने कहा छात्रों को फेल पास करना शिक्षकों का है विवेकाधीन अधिकार
https://www.shirazehind.com/2016/06/blog-post_431.html
हमेशा भ्रष्टार के मामले में सुर्खियों मे रहने वाला वीर बहादुर सिंह पूर्वाचंल विश्वविद्यालय जौनपुर अब तो छात्रो की प्रतिभाओं को कब्र में दफन करने का काम कर रह है। इसका पुख्ता प्रमाण मिला है इस बार घोषित किये गये रिजर्ट में। पिछले वर्ष के परीक्षा परिणाम में जिस छात्र को पास होना चाहिए था उसे फेल कर दिया गया जिसे फेल होना चाहिए उसे पास कर दिया गया। बीएससी के कई ऐसे छात्रों को परीक्षक ने मात्र पांच नम्बर दिया है। जब इन छात्रों ने आरटीआई के जरिये सूचना मांगकर अपनी कापी हासिल करके एक रिटायर्ड शिक्षक से कापियों की जांच करायी तो पता चला उसे पांच नही बल्की 38 नम्बर मिलने चाहिए था। इन्ही बच्चो को इस बार के आये परीक्षा परिणाम में फेल कर दिया गया है। अब आप इसी से अंदाजा लगा सकते है कि पूर्वाचंल विश्वविद्यालय प्रतिभावान छात्रों का किस तरह से दमन कर रहा है। उधर कुलपति अपना दामन पाक साफ बताते हुए कहा कि हम परीक्षा से लेकर मूल्याकंन तक पूरी सुचिता से कार्य कर रहे है। इतना ही नही वीसी ने साफ कहा कि छात्रो को फेल पास करना परीक्षक का विवेकाधीन अधिकार है। विश्वविद्यालय की इस कारस्तानी से छात्रों को मानसिक शारीरिक और आर्थिक यातनाएं झेलनी पड़ रही है।
स्थानपा काल से ही वीर बहादुर सिंह पूर्वाचंल विश्वविद्यालय को भ्रष्टार का ऐसा दीमक लगा है जो अब तक समाप्त ही नही हो रहा है। कभी बीएड परीक्षा में तो कभी सीपीएमटी की प्री परीक्षा में भारी धांधली कभी ठेके पर कापियों की जांचने के मामले में सुर्खियों में रहा है। अब तो यह विश्वविद्यालय प्रतिभावान छात्रों की प्रतिभा को धूल धूषित कर रहा है। इस विद्यालय की कारस्तानी के चलते भारी संख्या में छात्रों को फेल होना पड़ा है। इसका उदाहरण आप देख सकते है बीएससी मैथ के छात्र पीयूष के कापियों के मूल्याकंन में। पीयूष की पिछले वर्ष की परीक्षा में परीक्षक ने मात्र पांच अंक दिया था। जबकि उसने जो अनसर किया था उसके अनुसार 35 से चालिस नम्बर मिलना चाहिए था। पीयूष इसकी शिकायत कुलपति से किया तो उन्होने कहा कि स्कूटनी करा लो या श्रेणी सुधार परीक्षा करा लो। पीयूष ने पहले स्कूटनी कराया तो परीक्षा परिणाम में कोई सुधार नही आया तो उसने श्रेणी सुधार परीक्षा देकर 35 नम्बर प्राप्त किया। इतने पर भी वह हकीकत की तहकीकात के लिए आरटीआई के जरिये अपने कापी प्राप्त करके पहले किताबो से मिलान किया और एक रिटायर्ड मैथ के टीचर से जांच कराया तो उसे 38 नम्बर मिलना चाहिए था। पीयूष के साथ शिक्षको की नाईसाफी नही रूकी उसे बीएससी सेंकेड ईयर की परीक्षा परिणाम में काफी कम नम्बर देकर कर उसकी दुश्वारिया बढ़ा दिया है। पीयूष एलौता छात्र नही है ऐसे हजारो छात्र है जो नखादे परीक्षको के शिकार होकर मानसिक शारीरिक और आर्थिक यातनाएं झेल रहे है। उधर विश्वविद्यालय प्रशासन अपने कापियों का मूल्याकंन करने वाले शिक्षको के पक्ष खड़ा हो गया है। कुलपति पीयूष रंजन अग्रवाल ने साफ कहा कि मैं परीक्षा से लेकर मूल्याकंन तक का कार्य पूरी सुचिता से सम्पन्न करा रह हूं। अगर किसी छात्र को कम नम्बर मिला है वह स्कूटनी करा सकता है या श्रेणी सुधार परीक्षा में शामिल हो सकता है। पीयूष की कापियों का मूल्याकंन करने वाले रिटायर्ड शिक्षक डा0 शोभनाथ सिंह ने साफ कहा कि पीयूष के साथ नाईसांफी हुई है। उन्होने साफ कहा कि अब टीचर कापियों जांचने के लिए नही बल्की पैसा कमाने के लिए आते है जिसके कारण वे पास होने वाले छात्र को फेल करते है फेल होने वाले छात्रो को पास कर दे रहे है। विश्वविद्यालय की इस करस्तानी के कारण हजारो छात्रो का भविष्य अंधकार में हो गया है। यह तो संयोग अच्छा है कि ये लोग ग्रेजुएट के समझदार छात्र है अन्यथा अब तक नासमझ शिक्षको के चलते अब आत्महत्या कर चुके होते। पीयूष मीडिया के माध्यम से मांग किया कि विश्वविद्यालय के सभी शिक्षको के डिग्री की जांच होनी चाहिए।
स्थानपा काल से ही वीर बहादुर सिंह पूर्वाचंल विश्वविद्यालय को भ्रष्टार का ऐसा दीमक लगा है जो अब तक समाप्त ही नही हो रहा है। कभी बीएड परीक्षा में तो कभी सीपीएमटी की प्री परीक्षा में भारी धांधली कभी ठेके पर कापियों की जांचने के मामले में सुर्खियों में रहा है। अब तो यह विश्वविद्यालय प्रतिभावान छात्रों की प्रतिभा को धूल धूषित कर रहा है। इस विद्यालय की कारस्तानी के चलते भारी संख्या में छात्रों को फेल होना पड़ा है। इसका उदाहरण आप देख सकते है बीएससी मैथ के छात्र पीयूष के कापियों के मूल्याकंन में। पीयूष की पिछले वर्ष की परीक्षा में परीक्षक ने मात्र पांच अंक दिया था। जबकि उसने जो अनसर किया था उसके अनुसार 35 से चालिस नम्बर मिलना चाहिए था। पीयूष इसकी शिकायत कुलपति से किया तो उन्होने कहा कि स्कूटनी करा लो या श्रेणी सुधार परीक्षा करा लो। पीयूष ने पहले स्कूटनी कराया तो परीक्षा परिणाम में कोई सुधार नही आया तो उसने श्रेणी सुधार परीक्षा देकर 35 नम्बर प्राप्त किया। इतने पर भी वह हकीकत की तहकीकात के लिए आरटीआई के जरिये अपने कापी प्राप्त करके पहले किताबो से मिलान किया और एक रिटायर्ड मैथ के टीचर से जांच कराया तो उसे 38 नम्बर मिलना चाहिए था। पीयूष के साथ शिक्षको की नाईसाफी नही रूकी उसे बीएससी सेंकेड ईयर की परीक्षा परिणाम में काफी कम नम्बर देकर कर उसकी दुश्वारिया बढ़ा दिया है। पीयूष एलौता छात्र नही है ऐसे हजारो छात्र है जो नखादे परीक्षको के शिकार होकर मानसिक शारीरिक और आर्थिक यातनाएं झेल रहे है। उधर विश्वविद्यालय प्रशासन अपने कापियों का मूल्याकंन करने वाले शिक्षको के पक्ष खड़ा हो गया है। कुलपति पीयूष रंजन अग्रवाल ने साफ कहा कि मैं परीक्षा से लेकर मूल्याकंन तक का कार्य पूरी सुचिता से सम्पन्न करा रह हूं। अगर किसी छात्र को कम नम्बर मिला है वह स्कूटनी करा सकता है या श्रेणी सुधार परीक्षा में शामिल हो सकता है। पीयूष की कापियों का मूल्याकंन करने वाले रिटायर्ड शिक्षक डा0 शोभनाथ सिंह ने साफ कहा कि पीयूष के साथ नाईसांफी हुई है। उन्होने साफ कहा कि अब टीचर कापियों जांचने के लिए नही बल्की पैसा कमाने के लिए आते है जिसके कारण वे पास होने वाले छात्र को फेल करते है फेल होने वाले छात्रो को पास कर दे रहे है। विश्वविद्यालय की इस करस्तानी के कारण हजारो छात्रो का भविष्य अंधकार में हो गया है। यह तो संयोग अच्छा है कि ये लोग ग्रेजुएट के समझदार छात्र है अन्यथा अब तक नासमझ शिक्षको के चलते अब आत्महत्या कर चुके होते। पीयूष मीडिया के माध्यम से मांग किया कि विश्वविद्यालय के सभी शिक्षको के डिग्री की जांच होनी चाहिए।