अपनों से अधिक चिंता वतन की
https://www.shirazehind.com/2014/08/blog-post_195.html
98 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी से बातचीत
नानकचन्द्र त्रिपाठी
मुंगराबादशाहपुर। देश को आजाद कराने के लिये सन्1942 मे अग्रेजी हुकूमत की चूले हिला देने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं.राजाराम पाण्डेय को आज भी वह दिन नही भूला है।उन दिनो उन्हे अपनो से अधिक अपने वतन की चिंता थी।
जिले के मुंगराबादशाहपुर विकास खंड के ग्राम इटहरा मे जन्मे 98 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं.राजाराम पांडेय युवा अवस्था मे ही देश को आजाद कराने के लिये आजादी की जंग मे शामिल हो गये।बचपन मे ही माता पिता दोनो का साया उनके सिर से उठ गया।इसके बाद भी उन्होने अग्रेजो की पराधीनता को अस्वीकार किया।तमाम मुसीबतो से रूबरू होते हुये भी उन्होने आजादी की जंग मे भाग लेना नही छोडा।
सन्1942 मे वाराणसी प्रतापगढ रेलमार्ग पर गौरा रेलवे स्टेषन से थोडा पहले आजादी के दीवानो ने रेल पटरी उखाडकर मालगाडी को रोककर उसमे लदे काफी सामानो को नष्ट कर दिया,जिसमे श्री पांडेय भी एक थे।त्वरित सूचना के कुछ समय बाद पहुंचे पुलिस व अधिकारियो को देख अत्यधिक लोग भाग निकले ,जिसमे श्री पांडेय समेत कुछ लोग पकडे गये ।उन्हे प्रतापगढ जेल मे कैद कर दिया गया।जहां उन्हे आठ माह की कडी कैद की सजा काटनी पडी।इस घटना के पहले भी उन्होने अनेक स्थानो पर गोरी सरकार के विरोध मे बढ चढ कर हिस्सा लिया,जिससे खिन्न अग्रेजो ने उनके घर मे रखे सामानो को तितर वितर कर नश्ट कर दिया।इन सबके बाद भी इन पर कोइ फर्क नही पडा और अग्रेजी हुुकूमत के विरोध मे विभिन्न स्थानो पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे।बुजुर्गियत के बाद भी उनके बोलने की शैली आज भी लोगो को प्रभावित करती है।
श्री पांडेय ने बताया कि उन दिनो उनकी पत्नी अभिलाशी देवी ने भी विचलित न होते हुये घर की जिम्मेदारियो का बखूबी निर्वहन किया।उन दिनो जाति पाति का भेदभाव आज की तरह नही था।प्रत्येक देशवासी वतन के स्वतंत्रता के लिये अपने को तन मन धन से न्यौछावर करने को सदैव तत्पर रहता था।
श्री पांडेय ने लोगो को संदेश स्वरूप कहा कि आने वाली पीढियों से अनुरोध एवं विष्वास है कि इन अमूल्य धरोहर को भविश्य मे संजोकर रखेगे।इसके सम्मान मे किसी प्रकार की आंच नही आने देगे।मेरे अन्य विगत भाइयो की तरह मै भी रहु या न रहु लेकिन मेरी स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठिभूमि मे एक धरोहर स्वरूप अन्तकाल तक सूर्य की भाति चमकता रहे।
नानकचन्द्र त्रिपाठी
मुंगराबादशाहपुर। देश को आजाद कराने के लिये सन्1942 मे अग्रेजी हुकूमत की चूले हिला देने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं.राजाराम पाण्डेय को आज भी वह दिन नही भूला है।उन दिनो उन्हे अपनो से अधिक अपने वतन की चिंता थी।
जिले के मुंगराबादशाहपुर विकास खंड के ग्राम इटहरा मे जन्मे 98 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं.राजाराम पांडेय युवा अवस्था मे ही देश को आजाद कराने के लिये आजादी की जंग मे शामिल हो गये।बचपन मे ही माता पिता दोनो का साया उनके सिर से उठ गया।इसके बाद भी उन्होने अग्रेजो की पराधीनता को अस्वीकार किया।तमाम मुसीबतो से रूबरू होते हुये भी उन्होने आजादी की जंग मे भाग लेना नही छोडा।
सन्1942 मे वाराणसी प्रतापगढ रेलमार्ग पर गौरा रेलवे स्टेषन से थोडा पहले आजादी के दीवानो ने रेल पटरी उखाडकर मालगाडी को रोककर उसमे लदे काफी सामानो को नष्ट कर दिया,जिसमे श्री पांडेय भी एक थे।त्वरित सूचना के कुछ समय बाद पहुंचे पुलिस व अधिकारियो को देख अत्यधिक लोग भाग निकले ,जिसमे श्री पांडेय समेत कुछ लोग पकडे गये ।उन्हे प्रतापगढ जेल मे कैद कर दिया गया।जहां उन्हे आठ माह की कडी कैद की सजा काटनी पडी।इस घटना के पहले भी उन्होने अनेक स्थानो पर गोरी सरकार के विरोध मे बढ चढ कर हिस्सा लिया,जिससे खिन्न अग्रेजो ने उनके घर मे रखे सामानो को तितर वितर कर नश्ट कर दिया।इन सबके बाद भी इन पर कोइ फर्क नही पडा और अग्रेजी हुुकूमत के विरोध मे विभिन्न स्थानो पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे।बुजुर्गियत के बाद भी उनके बोलने की शैली आज भी लोगो को प्रभावित करती है।
श्री पांडेय ने बताया कि उन दिनो उनकी पत्नी अभिलाशी देवी ने भी विचलित न होते हुये घर की जिम्मेदारियो का बखूबी निर्वहन किया।उन दिनो जाति पाति का भेदभाव आज की तरह नही था।प्रत्येक देशवासी वतन के स्वतंत्रता के लिये अपने को तन मन धन से न्यौछावर करने को सदैव तत्पर रहता था।
श्री पांडेय ने लोगो को संदेश स्वरूप कहा कि आने वाली पीढियों से अनुरोध एवं विष्वास है कि इन अमूल्य धरोहर को भविश्य मे संजोकर रखेगे।इसके सम्मान मे किसी प्रकार की आंच नही आने देगे।मेरे अन्य विगत भाइयो की तरह मै भी रहु या न रहु लेकिन मेरी स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठिभूमि मे एक धरोहर स्वरूप अन्तकाल तक सूर्य की भाति चमकता रहे।