कृषि अनुसंधानों व आविष्कारों को किसानों तक पहुंचाना बहुत बड़ी चुनौतीः रमेश चन्द्र यादव

जागरूकता की कमी से प्रत्येक व्यक्ति एक वर्ष में खा रहा खाद्यान्नों के नाम पर 300 ग्राम जहर
    जौनपुर। आज वैज्ञानिक युग में नये-नये आविष्कार हो रहे हैं तथा कृषि विज्ञान के क्षेत्र में नये अनुसंधान भी हो रहे हैं जिनको किसानों तक कैसे पहुंचाया जाय, यह बहुत बड़ी चुनौती है। किसानों को ऐसी दिशा दी जाय जो उनके लिये उपयोगी हो। देश की बढ़ती जनसंख्या व घटते जोतों को देखते हुये गुणवत्तायुक्त खाद्यान्न की दृष्टि से देश को आत्मनिर्भर बनाने, किसानों की दशा सुधारने और ग्रामीण जीवन के विकास हेतु किसानों को उनकी आवश्यकता वाली कृषि प्रणाली की नवीनतम वैज्ञानिक तकनीक से जागरूक करना समय की मांग है। उक्त बातें कृषि विशेषज्ञ रमेश चन्द्र यादव ने खेती-किसानी की तकनीकी जानकारी किसानों को देते हुये कही। उन्होंने कहा कि जब तक प्रचार-प्रसार नहीं करेंगे, हमारे आविष्कार, शोध सब बेकार हैं। किसानों को यह मालूम होना चाहिये कि वह जो फसल लेने जा रहा है, उसकी नयी प्रजाति कौन है। उसके लिये उपयुक्त है या नहीं। किसी भी कार्य को करने हेतु ताकत की जरूरत होती है। किसानों से श्री यादव ने कहा कि आईसीटी का नाम सुने होंगे। सूचना संचार तकनीक में हमारा देश एक बहुत बड़ी शक्ति बन गया है। ठीक उसी प्रकार यदि किसानों को भी यह ज्ञात हो जाय कि कौन फसल कब लेना तथा उसमें कब, कैसे व कौन से प्रबंध करने हैं तो उनकी समृद्धि हो सकती है। कृषि के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं। बस जरूरत है नवीनतम वैज्ञानिक तकनीक सीख करके हम सभी मिलकर जब कल्याणकारी व समाजहित में कार्य करेंगे तो कृषि के क्षेत्र में जरूर योगदान होगा। श्री यादव ने कहा कि बीते 15-20 वर्षों से किसान अपने खेतों में कम्पोस्ट खाद न डालकर अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकों (डाई, यूरिया, पोटाश) पर आश्रित होकर खेती का कार्य करने लगे तो अन्य आवश्यक पोषक तत्वों जैसे कैल्सियम, मैग्नीशियम, सल्फर, जिंक, आयरन, कापर, मैग्नीज, मोलिब्डेनम, वोरान, क्लोरीन व निखैल की मिट्टी में कमी होती रही। फलस्वरूप इन तत्वों की पौधों को उपलब्ध न होने व मृदा जीवांश में कमी आने से मृदा के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक क्रियाओं में इस प्रकार परिवर्तन हुआ कि अधिकांश क्षेत्रों में उत्पादन में ठहराव आ गया तथा किन्हीं क्षेत्रों में उत्पादन घटना शुरू हुआ। कृषि विशेषज्ञ ने बताया कि मृदा उर्वरता का प्रबंधन इस प्रकार किया जाय कि फसल की मांग पौधों को सभी पोषक तत्व उपलब्ध होते रहे जिससे अधिक से अधिक उपज मिले तथा मृदा उर्वरता भी सुरक्षित रहे। इसके लिये मृदा परीक्षण की संस्तुतियों के अनुसार कार्बनिक एवं अकार्बनिक स्रोतों से फसल को सभी तत्वों का निश्चित अनुपात में ग्रहण कराना आवश्यक है, क्योंकि प्रत्येक तत्व का पौधों के अंदर अलग-अलग कार्य व महत्व होता है। किसी एक तत्व की कमी से उत्पादन सीधे प्रभावित होता है। जैविक खाद से उत्पादित फसलों में कीटों एवं बीमारियों का प्रकोप बहुत कम होता है व जीवांश खाद से उत्पादित खाद्यान्न गुणवत्तायुक्त, पोषक तत्वों से भरपूर, स्वादयुक्त व रसायनों से मुक्त होते हैं। उन्होंने कृषि के प्रति वांछित आकर्षण पैदा करने, उसको कम खर्चीला और अधिक लाभकारी बनाने के लिये जिन महत्वपूर्ण उपायों पर गौर किया जा रहा है, उसमें प्रमाणित एवं उपचारित बीजों की उपलब्धि, उर्वरकों का सही ढंग से उपयोग, अच्छा जल प्रबंधन एवं इण्टीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट (आईपीएम) मुख्य है। प्रदेश में हर वर्ष अनेक कीटों, रोगों, खर-पतवारों, चूहों द्वारा फसलों की उपज पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इन समस्याओं में धान का बाल काटने वाला सैनिक फीट, धान का गंधी कीट, चने, अरहर की फली बेधक, मूंगफली का सफेद गिडार, सरसों का माहू, आम का फुदका, आलू का पछेता झुलसा, मटर का बुकनी रोग, टमाटर, भिण्डी का मोजैक, अरहर का बंझा रोग, गेहूं का मामा प्रमुख समस्याएं हैं जिनसे निबटने हेतु केवल रसायनों का ही सहारा लिया जाता रहा है जबकि यह रसायन अत्यधिक खर्चीले होने के साथ वातावरण को भी दूषित करते हैं। इन रसायनों के अवशेष अक्सर फलों, सब्जियों आदि में रह जाते हैं तथा उपभोक्ता के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव छोड़ते हैं। जागरूकता की कमी से प्रत्येक व्यक्ति एक वर्ष में खाद्यान्नों द्वारा 300 ग्राम जहर खा रहा है जिससे विभिन्न प्रकार की जानलेवा बीमारियांे की चपेट में भारी संख्या में युवा भी आने लगे हैं। रसायनों के प्रयोग से परजीवी मित्र कीट समाप्त हो जाते हैं जिससे पर्यावरण का संतुलन बिगड़ जाता है। इन समस्याओं के प्रभावी निदान एवं उपर्युक्त खतरों से बचने हेतु अब जिस पद्धति पर जोर दिया जा रहा है, उसको आईपीएम कहा जाता है। इसमें जैविक रसायनों का बहुत महत्व है। इनके द्वारा फसलों के हानिकारक कीटों, रोगों आदि का निदान किया जाता है। आईपीएम पद्धति अपनाने से कृषि रक्षा रसायनों पर खर्च कम आयेगा तथा किसानों को राहत अवश्य मिलेगी।

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