राजनीति की सार्थकता पर सवाल उठता कमायनी आंदोलन!

जन भावनाओं पर भारी पड़ती दलीय प्रतिबद्धता
कांग्रेस और भाजपा को कटघरे में खड़ा करता आंदोलन
भदोही का प्रमुख और इस्पात व्यापार का हब है सुरियावां

भदोही। राजनीति और राजनेताओं के लिए यह सबसे बड़ा सवाल। राजनीति क्यों और किसके लिए। राजनीति में जनपक्षता की विचारधारा दमतोड़ती रही है ? राजनीति का उद्देश्य क्या बहु आयामी होने के बजाय दलिय प्रतिबद्धता और कूटनीति तक सीमट गया है। आम आदमी और जनहित से जुड़ी मांगे और मसले क्या राजनेताओं और पार्टी संगठन से नीचे हैं। सत्ता का दंभ और श्रेय लेने की होड़ क्या जन पक्षधरता से मुंह मोड़ती है। यही सारे सवाल उठा रहा है जिले के जंघई-भदोही रेलवे सेक्शन के सुरियावां रेलवे स्टेशन पर 30 मार्च से पांचवी बार चल रहा कामायनी एक्सप्रेस ठहराव आंदोलन। यह मांग व्यापक जनहित से जुड़ी हुई है। लेकिन इसे लेकर राजनीतिक दलों में राजनीति की जा रही है और राजनीति का मूल जन उद्देश्य हासिए पर है।
उत्तर रेलवे के वाराणसी-लखनऊ खंड पर स्थित सुरियावां रेलवे स्टेशन पर वाराणसी से कुर्ला यानी मुंबई तक जाने वाली कामायीनी एक्सप्रेस के ठहराव को लेकर पिछले पांच सालों से आंदोलन चल रहा है। लेकिन अभी तक यहां कामायनी के ठहराव की हरी झंडी नहीं मिल सकी है। राजनेताओं और रेलमंत्रालय की उदासीनता से जन भावनाएं उबाल मार रही हैं। देश में भदोही की अपनी एक अलग पहचान है। यह कालीन उद्योग का हब है। यहां से कई हजार करोड़ का कालीन निर्यात होता है। सुरियावां रेलवे स्टेशन प्रधानतंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी का सहोदर है। यह वाराणसी की आत्मा हैं। भदोही वाराणसी से ही अलग हुआ है। पूर्वांचल के औद्योगिक जिलों में भदोही की अपनी अलग पहचान है। जबकि सुरियावां इस जिले का इस्पात हब है। यहां का लौह व्यापार काफी प्राचीन है। पूर्वांचल के स्पात बाजारों में सुरियावां प्रमुख केंद्र है। यहां 90 फीसदी से अधिक परिवारों के लोग रोजी रोटी के लिए मुंबई जाते हैं। मुंबई जाने के लिए यहां सिर्फ गोरखपुर-कुर्ला यानी काशी एक्सप्रेस का ठहराव है। जबकि पड़ोस के स्टेशन जंघई में सांसद तूफानी सरोज ने कई रेल गाडि़यों का ठहराव कराया था। लेकिन सुरियावां की जन भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। कामायनी ठहराव पर कांग्रेस और भाजपा राजनीति कर रही हैं। सपा और बसपा को इस आंदोलन के लिए अधिक जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। क्योंकि दोनों दल केंद्रीय राजनीति से अलग हैं। आंदोलन की अगुवाई कर रहे बरिष्ठ सामाजिक एंव कांग्रेसी नेता डा. भगौती प्रसाद गुप्त और सुनील उपाध्याय को वर्तमान राजनीति और राजनेताओं से बेहद पीड़ा है। गुप्त की उम्र आंदोलन की नहीं रही है। उम्र के 75 पड़ाव में ही उनकी जनपक्षधरता की चाहता इस आंदोलन से उन्हें जोड़ कर रखा है। उन्हें रेल मंत्रालय और बड़ौदा हाउस के साथ राजनेताओं पर छोभ है। नई दिल्ली की दौड़ लगाने के बाद भी कामायनी का ठहराव नहीं हो पाया। गुप्त और उपाध्याय ने 2010 में कांग्रेस की सरकार में 120 घंटे का आमरण अनशन किया था। उनकी हालत नाजुक होने पर पुलिस रात में जबरिया उठा कर जिला अस्पताल में भर्ती कराया था। गुप्त का दर्द आंखों में छलक उठता हैं। वे कहते हैं की अब चरित्र की राजनीति नहीं रह गयी है। अब जनहित के मसलों पर भी दलिय और संगठन की राजनीति की जा रही है। इसके लिए कांग्रेस भी कम गुनहगार नहीं है। क्योंकि हम लोगों ने 2010 में अपनी यानी कांग्रेस के सरकार में कामायनी ठहराव के लिए 13 दिन का आमरण अनशन किया। लेकिन हमें सफलता नहीं मिली। बसपा संासद गोरखनाथ पांडेय से भी गुहार लगायी गयी। लेकिन परिणाम नहीं निकला। अब भाजपा सांसद वीरेंद्र सिंह वादे के बाद भी इस मसले से मुंह मोड़ लिया है। जबकि यह उनका नैतिक दायित्व हैं। लेकिन अब इस आंदोलन को कुछ दलों का समर्थन मिलने के बाद भी यह राजनीति घेरे से नहीं निकल पा रहा है। जन भावनाओं को चोट पहुंचाने का दोनों राष्टीय दलों ने गुनाह किया है। अगर कांग्रेस चाहती तो इस गाड़ी का ठहराव यहां हो जाता। लेकिन भूल या राजनीतिक गलितियों का क्या हम सुधार नहीं सकते हैं। केंद्रीय सत्ता में वैचारिक मतभेद के बाद भी दलीय एकता हो सकती है। कई अहम मसलों पर विपक्ष एक हो सकता है। सत्ता के लिए बेमेल गठबंधन हो सकते हैं। नए राजनीतिक उद्ेश्यों के लिए कई दल एक मंच पर आ सकते हैं। फिर सुरियावां में कामायनी के ठहराव के लिए सभी दल एक क्यों नहीं हो सकते ? जन भावनाओं की उपेक्षा आखिर क्यों ? गुप्त ने कहा है कि हमें अपनी भोली जनता से कोई शिकायत नहीं है। क्योंकि वह हमेंशा से ठगी जाती रही है। हम सवाल उठाते हैं कि आखिर राजनेता दलीय प्रतिबद्धता को शीर्ष पर रख कब तक जनता की मांग पर राजनीति की चाश्नी चढ़ाते रहेंगे। वहीं आंदोलन का नेतृत्व कर रहे सुनील उपाध्याय का आरोप है कि कुछ लोग इसे कांग्रेसी आंदोलन बनाने का आरोप मढ़ रहे हैं। हम उनसे यह सवाल पूछते हैं कि आम जनता का दर्द क्या दलों से बंधा होता है। कामायनी के ठहराव से क्या सिर्फ कांग्रेस के लोगों को फायदा होगा। प्रधानतंत्री मोदी की वह प्रतिबद्धता सब का साथ सब का विकास कहा गया। क्यों नहीं उसे अमल में लाया जा रहा है। जो लोग इस आंदोलन को राजनीतिक रंग दे रहे हैं उनसे अनुरोध है कि वे भी मेरे साथ आएं और टेंट डाल कर हमारे साथ अनशन और धरने पर विराज मान हों। अगर ऐसा होता है तो हम उनका स्वागत करेंगे। लेकिन सिर्फ आरोप लगाना अलग है और उसे धरातल पर उतरना अलग बात है। 30 मार्च से यह धरना चल रहा हैं। लेकिन अभी तक इसने अपना मुकाम हासिल नहीं किया है। रेल मंत्रालय और विभाग का कोई जिम्मेदार अधिकारी धरनारत समाजसेवियों के पास नहीं पहुंचा है। लेकिन धरने को व्यापक जन समर्थन मिल रहा है। यह लंबा खींचेगा। लेकिन जन भावनाओं की अनदेखी आज नही ंतो कल राजनीतिक दलों को भारी पड़ेगी।

Related

पुर्वान्चल 134210934712721898

एक टिप्पणी भेजें

emo-but-icon

AD

जौनपुर का पहला ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल

आज की खबरे

साप्ताहिक

सुझाव

संचालक,राजेश श्रीवास्तव ,रिपोर्टर एनडी टीवी जौनपुर,9415255371

जौनपुर के ऐतिहासिक स्थल

item