सूचना कानून को ठेंगा दिखा रहे जनसूचना अधिकारी

उजागर हो रहा है अधिकारियों का नक्कारापन
केराकत, जौनपुर । जनसूचना अधिकार कानून को भले ही सशक्त और प्रभावशाली बनाने की बात होती हो लेकिन हकीकत यह है कि खुद अधिकारी इस महत्वाकांक्षी कानून की धज्जियां उड़ाने का काम कर रहे हैं। जवाबदेही से बचने के लिये अधिकारी न केवल इस कानून की हवा निकाल रहे हैं, बल्कि टाल-मटोल का रास्ता भी अख्तियार करते हुये सही सूचना देने की बजाय अपनी गर्दन बचाने हेतु एक-दूसरे के कंधे पर जवाबदेही तय करके अपना बचाव कर रहे हैं।
ऐसा ही एक मामला केराकत तहसील क्षेत्र का है जिसमें सीधे तौर पर न केवल सूचना कानून की अवहेलना हुई है, अपितु अधिकारियों का नक्कारापन भी साफ तौर पर उजागर हो रहा है। बताते चलें कि स्थानीय क्षेत्र के तरियारी गांव निवासी अमित कुमार ने जनसूचना अधिकार अधिनियम 2005 के अर्न्तगत पिछले वर्ष 17 दिसम्बर को जनसूचना अधिकारी/उपजिलाधिकारी केराकत से दो बिंदुओं पर जानकारी चाही थी।
उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत ग्राम पंचायत तरियारी में ग्राम प्रधान के चुनाव में प्रयुक्त एवं आवंटित मतों की संख्या, बूथवार, मतपत्र पर अंकित नम्बर के साथ प्रारूप में देने सहित ग्राम प्रधान तरियारी के प्रधान पद पर निर्वाचित शीला को प्राप्त मतपत्रों की छाया प्रति जिन पर मतपत्रों का सीरियल नम्बर पठनीय हो, की जानकारी मांगी थी जिसे आज तक उपलब्ध नहीं कराया गया। 
मजे की बात तो यह है कि इस मामले को लेकर वह उपजिलाधिकारी केराकत, खण्ड विकास अधिकारी केराकत व जिलाधिकारी कार्यालय से भी फरियाद लगा चुका है लेकिन सभी ने कांनों में तेल डाल रखा है। हद तो यह है कि जवाब संतोषजनक न देकर एक-दूसरे के कंधे पर जवाबदेही का भार सौंपा जा रहा है जिसे ढोने को कोई तैयार नहीं है।
इसके अलावा 22 दिसम्बर 2005 को अमित कुमार ने जनसूचना अधिकारी राज्य निर्वाचन आयोग उत्तर प्रदेश सहित जिलाधिकारी से भी इन्हीं दोनों बिंदुओं पर 28 दिसम्बर 2015 को जनसूचना अधिकार कानून के तहत जानकारी मांगी थी जिसके जवाब में राज्य निर्वाचन आयोग उत्तर प्रदेश पंचायत एवं नगरीय निकाय ने प्रभारी अधिकारी जनसूचना अधिकारी जिला निर्वाचन कार्यालय पंचायत एंव नगरीय निकाय जौनपुर को सूचना देने के लिये अन्तरित किया था। मजे की बात है कि सभी ने संतोषजनक जवाब देने के बजाय मामले को लटकाये ही रखने में रूचि लिया है।
इस मामले में राज्य निवार्चन आयोग सहित जिलाधिकारी का आदेश भी मातहत अधिकारियों के लिये कोई मायने नहीं रखता है। उपजिलाधिकारी कार्यालय खण्ड विकास अधिकारी को जानकारी देने के लिये कह रहा है तो वह इससे इनकार कर रहा है। कार्यालय कहना है कि उसके यहां कोई ऐसा अभिलेख ही नहीं है। यह तो रही अधिकारियों की कारगुजारी। ऐसे में समझा जा सकता है कि अधिकारी सूचना अधिकार कानून के प्रति गम्भीर और सजग है।

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