IAS बनने का सपना छोड़ इंजीनियर अपराजिता बनीं जिला पंचायत सदस्य
https://www.shirazehind.com/2015/11/ias.html
वाराणसी। चिरईगांव ब्लॉक के दीनापुर की मूल निवासी और लेढ़ूपुर
में रहने वाली अपराजिता बीटेक इंजीनियर हैं। इंजीनियरिंग करने के बाद
उन्होंने आईएएस बनने का सपना देखा था, लेकिन उन्हें लगा कि जनप्रतिनिधि
बनकर वो बेहतर ढंग से समाज सेवा कर सकती हैं। ऐसे में उन्होंने आईएएस की
तैयारी छोड़कर जिला पंचायत सदस्य चुनाव के दंगल में कूद पड़ीं और चुनाव भी
जीत गईं। अब उनका इरादा जनसेवा करते हुए संसद तक पहुंचने की है।
अपराजिता चिरईगांव के सेक्टर-1 से जिला पंचायत सदस्य के लिए वह
निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरी थीं। उन्होंने बताया कि जिला पंचायत सदस्य
का चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने इसलिए प्राथमिकता दी, क्योंकि शहरों में
सारी सुविधाएं मिल जाती हैं, लेकिन गांवों के विकास की केवल चर्चा होती है,
दिखता नहीं है। कदम-कदम पर समस्याएं ही दिखती हैं। इन समस्याओं की ओर कोई
ध्यान भी नहीं देता। उन्होंने कहा, ‘अब जिला पंचायत सदस्य बनने के बाद
गांव और ग्रामीणों का विकास ही मेरा लक्ष्य है। युवाओं को ज्यादा से ज्यादा
राजनीति के क्षेत्र में आना चाहिए, तभी मोहल्ला, क्षेत्र, समाज, जिला,
प्रदेश और देश का विकास किया जा सकता है।’
खुद की कंपनी चलाती हैं अपराजिता
अपराजिता ने बताया कि उसने 2013 में बायो मेडिकल ट्रेड से बीटेक किया।
फिर सुंदरपुर स्थित एक नर्सिंग होम से जुड़ गईं। साथ ही 'गैंटेक
इंटरनेशनल' नाम से खुद की एक कंपनी भी शुरू की, जो अभी भी चला रही हैं।
इसमें रिमोट सिस्टम एंड एलईडी बल्ब से जुड़े काम होते हैं। अपराजिता यह
कंपनी 2011 से चला रही हैं। उन्होंने कहा, ‘इन सब के बावजूद मेरा सारा
ध्यान समाज सेवा, खास तौर पर रिमोट क्षेत्र के लोगों को बुनियादी सुविधाएं
मुहैया कराने पर रहता है। मुख्य रूप से उनकी शिक्षा और स्वास्थ्य।
जनप्रतिनिधि होने के नाते मैं महिलाओं, बच्चियों और युवतियों को उनका हक
दिलाने की कोशिश करूंगी। हर ग्रामीण की समस्या मेरी अपनी समस्या है।’
अपराजिता का परिचय
जिला पंचायत सदस्य अपराजिता अपनी प्रारंभिक शिक्षा दीनापुर प्राथमिक स्कूल से प्राप्त की। फिर विद्या विहार इंटर कॉलेज से इंटरमीडिएट किया। वह शुरू से ही पढ़ने में तेज थीं, लेकिन साथ ही समाज सेवा में उनका मन लगा रहता था। वह संकट वाले लोगों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहती हैं। अपराजिता तीन भाई-बहनों में सबसे बड़ी हैं। दोनों छोटे भाई इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं। पिता ज्ञानचंद सोनकर पेशे से डॉक्टर हैं। उन्होंने बताया कि बीएएमएस करके वह गांव में ही निजी प्रैक्टिस करते हैं। हालांकि, उन्होंने शुरुआती दौर में शिक्षक की भूमिका निभाई पर किसी कारण से उसे छोड़ना पड़ा।