नर्क से भी खराब है मेरा धंधा


जिल्लत की जिंदगी से मुक्ति के लिए रातभर नाचती हैं

वाराणसी. प्राचीन परंपराओं वाली इस धार्मिक नगरी में होली की रात को एक अनोखी परंपरा वर्षों से मनाई जाती है। कश्मीरी गंज के अहिरावीर बाबा के सामने नगरवधुएं (बारबालाएं) पूरी रात नृत्य करती हैं। इनका मानना है कि इस जन्म में जो बदनामी का दाग लगा है, जीवन में कभी धुल नहीं पाएगा। यहां नाचने वाली नगरवधुएं पैसा नहीं लेती हैं। वे अपनी स्वेच्छा से बाबा के सामने नृत्य करती हैं। नगरवधुओं के अलावा दूर-दूर से आठ किन्नर भी इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए आते हैं। सोनी (बदला हुआ नाम) ने बताया कि यह जीवन नर्क से भी खराब है। हर किसी की नजर में यह एक अश्लील काम है। कोई इस दर्द को नहीं समझता कि यह जीवन मेरे लिए मौत से भी बदतर है। उन्होंने कहा कि संगीत एक साधना है और इसी साधना के जरिए वह सभी बाबा को मनाना चाहते हैं। दूसरी नगरवधू मुन्नी (बदला हुआ नाम) ने बताया कि तन की खूबसूरती से पेट की आग से बुझती है। लोग इन्हें इस्तेमाल और भोग की वस्तु समझते हैं। मंदिर के सदस्य लखन लाल गुप्ता ने बताया कि सन् 1962 से इस परंपरा को यह लोग आगे बढ़ा रहे हैं। नगरवधुएं अपने जलालत भरे जीवन की मुक्ति की कामना से यहां आती हैं। दरअसल, होली के पावन पर्व पर इन नगरवधुओं को कोई घर की चौखट के अंदर आने नहीं देना चाहता, ऐसे में भगवान ही इनका सहारा है। यह अपनी साधना बाबा को समर्पित कर मुक्ति पाना चाहती हैं। उन्होंने बताया कि इन लोगों का उत्साह बाबा के चरणों में देखते ही बनता है। पूरी श्रद्धा के साथ यह बाबा के दरबार में आती हैं। रामेश्वर दयाल ने बताया कि राजा महराजाओं के समय से ये परंपरा काशी में चली आ रही है। इतिहास में राजा मानसिंह ने जब मशाननाथ का मंदिर बनवाया था, भजन के लिए मणिकर्णिका घाट पर कोई भी कलाकार नहीं पहुंचा। इन नगर वधुओं ने ही बाबा की साधना में भजन-कीर्तन किया था। उसी के बाद से इनका प्रचलन परंपराओं में बदलता चला गया, जो अब तक चला आ रहा है।

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