‘सी’ विधि से कम लागत एवं कम पानी में होगा धान का अधिक उत्पादनः रमेश यादव

जौनपुर। एस.आर.वाई. विधि से धान की खेती करने पर बीज, खाद एवं पानी की आवश्यकता होती है और उत्पादकता परम्परागत विधि की तुलना में बहुत अच्छी मिलती है। इस विधि द्वारा खेती करने पर जड़ों का विकास अधिक होता है। सिंचाई जल की बचत होती है। कृषि तकनीकी अधिकारी रमेश चन्द्र यादव ने सुझाव देते हुये बताया कि जो कृषक सिंचाई पर आधारित ऊंचे खेतों में धान की खेती करते हैं। वे इस विधि का प्रयोग कर सकते हैं। उन्होंने किसानों को 6 प्रबन्धन क्रियाएं अपनाने का सुझाव देते हुये कहा कि इस विधि में 8-12 दिन पुरानी दो पत्तियों वाली पौध का तैयार खेत में रोपड़ किया जाता है जिससे अधिक संख्या में किल्ले निकलते हैं। पौधों को नर्सरी से बहुत सावधानीपूर्वक बीज, मृदा, कण जड़ सहित निकालकर बिना धोये खेत मंे बिना अधिक दवाएं रोपित किया जाता है। खेत में पौधों की रोपाई 25 गुणे 25 सेमी की दूरी पर की जाती है। एक स्थान पर एक ही पौधा रोपित किया जाता है। श्री यादव ने बताया कि इस विधि में पानी खेत में खड़ा नहीं किया जाता है, इसलिये खर-पतवार का प्रयोग अधिक रहता है। इसको नियंत्रित करने के लिये कोनी बीडर का प्रयोग रोपाई के 10-12 दिन के बाद किया जाता है। इस विधि में खेतों में हल्की सिंचाई की तुलना में आधे से एक तिहाई पानी ही पर्याप्त होता है। मृदा की उर्वरता को बढ़ाने व उसकी दशा को ठीक करने के लिये इस विधि में जैविक खादों एवं जैव उर्वरकों का प्रयोग करके रासायनिक उर्वरकों पर अपनी निर्भरता कम करते हैं।

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