समरसता के लिये भरत जी ने त्यागा था राजपदः आलोक मिश्र

   जौनपुर। भरत का अपने भाई प्रभु श्रीराम के प्रति जो प्रेम था, उससे सीख लेकर समाज व परिवार को एक सूत्र में बांधे रखा जा सकता है और सामाजिक समरसता बनी रह सकती है, क्यांेकि समरसता के लिये ही भरत ने राजपद त्याग दिया था। उक्त विचार नगर पालिका परिषद के मैदान पर आयोजित सात दिवसीय श्रीरामकथा के तीसरे दिन प्रवचन करते हुये प्रवचनकर्ता पं. आलोक मिश्र ने व्यक्त किया। इसी क्रम में रामेश्वरानन्द सरस्वती ने कहा कि मनुष्य के अहंकार के कारण ही उसका पतन होता है। अहंकार सतो गुणी, रजो गुणी एवं तपो गुणी होता है। इनमें तपो गुणी अहंकार से मनुष्य का विनाश हो जाता है। अतः अहंकार से बचना चाहिये। दिनेश चन्द्र मिश्र ‘दिनकर’ ने मानस की चैपाई ‘बुद्ध विश्राय सकल जन रंजनि, रामकथा कलि कलुष विशंजनि’ की व्याख्या करते हुये कहा कि मनुष्य की सभी समस्याओं का समाधान रामचरितमानस की चैपाइयों में है। पं. राजाराम त्रिपाठी ने प्रवचन के साथ भक्ति गीत से श्रोताओं को मंत्र-मुग्ध कर दिया। इस अवसर पर राज नारायण सिंह, मोहन लाल मिश्र, रमेश चन्द्र, राजकुमार मौर्य, जनार्दन प्रसाद, इं. विजय जायसवाल, अनिल जायसवाल, केके जायसवाल सहित हजारों मानसप्रेमी मौजूद रहे।

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