अभी से नही चेते तो बूंद बूंद पानी के लिए तरसगें लोग
https://www.shirazehind.com/2014/06/blog-post_1611.html
लोग यह अहसास भले ही न करें लेकिन पानी उनकी पहुंच से दूर हो रहा है।
सरकारी रिपोर्ट ने खतरे की घंटी बजा दी है और गंभीरता से इस दिशा में न
सोचा गया तो आने वाला समय बूंद-बूंद के लिए तरसाने वाला होगा। वैसे यह भी
एक कड़वा सत्य है कि जिन पर इस संकट से मुकाबले की जिम्मेदारी है, वह सब कुछ
जानकर भी जानने को तैयार नहीं। अफसर भूगर्भ जल संग्रह के नाम पर
खानापूर्ति कर रहे हैं तो इसके लिए बनाए गए कायदे-कानून फाइलों में सिमट कर
रह गए हैं।
भूगर्भ संग्रह की अनदेखी का ही परिणाम है कि 108 विकास खंड अतिदोहित घोषित किए जा चुके हैं और 250 से अधिक को क्रिटिकल घोषित करने की तैयारी है। राजधानी लखनऊ से लेकर आगरा, अलीगढ़, इलाहाबाद, कानपुर, गौतमबुद्ध नगर (नोएडा), गाजियाबाद, वाराणसी, मुरादाबाद, मेरठ, मथुरा और झांसी के सर्वाधिक विकासखंड इस भीषण संकट के चपेट में हैं।
भूगर्भ जल विभाग अधिशासी अभियंता एचबी सामवेदी कहते हैं कि प्रदेश के प्रमुख सरकारी भवनों में अगर भूजल संग्रह की (रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्लांट) की व्यवस्था कर दी जाए तो अरबों लीटर वर्षा के पानी को बेकार बहने से बचाया जा सकता है। लेकिन राजधानी लखनऊ से लेकर मंडल और जिला स्तर तक के हजारों सरकारी भवनों में भूजल संग्रह की धड़ल्ले से अनदेखी की जा रही है। लखनऊ में ही शासन के शीर्ष पांच भवनों में महज बापू भवन और लालबहादुर शास्त्री (एनेक्सी) भवन में रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्लांट लगा है। तीन सचिवालय भवन में रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्लांट लगाने की फाइल दो साल से धूल फांक रही है।
भूगर्भ जल स्रोतों को बढ़ाने के लिए चार वर्ष पूर्व महज 300 वर्गमीटर या उससे अधिक के क्षेत्रफल में बनने वाले भवनों में वाटर हार्वेस्टिंग प्लांट लगाना अनिवार्य किया गया था लेकिन आज तक यह शासनादेश विकास प्राधिकरणों और आवास विकास परिषद क्षेत्रों में सर्वाधिक अनदेखी का शिकार है। विकास प्राधिकरणों में भवनों का नक्शा पास करने दौरान वाटर हार्वेस्टिंग प्लांट की अनिवार्यता मायने नहीं रखती।
भूगर्भ संग्रह की अनदेखी का ही परिणाम है कि 108 विकास खंड अतिदोहित घोषित किए जा चुके हैं और 250 से अधिक को क्रिटिकल घोषित करने की तैयारी है। राजधानी लखनऊ से लेकर आगरा, अलीगढ़, इलाहाबाद, कानपुर, गौतमबुद्ध नगर (नोएडा), गाजियाबाद, वाराणसी, मुरादाबाद, मेरठ, मथुरा और झांसी के सर्वाधिक विकासखंड इस भीषण संकट के चपेट में हैं।
भूगर्भ जल विभाग अधिशासी अभियंता एचबी सामवेदी कहते हैं कि प्रदेश के प्रमुख सरकारी भवनों में अगर भूजल संग्रह की (रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्लांट) की व्यवस्था कर दी जाए तो अरबों लीटर वर्षा के पानी को बेकार बहने से बचाया जा सकता है। लेकिन राजधानी लखनऊ से लेकर मंडल और जिला स्तर तक के हजारों सरकारी भवनों में भूजल संग्रह की धड़ल्ले से अनदेखी की जा रही है। लखनऊ में ही शासन के शीर्ष पांच भवनों में महज बापू भवन और लालबहादुर शास्त्री (एनेक्सी) भवन में रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्लांट लगा है। तीन सचिवालय भवन में रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्लांट लगाने की फाइल दो साल से धूल फांक रही है।
भूगर्भ जल स्रोतों को बढ़ाने के लिए चार वर्ष पूर्व महज 300 वर्गमीटर या उससे अधिक के क्षेत्रफल में बनने वाले भवनों में वाटर हार्वेस्टिंग प्लांट लगाना अनिवार्य किया गया था लेकिन आज तक यह शासनादेश विकास प्राधिकरणों और आवास विकास परिषद क्षेत्रों में सर्वाधिक अनदेखी का शिकार है। विकास प्राधिकरणों में भवनों का नक्शा पास करने दौरान वाटर हार्वेस्टिंग प्लांट की अनिवार्यता मायने नहीं रखती।