ओलिंपिक के लिए नरसिंह ने किया क्वालीफाई, पिता ने दूध बेचकर सिखाई थी कुश्ती
https://www.shirazehind.com/2015/09/blog-post_716.html
वाराणसी। रेसलर नरसिंह यादव ने एक बार फिर देश के माथे पर जीत
से तिलक किया है। लास वेगास में चल रही वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप में
ब्रांज मेडल जीतकर 2016 में होने वाले रियो ओलिंपिक का टिकट भी हासिल कर
लिया। उन्होंने 74 किलोग्राम फ्री स्टाइल कैटेगरी ने ये मेडल जीता। वर्ल्ड
रेसलिंग चैंपियनशिप के जरिए ओलपिंक का टिकट कटाने वाले वो पहले इंडियन
रेसलर भी बन गए हैं। उनकी इस कामयाबी पर पूरे काशी में जश्न मनाया जा रहा
है। बता दें कि नरसिंह यादव ने साल 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स में इसी कैटेगरी
में गोल्ड मेडल भी जीता था।
नरसिंह यादव चोलापुर ब्लॉक के नीमा गांव के रहने वाले हैं। उनके पिता
पंचम यादव और पत्नी भूलना देवी ने कई मुश्किलों का सामना करते हुए बेटे को
इस मुकाम तक पहुंचाया है। पिता पंचम यादव के मुताबिक, बच्चों की परवरिश के
लिए सालों पहले वो महराष्ट्र चले गए। दो बेटे और दो बेटियों का पेट पाल
पाना आसान नहीं था। दोनों बेटे विनोद और नरसिंह कुश्ती खेलना चाहते थे। तब
उन्होंने किराए पर दूध खरीदकर उसे बेचना शुरू कर दिया। वो साइकिल पर बाल्टे
लादकर 40 किमी. मलाड, कांदिवली, अंधेरी और गोरेगांव जैसी जगहों पर दूध
बेचने जाते थे। पैसे नहीं होने की वजह से बच्चों को दूध नहीं पिला पाते थे।
छोटी से कोठरी में करते थे गुजारा
नरसिंह के पिता ने बताया कि वो और उनकी पत्नी बच्चों खाना खिलाकर खुद भूखे सो जाते थे। हालात इतने बुरे हो गए थे कि घर का 15 रुपए का किराया भी नहीं चुका पाते थे। छोटी सी टीन शेड पड़ी कोठरी में किसी तरह पूरा परिवार गुजारा करता था। वहीं, बारिश के दिनों में घर तालाब बन जाता था। दोनों बेटों ने जब कुश्ती खेलनी शुरू की तो उनके लिए कपड़े खरीदने तक के पैसे नहीं थे। दोनों फटे नेकर और बनियान पहनकर प्रैक्टिस करने जाते थे।
नरसिंह के पिता ने बताया कि वो और उनकी पत्नी बच्चों खाना खिलाकर खुद भूखे सो जाते थे। हालात इतने बुरे हो गए थे कि घर का 15 रुपए का किराया भी नहीं चुका पाते थे। छोटी सी टीन शेड पड़ी कोठरी में किसी तरह पूरा परिवार गुजारा करता था। वहीं, बारिश के दिनों में घर तालाब बन जाता था। दोनों बेटों ने जब कुश्ती खेलनी शुरू की तो उनके लिए कपड़े खरीदने तक के पैसे नहीं थे। दोनों फटे नेकर और बनियान पहनकर प्रैक्टिस करने जाते थे।
दुकान से खरीदते थे घटिया अनाज
पंचम यादव के मुताबिक, गरीबी ने घर में इस कदर पैर पसार लिए थे कि बच्चों को दुकान से खरीदा हुआ घटिया अनाज खिलाना पड़ता था। खराब गेहूं को पिसवाकर उसकी रोटी बनाई जाती थी। वहीं, भूलना देवी ने बताया कि वो कंकड़ और कीड़े वाले चावल खरीदती थीं। उसे बड़ी मुश्किल से साफ करके पकाती थीं। नरसिंह को अरहर की दाल बेहद पंसद थी, लेकिन वो महीने में सिर्फ एक ही बार उसे खिला पाती थीं।
पंचम यादव के मुताबिक, गरीबी ने घर में इस कदर पैर पसार लिए थे कि बच्चों को दुकान से खरीदा हुआ घटिया अनाज खिलाना पड़ता था। खराब गेहूं को पिसवाकर उसकी रोटी बनाई जाती थी। वहीं, भूलना देवी ने बताया कि वो कंकड़ और कीड़े वाले चावल खरीदती थीं। उसे बड़ी मुश्किल से साफ करके पकाती थीं। नरसिंह को अरहर की दाल बेहद पंसद थी, लेकिन वो महीने में सिर्फ एक ही बार उसे खिला पाती थीं।