ये है 80 करोड़पतियों का गांव, 1 मच्छर ढूंढने पर मिलते हैं 400 रुपए
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महज 305 लोगों का गांव और इनमें से 80 लोग करोड़पति। बेशक यह बात चौंकाने
वाली लगती है, लेकिन सच है। इस गांव में एक भी मच्छर नहीं है। गांव के
सरपंच एक भी मच्छर ढूंढ देने पर 400 रुपए का इनाम देते हैं। इस गांव में न
पानी की कमी है, न हरियाली की। गर्मियों में इस गांव का तापमान आसपास के
गांवों के मुकाबले 3-4 डिग्री कम होता है। यह गांव, महाराष्ट्र के अहमदनगर
जिले में पड़ता है। नाम है, हिवरे बाजार। इस गांव की किस्मत यहां के लोगों
ने खुद लिखी है। क्योंकि, साल 1990 में यहां 90 फीसदी गरीब परिवार रहते थे।
पीने के लिए भी पानी नहीं था। लेकिन आज गांव की किस्मत बदल गई है
दशकों पहले हिवरे बाजार भी अन्य गांवों की तरह खुशहाल था। 1970 के दशक
में, ये गांव अपने हिंद केसरी पहलवानों के लिए प्रसिद्ध था। मगर हालात
बिगड़े और बिगड़ते चले गए। सरंपच पोपट राव कहते हैं कि हिवरे बाजार 80-90
के दशक में भयंकर सूखे से जूझा। पीने के लिए पानी नहीं बचा। कुछ लोग अपने
परिवारों के साथ पलायन कर गए। गांव में महज 93 कुंए ही थे। जलस्तर भी
82-110 फीट पर पहुंच गया। लेकिन फिर लोगों ने खुद को बचाने की कवायद शुरू
की। साल 1990 में एक कमेटी 'ज्वाइंट फॉरेस्ट मैनेजमेंट कमेटी' बनाई गई।
इसके तहत गांव में कुंए खोदने और पेड़ लगाने का काम श्रमदान के जरिए शुरू
किया गया। इस काम में, महाराष्ट्र एम्प्लायमेंट गारंटी स्कीम के तहत फंड
मिला, जिससे काफी मदद मिली। साल 1994-95 में आदर्श ग्राम योजना आई, जिसने
इस काम को और रफ्तार दे दी। फिर कमेटी ने गांव में उन फसलों को बैन कर
दिया, जिनमें ज्यादा पानी की जरूरत थी। पोपट राव ने बताया कि आज गांव में
340 कुंए हैं। ट्यूबवेल खत्म हो गए हैं और जलस्तर 30-35 फीट पर आ गया है।
सरपंच पोपट राव ने बताया कि गांव के 305 परिवार रहते हैं। इनमें से 80
करोड़पति परिवार हैं। उन्होंने बताया कि यहां सभी लोगों की मुख्य आय खेती
से ही होती है। यह लोग सब्जी उगाकर ज्यादातर कमाई करते हैं। हर साल इनकी आय
बढ़ रही है। खेती के जरिए जहां 80 परिवार करोड़पति के दायरे में आ गए हैं,
वहीं 50 से अधिक परिवारों की वार्षिक आय 10 लाख रुपए से अधिक है। गांव की
प्रति व्यक्ति आय देश के शीर्ष 10 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों के औसत आय
(890 रुपए प्रति माह) की दोगुनी है। यानी पिछले 15 वर्षों में औसत आय 20
गुनी हो गई है। पोपट राव ने बताया कि सर्वेक्षण के मुताबिक 1995 में 180
में से 168 परिवार गरीबी रेखा के नीचे थे। 1998 के सर्वेक्षण में यह संख्या
53 हो गई। और, अब यहां केवल तीन परिवार इस श्रेणी में हैं। गांव ने गरीबी
रेखा के लिए अपने अलग मानदंड तय किए हैं। जो लोग इन मानदंडों में प्रति
वर्ष 10 हजार रु. भी नहीं खर्च कर पाते वे इस श्रेणी में आते हैं। ये
मापदंड आधिकारिक गरीबी रेखा से लगभग तीन गुना हैं।