बीज शोधन करके ही किसान डालें धान की नर्सरीः रमेश चन्द्र
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जौनपुर। धान की नर्सरी डालने के लिये किसानों को उचित वातावरण तथा समय मिल गया है। विगत कई दिनों से वातावरण में तापमान अधिक व आर्द्रता घट जाने से किसान धान की नर्सरी नहीं डाल पा रहे थे किन्तु इस समय वातावरण नर्सरी डालने के लिये उपयुक्त है। किसान अविलम्ब नर्सरी वेड तैयार करके बीज शोधन के बाद ही नर्सरी डालें। इस सम्बन्ध में किसानों को सलाह देते हुये कृषि विशेषज्ञ रमेश चन्द्र यादव ने बताया कि किसी भी फसल में 80 प्रतिशत रोग एवं कीट बीज व मृदा के चलते लगकर उत्पादन घटा देते हैं जिससे किसानों को लाभ नहीं मिल पाता तो उनका मोह कृषि से भंग हो जाता है। इसी समय नर्सरी डालते समय यदि किसान नर्सरी वेड में बीज डालने के लिये जब बीज को 24 घण्टे के लिये भिगोते हैं। उसी समय जिन क्षेत्रों में पहले जीवाणु झुलसा की समस्या रही हो, वहां के लिये 4 ग्राम स्टेªप्टोसाइक्लिन दवा 25 किग्रा बीज दर एवं अन्य सभी क्षेत्रों के लिये कार्वेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किग्रा बीज दर से पानी में मिलाकर बीज को भिगोवे तो बीज जनित रोगों की समस्या से निजात पाकर भरपूर व गुणवत्ता युक्त उत्पादन व उत्पादकता प्राप्त कर किसान अपनी समृद्धि कर सकते हैं। उन्होंने मृदा उपचार के सम्बन्ध में बताया कि मृदा जनित रोगों से बचाव के लिये 2.5 किग्रा ट्राइकोडर्मा, 2.5 किग्रा स्यूडोमोनास और 2.5 किग्रा पीएसवी कल्चर, 1 कुंतल सड़ी हुई कम्पोस्ट खाद में मिलाकर एक सप्ताह तक छाया में रखकर जूट के बारे में ढंककर हल्की नमी बनाये रखें। अन्तिम जुलाई के समय एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में छिटककर कल्टीवेटर चलाकर खेत में मिला देने से जहां मृदा जनित रोगों से फसल का बचाव तो होता है, वहीं खेतों में अघुलनशील अवस्था में पड़ी फास्फोरस घुलनशील होकर पौधों को भोजन के रूप में प्राप्त हो जाती है जिससे मृदा संरचना में भी सुधाकर होता है। श्री यादव ने कहा कि जहां मृदा बंजर होने से बच जाती है, वहीं किसानों को रासायनिक उर्वरकों की मात्रा भी कम देनी पड़ती है। इसी प्रकार यदि किसान वैज्ञानिक तकनीक से खेती करेंगे तो उत्पादन लागत कम तथा उत्पादन अधिक प्राप्त करके खेती के प्रति वांछित आकर्षण पैदा करके खेती को कम खर्चीली व अधिक लाभकारी बना सकते हैं।