आत्मा विद्या के बिना सारी विद्या अधूरीः आत्मानन्द सरस्वती
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जौनपुर। संसार सागर से पार जाने के लिये आत्म विद्या सर्वोपरि नौका है। आत्मा विद्या के बिना सारी विद्या अधूरी है। आत्मा मृत्यु जन्म रोग की गति से परे है। मनुष्य का सच्चा स्वरूप आत्मा ही है। संसार का सुख साधन जन्य है। आत्मा स्वयं सिद्ध सुख है। आत्मा का निर्मल स्वरूप ही परमात्मा है। उक्त विचार पूर्वांचल की शक्तिपीठ मां शीतला चैकियां धाम में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन महाराष्ट्र से आये परमपूज्य संत शिरोमणि आत्म प्रकाश ‘आत्मानन्द सरस्वती जी’ ने व्यक्त किया। उन्होंने बताया कि नाव पानी में है जहां वह तब तक सुरक्षित है जब तक नाव में पानी नहीं आता है। संसार में मानव सुरक्षित है। मानव के अंदर संसार आ जाने पर बुरे कर्मों का सिलसिला जारी हो जाता है। जीव व्यापारी संसार रूपी कुएं आयु रूपी डाली को पकड़कर लटक जाता है। दिन-रात रूपी चूहे, आयु रूपी डाली काट रहे हैं। काल रूपी सांप संसार कुएं में गिरने पर जीव रूपी व्यापारी को खा जाता है। इस दौरान बामन भगवान शुक्रचार राजा बली की झांकी प्रस्तुत की गयी जिसे लोगों ने खूब सराहा तथा वह आकर्षण का केन्द्र बना रहा। इस अवसर पर राजेन्द्र गुप्ता, हनुमान त्रिपाठी, मदन गुप्ता, राजेश गुप्ता, संजय गुप्ता, विनोद मोदनवाल, आचार्य बाल गोविन्द पाण्डेय, विपिन माली मौजूद रहे।