गंदे नाले के समान हो गई गोमती मईया

जौनपुर : जिले की प्रमुख नदी गोमती आदि गंगा के नाम से मशहूर है। इस नदी में पिछले डेढ़ दशक में इतना प्रदूषण हुआ कि अब उसका पानी गंदे नाले के समान दिखाई देता है। वजह कि इसमें पशु वध स्थल का खून, विभिन्न कल-कारखानों के तेजाब युक्त पानी तथा गन्दे नालों का प्रदूषित पानी आकर मिलता है। पानी के उपयोग से चर्म रोग का खतरा बढ़ गया है। इस नदी में पानी इतना कम हो गया है कि वह कही इतिहास के पन्नों में न सिमट जाय। जनपद में पांच नदियां बहती हैं। इसमें बसुही और वरुणा तो वर्षाकाल में ही बहती है। पीली नदी का भी वही हाल है लेकिन इन दोनों से थोड़ा हटकर। सई नदी अवश्य बहती रहती है लेकिन उसका पानी कई जगह काला पड़ गया है। रहा-सहा भार गोमती उठाती है। पानी तो इसमें वर्ष भर रहता है लेकिन गर्मी के दिनों में काफी कम हो जाता है। पीलीभीत के गोमत्ताल से निकली यह नदी नेमिशारण्य, लखनऊ, सुलतानपुर होती हुई जौनपुर में प्रवेश करती है। वर्तमान समय में पानी इतना कम हो गया है कि धारा के बीच टापू बन रहे हैं। कई स्थानों पर तो इसका बहाव इतना कम रहता है कि यह एक गन्दे नाले के रूप में दिखाई देता है। इस नदी में सुलतानपुर और जौनपुर का कचरायुक्त पानी बहाया जाता है। यह कम्पनियों के रासायनिक पानी गिरने के कारण प्रदूषित हो गई है। इतना ही नहीं जौनपुर शहर के आभूषण बनाने के कई कारखाने से तेजाब वाला पानी भी इसमें बहा दिया जाता है। शहर के बीचो-बीच स्लाटर हाउस बनाकर उससे निकलने वाला गंदा खून नाले के सहारे नदी में गिराया जाता है। ठीक इसके बगल में पेयजल के लिए रॉ-वाटर पम्प की स्थापना की गई। इन सभी कारणों से नदी का पानी इतना ज्यादा प्रदूषित हो गया है कि वह न तो पीने योग्य है और न ही स्नान के लायक। एक और कारण इस नदी की व्यथा को बढ़ाने में सहायक हो रहा है। लखनऊ एवं उसके आस-पास इसके पानी को रोक दिया जा रहा है। इसके चलते नदी में पानी कम होता जा रहा है और प्रवाह थमता जा रहा है। यदि हालात पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह पौराणिक नदी भी इतिहास के पन्नों में सिमटने को विवश होगी।

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