'आप' यानी पुरानी पार्टियों को मिली नसीहत
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दिल्ली में आप, यानी आम आदमी पार्टी का उभार और उसकी
हैसियत के कई मायने हैं। यह देश में आदर्श व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालने
का दावा रखने वाली तमाम पुरानी पार्टियों के लिए नसीहत है। कल्पना
कीजिए,अगर आप के उम्मीदवार बाकी तीन राज्यों में भी होते तो क्या होता।
लोकतंत्र का यह बुनियादी मिजाज अरसे बाद सामने आया है कि जनता, लोकतंत्र में मालिक होती है और उसके साथ हमेशा यही सलूक होना चाहिए। ऐसा नहीं कि नेताजी एक चुनाव के बाद फिर अगले चुनाव में ही इलाके में नजर आ रहे हैं। हमेशा जनता से सीधा सरोकार रखना होगा, उनकी बुनियादी जरूरतें पूरी करनी होंगी। सबसे बड़ी बात इन जरूरतों के पहचान की है। यह बड़े-बड़े मॉल, चमचमाती सड़क व हाईटेक आईटी बिल्डिंग तक सीमित नहीं होनी चाहिए। बेशक,ये बेहद जरूरी हैं मगर बस इन्हीं के आगे मूलभूत सुविधाओं को किनारा नहीं दिया जा सकता है।
-आप के नेताओं ने यही किया। चमचमाती दिखने वाली दिल्ली में बिजली, पानी, अपराध,भ्रष्टाचार
-रोजमर्रा के मसलों को मुददा बनाया। कामयाब रहे।
कुछ और बातें.
नौजवान, नए चेहरे राजनीति में तेजी से सामने आए हैं। शिक्षा अपना असर दिखाई है।
बहरहाल,आप, सबकी चुनौती है। खुद अपने लिए भी है। उसने जो कहा है,करना होगा। चुनाव जीतने की परंपरागत हिसाब-किताब वाली पार्टियों को अपना रवैया बदलना होगा। वरना आगे के चुनावों में उनको साफ करने केलिए हर जगह झाड़ू मौजूद रहेगा। यह हरघर में पाया जाता है।
लोकतंत्र का यह बुनियादी मिजाज अरसे बाद सामने आया है कि जनता, लोकतंत्र में मालिक होती है और उसके साथ हमेशा यही सलूक होना चाहिए। ऐसा नहीं कि नेताजी एक चुनाव के बाद फिर अगले चुनाव में ही इलाके में नजर आ रहे हैं। हमेशा जनता से सीधा सरोकार रखना होगा, उनकी बुनियादी जरूरतें पूरी करनी होंगी। सबसे बड़ी बात इन जरूरतों के पहचान की है। यह बड़े-बड़े मॉल, चमचमाती सड़क व हाईटेक आईटी बिल्डिंग तक सीमित नहीं होनी चाहिए। बेशक,ये बेहद जरूरी हैं मगर बस इन्हीं के आगे मूलभूत सुविधाओं को किनारा नहीं दिया जा सकता है।
-आप के नेताओं ने यही किया। चमचमाती दिखने वाली दिल्ली में बिजली, पानी, अपराध,भ्रष्टाचार
-रोजमर्रा के मसलों को मुददा बनाया। कामयाब रहे।
कुछ और बातें.
नौजवान, नए चेहरे राजनीति में तेजी से सामने आए हैं। शिक्षा अपना असर दिखाई है।
बहरहाल,आप, सबकी चुनौती है। खुद अपने लिए भी है। उसने जो कहा है,करना होगा। चुनाव जीतने की परंपरागत हिसाब-किताब वाली पार्टियों को अपना रवैया बदलना होगा। वरना आगे के चुनावों में उनको साफ करने केलिए हर जगह झाड़ू मौजूद रहेगा। यह हरघर में पाया जाता है।