पाक का आंतरिक संकट और सेना की भूमिका
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प्रभुनाथ शुक्ल |
पाकिस्तान की नवाज शरीफ सरकार के सामने संकट गहरा गया है। धर्म गुरु और तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी की संयुक्त मोर्चे बंदी से कानून-व्यवस्था के साथ-साथ सरकार का आतंरिक संकट बढ़ है। आंदोलकारियों के साथ धर्मगुरु का संग होने से विरोध की आग और बलशाली लगती है। शरीफ सरकार की ओर से दिए गए बातीचीत के आमंत्रण को भी इमरान खान और धर्मगुरु अल कादरी ने ठुकरा दिया है। पािकस्तान के 48 घंटे बेहद संकट के हैं। अगर आंदोलनकारियों का काफिला प्रधानमंत्री निवास की ओर आगे बढ़ने में कामयाब हुआ तो वहां गृहयुद्ध के हालात बन सकते हैं। लेकिन अभी सरकार नरम रुख अपनाती दिखती है। मौजूदा पस्थिति से यही जाहिर हो रहा है कि पाकिस्तान की नवाज शरीफ सरकार अस्थिरता की तरफ कदम बढ़ा रही है। राजनीतिक विश्लेषक यह भी अनुमान लगा रहे हैं कि शायद 15 माह पुरानी नवाज शरीफ सरकार का अंत हो जाय। लेकिन सेना अभी अपने को संयमित रखा है। वह किसी के पक्ष में नहीं दिखती है। लेकिन विरोधियों की ओर से रेड जोन में दाखिला इस बात की ओर साफ इशारा करता है कि सरकर विरोधी इस रैली के पिछे कहीं न कहीं सेना और पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ लगता है। सत्ताधारी दल ने भी सेना की मिली भगत का अरोप लगाया हैं। उधर सेना और शरीफ सरकार के बीच रिश्तें भी कडाहट भरें हैं। जिस तरह से विरोधियों का हौसला बुलंद है इससे यह साफ जाहिर होता है कि आंदोलनकरी मरने मिटने को तैयार दिखते हैं। लेकिन सरकार अभी तक नरम रवैया अपना रखा है। अगर आंदोलन को कुचलने के लिए बल प्रयोग किया जाएगा तो निश्चित तौर पर हजारों बेगुनाह बेमौत मारे जाएंगे। जिसमें बूढ़े, बच्चे, महिलाएं और दूसरे लोग शामिल होंगे। इसके बाद स्थिति जो बनेगी उससे पाकिस्तान की नवाज सरकार की दशा और दिशा बदल जाएगी। यह वह स्थिति होगी जब शरीफ सरकार किंकर्तव्यविमूढ़ होगी और पाकिस्तान एक बार फिर सेना के हवाले होगा। लेकिन यह सब इतने जल्द होने वाला नहीं है लेकिन इसकी पृष्ठभूमि तैयार की जा रही है। भविष्य में यह आशंकाएं सच साबित होंगी। आंतरिक तौर पर इस आंदोलन को सेना और तेज करना चाहती है। जिससे काननू-व्यस्था की स्थिति बिगड़े और सरकार को अस्थिर कर सत्ता की कमान सेना अपने हाथ में ले। पाकिस्तान में सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की जा रही है। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के इस्तीफे की मांग पर विपक्ष डटा है। 15 माह पूर्व हुए चुनाव में इमरान की पार्टी दूसरे पोजीशन पर थी। लिहाज इस विरोध के जरिए वह अपनी ताकत दिखाना चाहते हैं वहीं धर्मगुरु का वरदहस्त होने से पाकिस्तानी जनता की धार्मिक भावनाएं भड़काने का बेहतर मौका है। जिसका लाभ धर्मगुरु और इमरान खान लेना चाहेंगे। विरोधी जिस रेड जोन तक पहुंचने में कामयाब हुए हैं वह पाकिस्तान सरकार का सबसे सुरक्षित और राजतंत्र संचालन का मुख्य केंद्र है। अभी तक यह सब सरकर के नरमी का ही नतीजा रहा है। आंदोलन का संचालन करने वाले लोग खुद यह चाहते हैं कि सरकार का विरोध अपनी लोकतांत्रित सीमा को लांघ जाय। जिससे पाकिस्तान की सरकार बड़ी बेरहमी से फौज की बूटों तले इस आंदोलन को कुचले और बदले में इसका सियासी लाभ लिया जाय। सेना को जहां काननू-व्यवस्था की आड में सरकार को अस्थिर करने का मौका मिलेगा वहीं धार्मिक भावनाआंे की खिचड़ी पका पाकिस्तानी जनता को सरकार के खिलाफ खड़ा किया जाएगा। बाद में सरकार को विफल बातते हुए सेना तख्ता पलट कमान अपने हाथ में ले सकती है। लेकिन अभी इसमें वक्त लगेगा। अभी यह आग और अधिक भड़कायी जाएगी। सरकार और विरोधियों के बीच बात नहीं बनती तो रेडजोन की स्थिति बुरी होगी। क्योंकि अब तक वहां हजारों की संख्या में लोग पहुंच चुके हैं। रेड जोन एरिया में पाकिस्तान की संसद, प्रधानमंत्री, राष्टपति का आवास, सुप्रीमकोर्ट की इमारते हैं। लिहाजा विरोध उग्र रुप की स्थिति में इन संस्थानों को क्षति पहुंच सकती है। हलांकि आंदोलनकारियों को संयम बरतने को कहा गया है लेकिन लोग सुरक्षा बलों से भीड़ जा रहे हैं। वैसे सरकार ने सुरक्षा बलों को आंदोलन और प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग की मनाहीं की है। उनकी बंदूके जमा करा ली गयी हैं बदले में उन्हें डंडे सौंपे गए हैं। रेड जोन की सुरक्षा सेना के जिम्मे कर दी गयी है। विरोधी मंगलवार की रात रेड जोन में दाखिल हो गए हैं। लेकिन इसकी आंच वीजरे आजम नवाज शरीफ के निवास तक नहीं पहुंच सकती हैं। क्योंकि पाक सरकार के सचिवालय और प्रधानमंत्री निवास के मध्य तकरीबन एक से डेढ़ किमी का फासला है। इस स्थिति मंे वहां तक आंदोलकारियों को पहुंचने के लिए चार लेयर की सुरक्षा व्यवस्था को तोड़ना होगा। उस स्थिति में जब यह विरोध इतना उग्र हो जाएगा तो अभी तक नरम रुख अख्तियार किए सरकर और सेना मौन नहीं रखेगी। निश्चित रुप से बल प्रयोग संभावी होगा। उस स्थिति में पाक में आंतरिक काननू-व्यवस्था विखर जाएगी देश खून खराबे की ओर बढ़ेगा और गृहयुद्ध की संभावना तेज हो जाएगी। लेकिन तब तक सेना अपनी रणनीति पर काम करना शुरु कर देगी। आंदोलकारी नवाज पर इस्तेफे का दबाव बना रहे हैं। लेकिन पाकिस्तान के अन्य जो चार प्रांत हैं जिसमें पंजाब, बलूचिस्तान, सिंध के सत्ता प्रमुखों ने अपने इस्तेफे की पेशकश से साफ इनकार कर दिया हैं। जिससे यह मांग उतनी आसान भी नहीं लगती है। इमरान की यह कूटनीतिक चाल इतनी आसानी से सफल होने वाली भी नहीं है। सरकार और आंदोलनकारियों को सेना और आईएसआई दोंनो खेल खिला रही हैं। लेकिन सेना की असली निगाह तख्ता पलट पर हो सकती हैं। दुनिया भर में लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ रहा है। सैनिक शासन के प्रति आवाजें उठती हैं। अगर सेना एक चुनी हुई सरकार के खिलाफ तख्ता पलट का निर्णय इतनी आसानी से नहीं करने वाली है। अभी वह उसे बदनाम और अस्थिर करने की पूरी साजिश रचेगी। इसके बाद वह अपने मिशन पर आगे बढ़ेगी। अभी इस मिशन के लिए वक्त काफी है लेकिन उसकी शुरुवात हो चुकी है। अफगानिस्तान और पाक के दूसरे मसलों को लेकर सेना और नवाज सरकार के रिश्तों में पहले से ही खटास है। उधर पाकिस्तान आंतरिक संकट का असर भारत-पाक रिश्तों पर भी साफ दिखने लगा हैं। भारत ने 25 अगस्त को प्रस्तावित अपनी विदेश सचिव स्तर की वार्ता को निरस्त कर दिया है। जिससे दोनों मुल्कों के बीच पटरी पर आते संबधों की बात फिर अटकती दिखती है। पाकिस्तान में आंतरिक लोकतंत्र कभी भी नहीं रहा। चुनी गयी सरकारें भी अपने मनमाफीक निर्णय लेने की क्षमता नहीं रखती हैं। वहां सेना की तरफ से साजिश कर हमेंशा चुनी हुई सरकार और लोकतंत्र का घला घोंटा गया हैं। भारत और पाकिस्तान की लोकतांत्रित व्यस्था में कोई मेल नहीं है। पाक जहां लोकतंत्र में षडयंत्र तंत्र का हिमायती हैं वहीं भारत शांति और विकास का। भारत पाकिस्तान की दोगली नीति से बखूबी वाकिब है। भारत सरकार के विरोध के बाद भी पाक उच्चा आयोग ने कश्मीरी अलगाव वादियों से वार्ता की है जिसका यहां कड़ा विरोध किया गया। पाकिस्तान कश्मीर को भारत का अंग मानने का तैयार नहीं है। वह इसे विवादित मानता है जबकि भारत सरकार जम्मू-कश्मीर को अपना अभिन्न अंग मानती है। सरकार की तरफ से वार्ता निरस्त किए जाने से एक बार फिर भारत-पाक रिश्तों की रेल बेपटरी हो चली है। इन सबके पीछे सीधे-सीधे सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई नीति साफ दिखती है। शरीफ सरकार की तरफ से दोनों देशों के मध्य संबंधों मंे मधुरता को लेकर किए गए प्रयास को पाकिस्तानी सेना पचा नहीं पा रही थी और न ही वह इस संबंधों को मधुर होने देना चाहती है। पाकिस्तान और भारत में जितनी सरकारें आयी सभी ने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से रिश्ते बेहतर बनाने की कोशिश की लेकिन यह संभव नहीं हो सका। भारत में जब-जब शांति और सदभावना की ओर कदम बढ़ाया उसने भारत के विश्वास का कत्ल किया। अटल सरकार में परवेज मुर्शरफ को भारत आमंत्रित किया गया। उनके स्वागत में भारत ने क्या नहीं किया। लेकिन बदले में हमें क्या मिला ? तत्कालीन प्रधानमंत्री खुद बस से लाहौर गए। इसके बाद हमें कारगिल यद्ध भुगतना पड़ा। शरीफ और मोदी की करीबी पाक सेना को खल रही थी। वह कभी नहीं चाहती है कि दोनों देशों के मध्य संबंध सामान्य हों। सेना की इस मानसिकता के पीछे दूसरे मुल्क भी रहते हैं जो भारत में अलगाववाद की आग भड़काने के लिए आतंकी गतिविधियों का सहारा लेते हैं और फडिंग करते हैं। पाकिस्तान में भारत के खिलाफ अलगाववाद की ताकतों को मजबूत करना एक सरकारी अघोषित एजेंडा है। उसका पालन सभी सरकारों में किया जाता हैं। इस स्थिति में जब तक सेना और आईएसआई नहीं चाहेगी भारत-पाक रिश्तों में कभी सुधार संभव नहीं है। भारत एक संप्रभु राष्ट है। जब वह अलगाव वादियों से पाक अधिकारियों की मुलाकता का विरोध कर रहा है फिर उस स्थिति में पाकिस्तान उच्चा आयोग के अधिकारी अलगाववादी नेता यासीन गीलानी और दूसरों से क्यों मिले। इससे यह साफ जाहिर होता है कि पाकिस्तान अलगाववादियों को भारत के खिलाफ खड़ा करने की पूरी साजिश रचता है। वहां की चुनी हुई सरकार चाह कर भी कुछ नहीं कर पाती हैं। पाकिस्तान में चाहे जिसकी सरकार रहे उसमें सेना और आईएसआई का पूरा दखल होता है। इन संस्थानों के कहने पर जो सरकार नहीं चलती है उसके खिलाफ इसी तरह की साजिशें रची जाती हैं। जिस तरह भारत-पाक संबंधों को लेकर षडयंत्र किया जा रहा है। कोई भी सरकार जो संबंध मधुर रखना चाहती है वह फिर इस तरह की हरकते क्यों करेगी ? यह पाक सेना और खुफिया एजेंसी का नकाबी चेहरा हैं। भारत सरकार की ओर से सचिव स्तर की शिखर वार्ता के परिप्रेक्ष्य में जो कदम उठाए गए हैं उस पर विपक्ष की ओर से मोदी सरकार के स्टैंड की आलोचना की जा रही है। लेकिन सरकार ने अपने इस नीति और निर्णय से शरीफ सरकार को साफ-साफ संदेश देने में कामयाब रही है कि हम किसी भी कीमत पर गलत फैसले का समर्थन नहीं करते हैं। इस स्थिति में हम पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसी की हर नापाक हरकतों को जबाब देने के लिए सक्षम हैं। इस स्थिति में पाक सेना दोनों देशों के मध्य शांति वार्ता में सबसे बड़ी बाधा बन कर खड़ी है। जिससे दोनों देशों के संबंधों में कभी मुधरता संभव नहीं है। एक तरह पाक सरकार आपसी सौहार्द और शांति की पहल करती है दूसरी तरफ उसकी सेना हर रोज भारत-पाक सीमा पर सीजफायर नियमों का उल्लंघन करती है। इस कार्रवाई के पीछे सीधा-सीधा सेना का दखल रहता हैं। पाकिस्तान अपना पड़ोसी धर्म कभी नहीं निभाया है और न ही उससे यह उम्मीद की जा सकती हैं।
लेखकः स्वतंत्र पत्रकार हैं