सहरी में जगाने का अन्दाजे बंया बदला
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जौनपुर। आधुनिक युग और बदलते परिवेश में रोजे के दौरान सहरी के लिए जगाने वालों की टोलियां नहीं रह गयी है। तड़के सहरी के जगाने वालों का अन्दाजें बया भी बदल गया है। अब तड़के लालटेन और लाठी लेकर सहरी के लिए रोजेदारों को जगाने के लिए निकलने वाले फकीरों और अन्य लोगों की टोलियां नजर नहीं आती। अब लाउडस्पीकर के माध्यम से रोजेदारों को जगाया जाता है। करीब दो दशक पहले रमजान के दौरान तड़के सहरी के लिए रोजेदारों को जगाने के लिए फकीरों की टोलियां निकलती थी। जो नात और कलमा पढ़ते हुए चलते थे और जगाने के लिए आवाज बुलन्द करते थे। नाम लेकर कहते थे कि सहरी का समय हो गया उठ जाइये। घर से आवाज आने तक जगाने वाले हटते नही थे। तब लोगों में रोजा को लेकर काफी जोश खरोश रहता था। फकीरों की टोलियांे को ईद के दिन घर घर से जकात और फितरा के नाम पर अच्छा खासा पैसा मिल जाता था। लेकिन अब समय बदलने के साथ सहरी के लिए जगाने का अन्दाज बदल गया है। अब न तो सहरी के लिए जगाने वालों की टोलियां रही और न सहरी के समय चहल पहल ही दिखती है। कस्बों और गांवों के लोग सहरी के समय तो जाग ही नहीं पाते। अब जगाने के लिए लोग मोबाइल और एलार्म का सहारा लेते हैं तो कोई जल्दी ही सो जाता है। इसके बावजूद सहरी के लिए जगाने वालों की टोलियांे की याद नहीं मिट पाती है।