हे राम! मैला हुआ तेरी गंगा आंचल
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प्रभुनाथ शुक्ल
गंगा एक नदी नहीं हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। गंगा का नाम आते ही दिलो दिमाग पर संर्पूण भारतीय वैदिक संस्कृति की तस्वीर उभर आती हैं। उत्तर भारत के लिए गंगा जलदायिनी ही नहीं जीवनदायिनी हैं। हजारों साल पहले गंगा का अवतरण जब धरती पर हुआ था तब उसका मूल उद्देश्य केवल धार्मिक था लेकिन आज के बदले युग में इसकी पूरी परिभाषा और परिणाम ही बदल गया है। आज गंगा से मानव जीवन का रिश्ता गहरा हो चला है। गंगा हमारी अब श्वास हैं। गंगा का होना अब ‘दैहिक अंतिम यात्रा और मोक्षता‘ तक नहीं रह गया है। यह रिश्ता हमारी संस्कृति, संस्कार और सरोकारों से जुड़ गया है। गंगा हमारे लिए सिर्फ बस सिर्फ एक नहीं नदी हमारी आत्मा बन गयीं हैं। गंगा का संबंध पूरे मानव कल्याण से हो गया है। गंगा हमारी धार्मिता आस्था, संस्कृति और हमारे संस्कारों की प्रतीक बन गयी है। एक मां हमंे जन्म देती है लेकिन उत्तर भारत के विशाल मैदानी भू-भाग दूसरी मां गंगा भरण और मोक्ष देती है। इस आंचल के विशाल छांव में 40 करोड़ लोगों के सरोकार सीधे जुड़े हैं। गंगा का महत्व मानव जीवन के इतर जलीय जंतुओं के लिए भी वरदान है। इसका जल जहां अमृत हैं। वहीं जड़ी बूटिया मानव जीवन को संरक्षित करती हैं। पर्यटन और आस्था से जुड़ी होने के नाने लाखों लोगों की आजिविका का साधन और साध्य भी गंगा है। करोड़ों लोगों की जल प्रवाहिनी मां गंगा हमारे आजिविका का मुख्य साधन बन चली हैं। लेकिन बढ़ती आबादी और वैज्ञानिक विकास ने गंगा के अस्तित्व पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। गंगा सिमट रही हैं। गंगा गोमुख यानी उत्तराखंड से निकल कर बंग्लादेश तक का सफर त करती हैं। भौगोलिक आंकड़ों में समझे ंतो गंगा की लंबाई 2510 किमी है। 2071 किमी भारत की सीममा में और बाकि हिस्सा बंग्लादेश में आता है। यह 100 मीटर गहरी हैं। 3,50196 वर्ग मिल के विस्तृत भू-भग पर गंगा फैली हैं। गंगा के उद्गम स्थल की ऊंचाई 3140 मीटर है। इसकी गोद मंें सुंदरवन जैसा डेल्टा है। कृषि के लिए लंबा भूभाग उपलब्ध कराया है। लेकिन बढ़ती आबादी और पदूषण के चलते पर्यावरण का असंतुलन भी खड़ा को गया है। जिससे गंगा का पानी अब आचमन करने योग्य भी नहीं रहा। वैज्ञानिक भविष्यवाणियों को माने तो गंगा का अस्तित्व खतरे में है। पर्यावरण असंतुलन और तापमान में वृद्धि के चलते ग्लेशियर अधिक तेजी से पिघल रहे हैं। एक वक्त ऐसा भी आएगा जब ग्लेशिर खत्म हो जाएंगे और हमारी गंगा का आंचल सूखा हो जाएगा। वह दौर कुछ ऐसा भयावह होगा जब इंसानी जीवन समाप्त हो जाएगा। 2007 में जारी संयुक्तराष्ट संघ की वैज्ञानिक रिपोर्ट में कहा गया था कि बदले पर्यावरण के चलते 2030 में हिमालयी हिमनद जिसे हम ग्लेशियर कहते हैं खत्म हो जाएंगे। जिससे गंगा सूखी हो जाएगी। वह समय धीरे-धीरे हमारे सामने है। इस समय गंगा के किनारे खड़े हो कर उसकी दुर्दशा को देखा जा सकता है। गंगा का निर्मलीकरण अभियान तभी सफल होगा जब इसे सीधे लोगों से जोड़ा जाएगा। इस अभियान को पूरा आंदोलन बनाना होगा। लोगों को यह बताना होगा कि गंगा मानव जीवन के लिए कितनी उपयोगी हैं। इनका अस्तित्व रहना हमारे लिए अपने अस्तित्व बचे रहने जैसा होगा। इस अभियान में सबसे बड़ी बाधा होगी गंगा में गिने वाले शहरी और औद्यौगिक कचरे को रोकना। यह समस्या हमारी सरकार और वैज्ञानिकों के लिए एक चुनौति है। गंगा में प्रतिदिन 2 लाख 90 हजार लीटर कचरा गिरता है। जिससे एक दर्जन बीमारियां पैदा होती हैं। सबसे अधिक कैंसर जैसा खतरनाक रोग भी पैदा होता है। कैंसर के सबसे अधिक मरीज गंगा के बेल्ट से संबंधित हैं। इसके अलावा दूसरी जल जनित बीमारियां हैं। सर्वेक्षणों के अनुसार गंगा में हर रोज 260 मिलियन लीटर रसायनिक कचरा गिराया जाता है। जिसका सीधा संबंध औद्यौगिक इकाईयों और रसायनिक कंपनियों से है। गंगा के किनारे परमाणु संयत्र, रसायनिक कारखने और सुगर मिलों के साथ-साथ छोटे बड़े कुटीर और दूसरे उद्योग शामिल है। कानपुर का चमड़ा उद्योग गंगा का आंचल मैला करने में सबसे अधिक भूमिका निभाता है। वहीं सुगर मिलों का स्क्रैप इसके लिए और अधिक खतना बनता जा रहा है। गंगा गिराए जाने वाले शहरी कचरे का हिस्सा 80 फीसदी होता है। जबकि 15 प्रतिशत औद्यौगिक कचरे की भागीदारी होती है। गंगा के किनारे 150 से अधिक बड़े औद्यौगिक ईकाइयां स्थापित हैं। देश में बढ़ते औद्यौगिक विकास से भारत की सभी नदियों का अस्तित्व खतरे में है। लेकिन उसमें गंगा सबसे अधिक खतरनाक स्थिति में हैं। गंगा को बचाने के लिए सरकार की आंख समय समय पर खुलती है। गंगा की रक्षा धर्म और आस्था से जुड़ा है। जिससे इस पर राजनीति भी होने लगती है। गंगा सफाई के नाम पर परियोजनाएं करोड़ों की तैयार होती हैं लेकिन समय के साथ संबंधित फाइलें भी धूल फांकने लगती है। देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बाद अब इस ओर भारत के सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का घ्यान गंगा उद्धार की गया है। चुनावों के दौरान गंगा आरती पर वे नहीं शामिल हो सके थे। लेकिन अपना विजय अभियान खत्म करने के बाद मोदी काशी आकर गंगा आरती में शामिल होकर मां का आशीर्वाद लिया। प्रधानमंत्री से गंगा निर्मलीकरण को लेकर लोगों की अपेक्षा बढ़ गयी थी। अब देखना है कि यह मिशन कितना कामयाब होता है। हलांकि इस राजनीति शुरु हो गयी है। सरकार ने गंगा साफाई पर खास ध्यान दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस संसदीय क्षेत्र वाराणसी से चुने गए उस धर्म, संस्कृति और संस्कारों और सरोकारों का जीवंत नगर काशी का सीधा संबध हमारी गंगा से है। शरीर त्याग के बाद भी लोग मोक्षदायिनी के आंचल में पहुंच मोक्ष की कामना करते हैं। इसलिए प्रधानमंत्री नरंेंद्र मोदी गंगा सफाई पर खास तवज्जो दी है। उनका विजन गंगा को अर्थ जगत से भी जोड़ना है। इसिलिए आम बजट में गंगा सफाई के लिए 2,000 करोड़ की व्यवस्था की गयी है। ‘गंगे नमामि‘ नाम से इस अभियान को चलाया जाएगा। इसके साथ ही इलाहाबाद से हल्दिया तक जल मार्ग विकसित कर माल ढुलाई भी की जाएगी। इससे जहां सस्ते और त्वरित परिवहन की सुविधा उपलब्ध होगी। वहीं पटना, वाराणसी, इलाहाबाद समेत दूसरे छोटे नगरों में जलपोत बना कर व्यसाय किया जा सकता हैं। गंगा निर्मली अभियान के बाद निजी क्षेत्र भी जल मार्ग में पूंजी लगाने को बाध्य होगा। लेकिन सरकार के लिए यह काम बेहद कठिन और चुनौति भरा होगा। गंगा सफाई अभियान की सफलता के लिए सबसे पहला और प्रभावी कदम शहरी और औद्यौगिक कचरे को गंगा में गिरने से रोकना होगा। इसके लिए कानपुर, वाराणसी, पटना और दूसरे शहरों के नालों के पानी के लिए जल संशोधन संस्थानों की स्थापना करनी होगी। कचरे का रुप परिवर्तित कर उसके उपयोग के लिए दूसरा जरिया निकालना होगा। जल संशोधन के जरिए गंदे पानी को साफ कर फिर उसे संबंधित कंपनियों के उपयोग लायक बनाना होगा। जिससे गंगा में गिरती रासायनिक गंदगी को रोका जा सके। इसके लिए शहरी कचरे की भी रि-साइकिलिंग भी एक समस्या होगी। उस पानी का उपयोग फिर कहां किया जाएगा ? यह भी अपने आप में अहम सवाल है। जल संशोधन करने के बाद उसे गंगा मंे छोड़ दिया जाए या फिर उसका दूसरा उपयोग किया जाए। लेकिन यह तभी संभव होगा जब यह संशोधित जल पूरी तरह साफ-सुथरा और गंगा के साथ मानव जीवन व जल जंतुओं को हानि पहुंचाने वाला न साबित हो। यह एक बड़ी समस्या है। जब तक सरकार इस पर दृढ़ राजनीति इच्छा शक्ति के साथ दिल और दिमाग से काम नहीं करती तब तक यह परियोजना फाइलों में सिमट कर रह जाएगी। क्योंकि यही हाल राजीव गांधी की ओर से चलाए गए ‘गंगा एक्शन प्लान‘ का हुआ। राजीव गांधी की मंशा गंगा को पूरी तरफ साफ-सुथरा करना था लेकिन नौकरशाही की अनिच्छा और उदासीनता के चलते यह योजना अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकी। 1985 में राजीव गांधी ने गंगा एक्शन प्लान की शुरुआत की थी। पहले चरण में 25 शहरों में 261 परियोजनाओं को संचालित किया गया था। इसकी शुरुवात 2001 में की गयी थी। जिसमें उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के शहर शामिल थे। इस योजना पर 452 करोड़ रुपये खर्च हुए। दूसरा चरण 2010 में चलाया गया। इसमें 319 परियोजनाएं संचालित की गयी। गंगा सफाई अभियान पर 2000 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। लेकिन गंगा का मैला आंचल साफ सुथरा नहीं हो सका है। इसके पीछे जहां सरकारी उदासीता रहीं वहीं इस अभियान को राजनीति से जोड़ कर भी लाभ लेने की कोशिश की गयी। जिससे यह अभियान सफल नहीं हो सका। हलांकि इस अभियान के असर से इनकार नहीं जा सकता हैं लेकिन गंगा सफाई को लेकर दृढ़ राजनीतिक इच्छा नहीं दिखी। गंगा सफाई को लेकर कांग्रेस को कटघरे में खड़ा किया जाता है। लेकिन हकीकत भी यही है कि गंगा को साफ करने का अभियान राजीव गांधी सरकार ने चलाया था। राजीव गांधी ने खुद इस मिशन की शुरुवात की थी। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2008 में गंगा को राष्टीय नदी घोषित किया। उसी समय इलाहाबाद और हल्दिया के मध्य राष्टीय जलमार्ग घोषित किया। मार्ग 1600 किमी लंबा है। इसी जल मार्ग पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मालवाहक जलपोत चलाने की घोषणा की है। लेकिन इसके लिए गंगा का सतत वाहिनी और गहरी होना जरुरी होगा। गंगा की खुदाई अपने आप में लंबी प्रक्रिया होगी। गर्मी में गंगा में कितना पानी रहता है यह बताने की जरुरत नहीं है। लेकिन सरकार की नदी जोड़ो परियोजना पर अगर अमल किया गया तो गंगा में अनवरत जल प्रवाह की समस्या से निजात मिल जाएगी। सरकार को ‘गंगा नमामि‘ योजना को सीधे मनरेगा से जोड़ कर इसके लिए ग्राम पंचायतों को भी जबाबदेह बनाया जा सकता है। जिससे गंगा रक्षा में एक और कदम जुड़ सकता है। वहीं शवदाह के लिए आधुनिक शवदाह गृहों का निर्माण करना होगा। जल जंतुओं के संरक्षण पर अधिक बल देना होगा। गंगा अभियान को सीधे मनरेगा से जोड़ने पर सरकार को सीधा लाभ होगा। गंगा की सुरक्षा सीधे ग्राम पंचायतों के माध्यम से होगी। मनरेगा योजना के तहत गांवों के किनारे पक्के गंगा घाट बनाए जा सकते हैं जिससे मिट्टी कटान रुक सकता है। अधजले या पूरे शवों का विसर्जन भी प्रतिबंधित किया जाए। गंगा के किनारे हरे वृक्षों का कटान प्रतिबंधित होने से गंगा कटान जहां रुकेगा वहीं किसानों की जमीनों में गंगा की बाढ़ और कटान से आने वाला बदलाव भी खत्म होगा। पर्यावरण रक्षा के लिए गंगा क जल के व्यवसायिक उपयोग पर भी प्रतिबंध लगे। गंगा निर्मलीकरण को एक सतत आंदोलन बनाना होगा। हर व्यक्ति जब तक अपनी सांस्कृतिक धरोहर के प्रति जागरुक नहीं होगा तब तक ‘गंगे नमामि‘ और ‘गंगा एक्शन प्लान‘ जैसी परियोजनाएं फलीभूत नहीं हो सकती हैं। अपने और गंगा के लिए अच्छे दिन लाने के लिए हमें सरकार के साथ कदम में कदम बढ़ा कर आगे आना होगा। भागीरथी की गंगा का आंचल हम साफ सुथरा रख कर ही जल आचमन योग्य बना सकते हैं। दिल्ली में जब से मोदी सरकार अस्तित्व में आयी तभी से संत समाज की ओर से गंगा सफाई चर्चा में हैं। इस पर सियासी बोल भी गूंजने लगे हैं। इस अभियान को सफल बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समिति गठित की है। जिसकी कमान जलसंसाधन मंत्री उमाभारती, शिपिंग परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर, उर्जामंत्री पीयूष गोयल के अलावा पर्यटन मंत्री शामिल हैं। लेकिन गंगा पर राजनीति से बात नहीं बनेगी। गंगा भारत की आत्मा, संस्कृति और संस्कार हैं यह बात हमें समझनी होगी। केवल सरकार के भरोसे हम गंदगी से गंगा को मुक्त नहीं कर सकते। इसके लिए सभी को आगे अना होगा।
लेखकः स्वतंत्र लेखन और पत्रकारिता से जुड़े हैं।
गंगा एक नदी नहीं हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। गंगा का नाम आते ही दिलो दिमाग पर संर्पूण भारतीय वैदिक संस्कृति की तस्वीर उभर आती हैं। उत्तर भारत के लिए गंगा जलदायिनी ही नहीं जीवनदायिनी हैं। हजारों साल पहले गंगा का अवतरण जब धरती पर हुआ था तब उसका मूल उद्देश्य केवल धार्मिक था लेकिन आज के बदले युग में इसकी पूरी परिभाषा और परिणाम ही बदल गया है। आज गंगा से मानव जीवन का रिश्ता गहरा हो चला है। गंगा हमारी अब श्वास हैं। गंगा का होना अब ‘दैहिक अंतिम यात्रा और मोक्षता‘ तक नहीं रह गया है। यह रिश्ता हमारी संस्कृति, संस्कार और सरोकारों से जुड़ गया है। गंगा हमारे लिए सिर्फ बस सिर्फ एक नहीं नदी हमारी आत्मा बन गयीं हैं। गंगा का संबंध पूरे मानव कल्याण से हो गया है। गंगा हमारी धार्मिता आस्था, संस्कृति और हमारे संस्कारों की प्रतीक बन गयी है। एक मां हमंे जन्म देती है लेकिन उत्तर भारत के विशाल मैदानी भू-भाग दूसरी मां गंगा भरण और मोक्ष देती है। इस आंचल के विशाल छांव में 40 करोड़ लोगों के सरोकार सीधे जुड़े हैं। गंगा का महत्व मानव जीवन के इतर जलीय जंतुओं के लिए भी वरदान है। इसका जल जहां अमृत हैं। वहीं जड़ी बूटिया मानव जीवन को संरक्षित करती हैं। पर्यटन और आस्था से जुड़ी होने के नाने लाखों लोगों की आजिविका का साधन और साध्य भी गंगा है। करोड़ों लोगों की जल प्रवाहिनी मां गंगा हमारे आजिविका का मुख्य साधन बन चली हैं। लेकिन बढ़ती आबादी और वैज्ञानिक विकास ने गंगा के अस्तित्व पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। गंगा सिमट रही हैं। गंगा गोमुख यानी उत्तराखंड से निकल कर बंग्लादेश तक का सफर त करती हैं। भौगोलिक आंकड़ों में समझे ंतो गंगा की लंबाई 2510 किमी है। 2071 किमी भारत की सीममा में और बाकि हिस्सा बंग्लादेश में आता है। यह 100 मीटर गहरी हैं। 3,50196 वर्ग मिल के विस्तृत भू-भग पर गंगा फैली हैं। गंगा के उद्गम स्थल की ऊंचाई 3140 मीटर है। इसकी गोद मंें सुंदरवन जैसा डेल्टा है। कृषि के लिए लंबा भूभाग उपलब्ध कराया है। लेकिन बढ़ती आबादी और पदूषण के चलते पर्यावरण का असंतुलन भी खड़ा को गया है। जिससे गंगा का पानी अब आचमन करने योग्य भी नहीं रहा। वैज्ञानिक भविष्यवाणियों को माने तो गंगा का अस्तित्व खतरे में है। पर्यावरण असंतुलन और तापमान में वृद्धि के चलते ग्लेशियर अधिक तेजी से पिघल रहे हैं। एक वक्त ऐसा भी आएगा जब ग्लेशिर खत्म हो जाएंगे और हमारी गंगा का आंचल सूखा हो जाएगा। वह दौर कुछ ऐसा भयावह होगा जब इंसानी जीवन समाप्त हो जाएगा। 2007 में जारी संयुक्तराष्ट संघ की वैज्ञानिक रिपोर्ट में कहा गया था कि बदले पर्यावरण के चलते 2030 में हिमालयी हिमनद जिसे हम ग्लेशियर कहते हैं खत्म हो जाएंगे। जिससे गंगा सूखी हो जाएगी। वह समय धीरे-धीरे हमारे सामने है। इस समय गंगा के किनारे खड़े हो कर उसकी दुर्दशा को देखा जा सकता है। गंगा का निर्मलीकरण अभियान तभी सफल होगा जब इसे सीधे लोगों से जोड़ा जाएगा। इस अभियान को पूरा आंदोलन बनाना होगा। लोगों को यह बताना होगा कि गंगा मानव जीवन के लिए कितनी उपयोगी हैं। इनका अस्तित्व रहना हमारे लिए अपने अस्तित्व बचे रहने जैसा होगा। इस अभियान में सबसे बड़ी बाधा होगी गंगा में गिने वाले शहरी और औद्यौगिक कचरे को रोकना। यह समस्या हमारी सरकार और वैज्ञानिकों के लिए एक चुनौति है। गंगा में प्रतिदिन 2 लाख 90 हजार लीटर कचरा गिरता है। जिससे एक दर्जन बीमारियां पैदा होती हैं। सबसे अधिक कैंसर जैसा खतरनाक रोग भी पैदा होता है। कैंसर के सबसे अधिक मरीज गंगा के बेल्ट से संबंधित हैं। इसके अलावा दूसरी जल जनित बीमारियां हैं। सर्वेक्षणों के अनुसार गंगा में हर रोज 260 मिलियन लीटर रसायनिक कचरा गिराया जाता है। जिसका सीधा संबंध औद्यौगिक इकाईयों और रसायनिक कंपनियों से है। गंगा के किनारे परमाणु संयत्र, रसायनिक कारखने और सुगर मिलों के साथ-साथ छोटे बड़े कुटीर और दूसरे उद्योग शामिल है। कानपुर का चमड़ा उद्योग गंगा का आंचल मैला करने में सबसे अधिक भूमिका निभाता है। वहीं सुगर मिलों का स्क्रैप इसके लिए और अधिक खतना बनता जा रहा है। गंगा गिराए जाने वाले शहरी कचरे का हिस्सा 80 फीसदी होता है। जबकि 15 प्रतिशत औद्यौगिक कचरे की भागीदारी होती है। गंगा के किनारे 150 से अधिक बड़े औद्यौगिक ईकाइयां स्थापित हैं। देश में बढ़ते औद्यौगिक विकास से भारत की सभी नदियों का अस्तित्व खतरे में है। लेकिन उसमें गंगा सबसे अधिक खतरनाक स्थिति में हैं। गंगा को बचाने के लिए सरकार की आंख समय समय पर खुलती है। गंगा की रक्षा धर्म और आस्था से जुड़ा है। जिससे इस पर राजनीति भी होने लगती है। गंगा सफाई के नाम पर परियोजनाएं करोड़ों की तैयार होती हैं लेकिन समय के साथ संबंधित फाइलें भी धूल फांकने लगती है। देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बाद अब इस ओर भारत के सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का घ्यान गंगा उद्धार की गया है। चुनावों के दौरान गंगा आरती पर वे नहीं शामिल हो सके थे। लेकिन अपना विजय अभियान खत्म करने के बाद मोदी काशी आकर गंगा आरती में शामिल होकर मां का आशीर्वाद लिया। प्रधानमंत्री से गंगा निर्मलीकरण को लेकर लोगों की अपेक्षा बढ़ गयी थी। अब देखना है कि यह मिशन कितना कामयाब होता है। हलांकि इस राजनीति शुरु हो गयी है। सरकार ने गंगा साफाई पर खास ध्यान दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस संसदीय क्षेत्र वाराणसी से चुने गए उस धर्म, संस्कृति और संस्कारों और सरोकारों का जीवंत नगर काशी का सीधा संबध हमारी गंगा से है। शरीर त्याग के बाद भी लोग मोक्षदायिनी के आंचल में पहुंच मोक्ष की कामना करते हैं। इसलिए प्रधानमंत्री नरंेंद्र मोदी गंगा सफाई पर खास तवज्जो दी है। उनका विजन गंगा को अर्थ जगत से भी जोड़ना है। इसिलिए आम बजट में गंगा सफाई के लिए 2,000 करोड़ की व्यवस्था की गयी है। ‘गंगे नमामि‘ नाम से इस अभियान को चलाया जाएगा। इसके साथ ही इलाहाबाद से हल्दिया तक जल मार्ग विकसित कर माल ढुलाई भी की जाएगी। इससे जहां सस्ते और त्वरित परिवहन की सुविधा उपलब्ध होगी। वहीं पटना, वाराणसी, इलाहाबाद समेत दूसरे छोटे नगरों में जलपोत बना कर व्यसाय किया जा सकता हैं। गंगा निर्मली अभियान के बाद निजी क्षेत्र भी जल मार्ग में पूंजी लगाने को बाध्य होगा। लेकिन सरकार के लिए यह काम बेहद कठिन और चुनौति भरा होगा। गंगा सफाई अभियान की सफलता के लिए सबसे पहला और प्रभावी कदम शहरी और औद्यौगिक कचरे को गंगा में गिरने से रोकना होगा। इसके लिए कानपुर, वाराणसी, पटना और दूसरे शहरों के नालों के पानी के लिए जल संशोधन संस्थानों की स्थापना करनी होगी। कचरे का रुप परिवर्तित कर उसके उपयोग के लिए दूसरा जरिया निकालना होगा। जल संशोधन के जरिए गंदे पानी को साफ कर फिर उसे संबंधित कंपनियों के उपयोग लायक बनाना होगा। जिससे गंगा में गिरती रासायनिक गंदगी को रोका जा सके। इसके लिए शहरी कचरे की भी रि-साइकिलिंग भी एक समस्या होगी। उस पानी का उपयोग फिर कहां किया जाएगा ? यह भी अपने आप में अहम सवाल है। जल संशोधन करने के बाद उसे गंगा मंे छोड़ दिया जाए या फिर उसका दूसरा उपयोग किया जाए। लेकिन यह तभी संभव होगा जब यह संशोधित जल पूरी तरह साफ-सुथरा और गंगा के साथ मानव जीवन व जल जंतुओं को हानि पहुंचाने वाला न साबित हो। यह एक बड़ी समस्या है। जब तक सरकार इस पर दृढ़ राजनीति इच्छा शक्ति के साथ दिल और दिमाग से काम नहीं करती तब तक यह परियोजना फाइलों में सिमट कर रह जाएगी। क्योंकि यही हाल राजीव गांधी की ओर से चलाए गए ‘गंगा एक्शन प्लान‘ का हुआ। राजीव गांधी की मंशा गंगा को पूरी तरफ साफ-सुथरा करना था लेकिन नौकरशाही की अनिच्छा और उदासीनता के चलते यह योजना अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकी। 1985 में राजीव गांधी ने गंगा एक्शन प्लान की शुरुआत की थी। पहले चरण में 25 शहरों में 261 परियोजनाओं को संचालित किया गया था। इसकी शुरुवात 2001 में की गयी थी। जिसमें उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के शहर शामिल थे। इस योजना पर 452 करोड़ रुपये खर्च हुए। दूसरा चरण 2010 में चलाया गया। इसमें 319 परियोजनाएं संचालित की गयी। गंगा सफाई अभियान पर 2000 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। लेकिन गंगा का मैला आंचल साफ सुथरा नहीं हो सका है। इसके पीछे जहां सरकारी उदासीता रहीं वहीं इस अभियान को राजनीति से जोड़ कर भी लाभ लेने की कोशिश की गयी। जिससे यह अभियान सफल नहीं हो सका। हलांकि इस अभियान के असर से इनकार नहीं जा सकता हैं लेकिन गंगा सफाई को लेकर दृढ़ राजनीतिक इच्छा नहीं दिखी। गंगा सफाई को लेकर कांग्रेस को कटघरे में खड़ा किया जाता है। लेकिन हकीकत भी यही है कि गंगा को साफ करने का अभियान राजीव गांधी सरकार ने चलाया था। राजीव गांधी ने खुद इस मिशन की शुरुवात की थी। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2008 में गंगा को राष्टीय नदी घोषित किया। उसी समय इलाहाबाद और हल्दिया के मध्य राष्टीय जलमार्ग घोषित किया। मार्ग 1600 किमी लंबा है। इसी जल मार्ग पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मालवाहक जलपोत चलाने की घोषणा की है। लेकिन इसके लिए गंगा का सतत वाहिनी और गहरी होना जरुरी होगा। गंगा की खुदाई अपने आप में लंबी प्रक्रिया होगी। गर्मी में गंगा में कितना पानी रहता है यह बताने की जरुरत नहीं है। लेकिन सरकार की नदी जोड़ो परियोजना पर अगर अमल किया गया तो गंगा में अनवरत जल प्रवाह की समस्या से निजात मिल जाएगी। सरकार को ‘गंगा नमामि‘ योजना को सीधे मनरेगा से जोड़ कर इसके लिए ग्राम पंचायतों को भी जबाबदेह बनाया जा सकता है। जिससे गंगा रक्षा में एक और कदम जुड़ सकता है। वहीं शवदाह के लिए आधुनिक शवदाह गृहों का निर्माण करना होगा। जल जंतुओं के संरक्षण पर अधिक बल देना होगा। गंगा अभियान को सीधे मनरेगा से जोड़ने पर सरकार को सीधा लाभ होगा। गंगा की सुरक्षा सीधे ग्राम पंचायतों के माध्यम से होगी। मनरेगा योजना के तहत गांवों के किनारे पक्के गंगा घाट बनाए जा सकते हैं जिससे मिट्टी कटान रुक सकता है। अधजले या पूरे शवों का विसर्जन भी प्रतिबंधित किया जाए। गंगा के किनारे हरे वृक्षों का कटान प्रतिबंधित होने से गंगा कटान जहां रुकेगा वहीं किसानों की जमीनों में गंगा की बाढ़ और कटान से आने वाला बदलाव भी खत्म होगा। पर्यावरण रक्षा के लिए गंगा क जल के व्यवसायिक उपयोग पर भी प्रतिबंध लगे। गंगा निर्मलीकरण को एक सतत आंदोलन बनाना होगा। हर व्यक्ति जब तक अपनी सांस्कृतिक धरोहर के प्रति जागरुक नहीं होगा तब तक ‘गंगे नमामि‘ और ‘गंगा एक्शन प्लान‘ जैसी परियोजनाएं फलीभूत नहीं हो सकती हैं। अपने और गंगा के लिए अच्छे दिन लाने के लिए हमें सरकार के साथ कदम में कदम बढ़ा कर आगे आना होगा। भागीरथी की गंगा का आंचल हम साफ सुथरा रख कर ही जल आचमन योग्य बना सकते हैं। दिल्ली में जब से मोदी सरकार अस्तित्व में आयी तभी से संत समाज की ओर से गंगा सफाई चर्चा में हैं। इस पर सियासी बोल भी गूंजने लगे हैं। इस अभियान को सफल बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समिति गठित की है। जिसकी कमान जलसंसाधन मंत्री उमाभारती, शिपिंग परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर, उर्जामंत्री पीयूष गोयल के अलावा पर्यटन मंत्री शामिल हैं। लेकिन गंगा पर राजनीति से बात नहीं बनेगी। गंगा भारत की आत्मा, संस्कृति और संस्कार हैं यह बात हमें समझनी होगी। केवल सरकार के भरोसे हम गंदगी से गंगा को मुक्त नहीं कर सकते। इसके लिए सभी को आगे अना होगा।
लेखकः स्वतंत्र लेखन और पत्रकारिता से जुड़े हैं।