बंद फैक्ट्रियां बनी आवास, कबाड का धंधा जोरो पर

सतहरिया । कहने को तो औधोगिक क्षेत्र का शिलान्यास 28 जून सन 1989 मे युवाओं के धडकन स्वं राजीव गॉधी ने किया था। और 1952 मे देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं 0 जवाहर लाल नेहरू का संसदीय क्षेत्र होने के नाते उसका महत्व स्वभेव बढ जाता है। वही बसन्त नहीं पतझड के तर्ज से हो रहे विकास से पूर्वाचल का सबसे बडा औधोगिक क्षेत्र बनने का सपना उक्त मनीषि का धूल धूसरित हो रहा है। लगभग 65 फैक्ट्ररियॉ बंद पडी हुई है। जिसमे लोग आवास बना कर रहना शुरू कर दिये है। लगता है कि मलिकन फैक्ट्ररी को किराये पर उठा कर पलायन हो गये है। इधर सीडा के पास आवासीय व्यवस्था मे कोई जमीन नही और प्लाटों के आवंटन मे रोक से उघमियों के सम्मुख और दिक्कत पैदा हो गयी है। बहुतेरे फैक्ट्र्ररी ऐसे है जो किसी उधोग को लगाने के लिए आवंटन कराया है उसमे कबाड का धंधा चलाया जा रहा है। सच तो यह है कि कबाड का धंधा वहॉ जोरो से फल फूल रहा है। उधमियों का कहना है कि सुविधाओं मे 1995 मे यहॉ सेलटैक्स की छूट थी जो अब बंद हो गयी है। संसाधन मे उन्तर प्रदेश राज्य औधोगिक विकास द्वारा बनाकर जो नि शुल्क बस अडा सीडा कों दिया गया था वह भी तत्कालिक सीडा प्रबन्धक द्वारा बेच दिया गया था जो उधमियों के लिए जले पर नमक छिडक दिया। ऐसे मे सुविधाओं के अभाव मे कोई यहॉ बडी फैक्ट्ररी नही लगाना चाहता है। इस सम्बन्ध मे सीडा प्रबन्धक ने बताया कि शासन स्तर से मार्गदर्शन न आने से प्लाटों का आवंटन नही हो पा रहा है। बंद फैक्ट्ररियों पर वितीय संस्थाओें का त्रृण है। जिससे दी आवंटन मे दिक्कत हो रही है। कबाड के धंन्धो वालो कों नोटिस दी गयी है। स्वताभ दास रंजन सीडा प्रबन्धन सतहरिया

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