नई दिल्ली। आजादी के बाद के तीन चुनाव जहां नेहरू के नाम रहे, वहीं चौथे चुनाव में इंदिरा की शख्सियत एक गूंगी गुड़िया के जैसी थी। लेकिन 5वें चुनाव में परिस्थितियां बदल चुकी थीं। 1971 का आम चुनाव पूरी तरह से इंदिरा गांधी के नाम रहा। ये चुनाव इंदिरा के लिए ताकत दिखाने का भी एक मौका थे। उन्होंने लोगों के सामने गरीबी हटाओ का नारा दिया और मतदाताओं ने भी इंदिरा को सिर आंखों पर बिठाया।
1971 का लोकसभा चुनाव सिर्फ और सिर्फ इंदिरा गांधी के नाम था। पहली बार इंदिरा गांधी अपने बल पर सत्ता में आईं। गरीबी हटाओ के नारे के साथ इंदिरा बिना शर्त कांग्रेस की सर्वेसर्वा बन गईं। 1971 में पहली बार लोकसभा चुनाव, विधानसभा के चुनावों से पहले कराए गए। इसकी एक खास वजह थी।
इंदिरा गांधी जब से प्रधानमंत्री बनी थीं, कांग्रेस में फूट की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी। इंदिरा गांधी पार्टी पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती थीं। लेकिन कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं को ये मंजूर नहीं था। राष्ट्रपति के मुद्दे पर भी पार्टी और इंदिरा के बीच मतभेद पैदा हो चुका था। पार्टी के आधिकारिक प्रत्याशी नीलम संजीवा रेड्डी थे, जबकि इंदिरा गांधी ने वीवी गिरी को अपना समर्थन दिया। आखिरकार वीवी गिरी की ही जीत हुई।
इतना ही नहीं जनता में भी धीरे-धीरे इंदिरा अपनी छाप छोड़ रही थीं। हरित क्रांति के अच्छे नतीजे मिल रहे थे। खाद्य समस्या लगभग खत्म हो रही थी। ऐसे में कांग्रेस के सीनियर नेता पार्टी और खासतौर से इंदिरा गांधी पर अपना नियंत्रण रखना चाहते थे। लेकिन इंदिरा इन सभी नेताओं से छुटकारा चाहती थीं। उन्होंने मोरारजी देसाई को भी बेदखल कर दिया। इसके बाद कांग्रेस पार्टी दो फाड़ हो गई। इंदिरा गांधी ने इंदिरा कांग्रेस पार्टी बनाकर चुनाव में उतरने का फैसला किया।
1971 के चुनाव से पहले कांग्रेस के भीतर ही गुटबाजी शुरू हो चुकी थी। लेकिन चुनाव में इंदिरा की मुहिम रंग लाई और जनता ने उन्हें भारी बहुमत से जिताया। 1971 का चुनाव दो नारों की वजह से याद किया जाता है। चुनावी रैलियों में या तो गरीबी हटाओ या फिर इंदिरा हटाओ जैसे जुमले सुनने को मिलते थे। इंदिरा गांधी ने 'गरीबी हटाओ' का नारा दिया। लेकिन विरोधियों ने 'इंदिरा हटाओ' की मुहिम चलाई। इस पर इंदिरा गांधी अपनी रैलियों में ये कहना नहीं भूलती थीं कि वो कहते हैं 'इंदिरा हटाओ' और हम कहते हैं 'गरीबी हटाओ'।
दरअसल चुनाव से पहले इंदिरा को पार्टी के भीतर उठ रहे विरोध के अलावा एक और मुश्किल का सामना करना पड़ा। उन्होंने बैंकों का राष्ट्रीयकरण करना शुरू कर दिया था। प्रीवि पर्स को खत्म कर दिया। सरकार के इन कामों पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी। इस चुनौती का सामना करते हुए इंदिरा ने समय से चौदह महीने पहले संसद भंग कर दी और जनता के बीच जाने का फैसला कर लिया।
चुनाव में इंदिरा ने दिन-रात एक कर दिया। प्रचार के दौरान उन्होंने 36 हजार मील की दूरी तय की और 300 सभाओं को संबोधित किया। गरीबों, भूमिहीनों, मुस्लिम और दलित वर्ग का पूरा वोट इंदिरा कांग्रेस के खाते में गया। जबकि कांग्रेस के पुराने बड़े दिग्गजों की पार्टी को एक चौथाई से भी कम सीटें नसीब हुईं। चुनाव में इंदिरा कांग्रेस ने 352 सीटों पर जीत हासिल की। विपक्ष को भी इंदिरा की लीडररशीप को मानना पड़ा। हालांकि चुनाव जीतने के बाद भी इंदिरा के सामने पाकिस्तान से युद्ध जैसी एक और चुनौती इंतजार कर रही थी। दिसंबर 1971 में बांग्लादेश को मुक्त कराने के बाद तो वो 'दुर्गा' के रूप में मशहूर हो गईं।
1971 पांचवीं लोकसभा
कुल सीटें 518
इंडियन नेशनल कांग्रेस 352
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया(मार्क्सवादी)-
25
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया- 23