बारिश में भुठ्ठे के ठेलों पर भीड़

जौनपुर। शहर में भुट्टे की दुकानें लोगों को आकर्षित कर रही है। चैराहों और बस स्टेशनों पर ठेले पर दहकती भटिठयों से उठती सोधी महक और चट चट करती दाने की आवाज फास्ट फूड को मात दे रही है। बारिश में भुट्टे का आनन्द कुछ अलग होता है। लोग नमक और नीबू लगाये गये भुट्टे का जमकर लुत्फ उठा रहे है। हालांकि अभी इन्हे मंहगा बेचा जा रहा है लेकिन इसका स्वाद लेने वाले इसकी परवाह नहीं कर रहे है। यद्यपि कच्चा भुठ्टा भी बाजारों में आ गया है लेकिन आधुनिक जीवन शैली के कारण इसे भूनने में हो रही परेशानियों को देखते हुए दो चार भुट्टे पालिथिन में लपेट कर बच्चों के लिए भी ले जा रहे है। अधिकतर घरों में गैस से भोजन बनता है और उसपर भुने मक्के की बाल स्वादिष्ट नहीं होती। ग्रामीण क्षेत्रों में उपली पर इसे भूना जाता है और नकम, लहसुन और मिर्च की चटनी के साथ नाश्ते के रूप में लिया जाता है। भुट्टे में काफी पौष्टिक तत्व होते है जिससे इसे निम्न वर्ग से लेकर उच्च वर्ग के लोग भी पसन्द करते हैं। मजबूत दांत वाले इसका असली आनन्द लेते हैं। एक समय था जब मक्का की पैदावार जनपद में सर्वाधिक होती थी। गेहंू की रोटी कम मक्के की ज्यादा खायी जाती थी लेकिन धीरे धीरे इससे लोग परहेज करने लगे और बुआई का रकबा कम होता चला गया।

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