
जौनपुर। श्रीराम का आचरण सभी के प्रति मर्यादित था, इसलिये वे मर्यादा पुरूषोत्तम कहलाये। श्रीरम ने कभी दोहरा मानदण्ड नहीं रखा। चाहे वह शत्रु हो या मित्र, बाल हो या वृद्ध किन्तु इसके विपरीत रावण के आचरण में दोहरापन एवं अमर्यादित था। उक्त विचार नगर पालिका परिषद के टाउन हाल के मैदान पर आयोजित सात दिवसीय श्रीरामकथा के पांचवें दिन प्रवचनकर्ता दिनेश मिश्र ‘दिनकर’ ने व्यक्त किया। इसी क्रम में सदन बिहारी चतुर्वेदी ने शिव-सती संवाद पर चर्चा करते हुये कहा कि शिव के आराध्य भगवान श्रीराम के ब्रह्म होने का भ्रम होने भर से ही शिव को अखण्ड समाधि लग गयी और सती का त्याग हो गया। राजाराम त्रिपाठी ने श्री हनुमान के भक्ति भाव की चर्चा करते हुये कहा कि वह तीनों कालों व सभी युगों के देवता हैं। जो हनुमान की आराधना करता है, उसे कभी निराश नहीं होना पड़ता है। अनिल पाण्डेय ने धनुष यज्ञ प्रसंग सुनाकर श्रोताओं को आनन्द विभोर कर दिया। इस अवसर पर देवेन्द्र प्रधान, जगदीश जी, विजय नारायण, चन्द्रशेखर, सर्वेश जायसवाल, आलोक, श्रवण जायसवाल, अजयनाथ, राजेन्द्र मौर्य, मोहन लाल मिश्र, राजेश जायसवाल, रमेश चन्द्र, सुरेन्द्र जायसवाल के अलावा अन्य लोग भी उपस्थित रहे।