यूपी के बाहुबली नेताओ की जन्म कुण्डली
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यूपी में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी ने सुलतानपुर लोकसभा सीट
पर पूर्व में घोषित प्रत्याशी को बदलकर आपराधिक पृष्ठभूमि के बाहुबली पूर्व
सांसद अतीक अहमद को टिकट दे दिया। सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता रामगोपाल
यादव ने यहां बताया कि पार्टी ने सुलतानपुर लोकसभा सीट से पूर्व में घोषित
प्रत्याशी शकील अहमद के स्थान पर अतीक अहमद को उम्मीदवार बनाया है।
गौरतलब है कि वर्ष 2004 में फूलपुर सीट से सपा के सांसद रहे अतीक पर
बसपा विधायक राजूपाल की हत्या समेत कई जघन्य मामलों के 30 से ज्यादा केस
दर्ज हैं।
माफिया सरगना से राजनेता बने अतीक को सपा ने वर्ष 2008 में पार्टी ने
निष्कासित कर दिया था। उन्होंने वर्ष 2009 में हुआ पिछला लोकसभा चुनाव अपना
दल के टिकट पर प्रतापगढ़ से लड़ा था जिसमें उन्हें पराजय का सामना करना
पड़ा था। गैंगस्टर एक्ट से जुड़े मामले में फरार घोषित होने के बाद जनवरी
2008 में दिल्ली में गिरफ्तार किये गये अतीक को पिछले साल फरवरी में जमानत
मिल गई थी।
बीएचयू राजनीति विभाग के वरिष्ठ प्रो. कौशल किशोर मिश्रा ने विशेष बातचीत
में बताया कि मुलायम सिंह यादव का यह कदम क्षेत्रीय पार्टियों के अस्तित्व
पर संकट खड़ा करेगा। सपा को अतीक के रूप में जयनारायण का प्रतिक दिख रहा है।
कुछ दिनों बाद लोहिया का प्रतिक डॉन मुख़्तार अंसारी में दिखेगा। जहां एक
ओर सुप्रीम कोर्ट संवैधानिक रूप से माफियाओं पर नकेल कसने की तैयारी कर रहा
है, वहीं सपा का अतीक अहमद को टिकट देना, इस बात का संकेत है कि
लोकतांत्रिक व्यवस्था में अपराधियों की भागीदारी चाहते हैं। वहीं बीजेपी के
प्रदेश प्रवक्ता अशोक पाण्डेय ने बताया कि सपा ने तय कर लिया है कि प्रदेश
भर के माफियाओं की शरणदाता वही बनेगी। कांग्रेस के विधायक अजय राय ने
बताया कि मुजफ्फरनगर दंगों का पाप सपा अतीक अहमद को टिकट देकर धोना चाहती
है। मुस्लिम वोट बैंक पर सपा की नजर है। बीजेपी विधायक रविन्द्र जयसवाल ने
बताया कि अपराधियों के जरिए सपा राज करना चाहती है। कौमी एकता दल के राष्ट्रिय अध्यक्ष अफजल अंसारी ने बताया कि यदि मुख़्तार
अंसारी बनारस से नहीं लड़ेंगे तो मऊ से वह चुनाव लड़ सकते हैं। उनके वाराणसी
संसदीय सीट से चुनाव लड़ने की बात पर उन्होंने कहा कि मऊ का घोसी क्षेत्र से
वह 4 बार विजयी हुए हैं। वहां के लोगों की मंशा है कि मुख्तार वहां से
लड़े, ऐसी स्थिति में उनकी बेगम अफशा वाराणसी संसदीय सीट से चुनाव लड़ेंगी।
पिछले लोक सभा चुनाव में मुख़्तार ने डॉ जोशी को कड़ी टक्कर दी थी।
1988 में मुख़्तार के जीवन में बदलाव आया और राजनीतिक एंट्री न मिलने
के कारण ठेकेदारी में घुस गए। मंडी परिषद की ठेकेदारी को लेकर मुख़्तार
अंसारी ने सचिदानंद राय की हत्या कर दी। पहली बार मुख़्तार का नाम बड़े
क्राइम में पुलिस फाइल में दर्ज हुआ। इसी दौरान कट्टर दुश्मन त्रिभुवन सिंह
के कांस्टेबल भाई राजेंद्र सिंह की हत्या बनारस में कर दी गई, जिसमें
मुख़्तार का नाम ही सामने आया। 1991 में चंदौली में मुख़्तार पकड़े गए, लेकिन
रास्ते में दो पुलिस वालों को गोली मार फरार हो गए। इस घटना के बाद बताया
जाता है मुख़्तार ने अपने गैंग को दिल्ली और पंजाब से मजबूत किया। सरकारी
ठेके, शराब के ठेके, कोयले के काले कारोबार को बाहर रहकर हैंडल करना शुरू
किया। 1996 में मुख़्तार का नाम एक बार फिर सुर्ख़ियों में आया, जब एएसपी उदय
शंकर पर जानलेवा हमला हुआ। 1997 में पूर्वांचल के सबसे बड़े कोयला व्यवसायी
रुंगटा के अपहरण के बाद मुख़्तार अंसारी का नाम अपराध की दुनिया में पूरे
देश पर छा गया।
घर की राजनीतिक छवि गड़बड़ाने के बाद भाई अफजल अंसारी कृष्णानद राय से
चुनाव हार जाते थे। बताया जाता है कि बृजेश और कृष्णानद राय की नजदीकियां
इस बीच काफी बढ़ गई थी। भाई की हार से बौखलाए मुख़्तार ने शार्प शूटर मुन्ना
बजरंगी और अति कुर्रह्मान उर्फ़ बाबू की मदद से गोडउर के पास विधायक
कृष्णानद राय की हत्या उनके पांच साथियों के साथ करा दी थी। बताया जाता है
कि पूर्वांचल की धरती पर पहली बार बृजेश गैंग को दहशत में डालने के लिए
AK-47 का इस्तेमाल किया गया था। 2005 में हुए मउ दंगे के बाद मुख़्तार
अंसारी ने समर्पण कर दिया। पूरा नेटवर्क जेल से संचालित होने लगा। बताया
जाता है कि 2001 में बृजेश सिंह ने गाजीपुर के उसरी चट्टी के पास ट्रक से
ओवर टेक कर मुख़्तार पर हमला किया था, इसमें ड्राइवर की मौत हो गई, लेकिन वह
बच गए। जेल में रहने के बाद गाजीपुर में सबसे करीबी भीम सिंह काले कारोबार
को संभालते रहे। इस बीच पूर्वांचल में वसूली, शराब ठेके, सरकारी टेंडर,
कोयला को लेकर कई बार खुनी जंग दोनों गैंग के बीच हुई।
इस बार के विधान सभा चुनाव में बृजेश सिंह को बिंदो की क्षेत्रीय
पार्टी भारतीय समाज पार्टी ने सैयदराजा विधानसभा (चंदौली) से मैदान में
उतारा था। यह उनकी पहली राजनैतिक पारी थी। 27 अगस्त 1984 में धरहरा गांव
में रविन्द्र सिंह की हत्या हरिहर सिंह और पांचू सिंह ने राजनीतिक वर्चस्व
के कारण कर दी थी। रविन्द्र सिंह के बेटे बृजेश सिंह ने उस समय इंटर की
परीक्षा अच्छे अंकों से पास की थी। वह यूपी कॉलेज में बीएससी का एक होनहार
छात्र भी रहा है।
बृजेश सिंह ने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए एक साल तक इंतजार
किया और वह घड़ी आ गई जब हरिहर सिंह से उसका सामना हुआ। 27 मई 1985 को बृजेश
सिंह ने हरिहर सिंह की हत्या कर दी। पहली बार इस होनहार लड़के का नाम पुलिस
डायरी में दर्ज हुआ। बृजेश सिंह के पिता की हत्या में गांव के कुछ लोगों
का हाथ भी था। 9 अप्रैल 1986 को सिकरौरा गांव में बृजेश ने एक बार फिर
साथियों के साथ मिलकर उन्हीं पांच लोगों को गोलियों से भून दिया। इस घटना
में पहली बार बृजेश गिरफ्तार हुए। इस दौरान बृजेश सिंह की मुलाकात गाजीपुर
के मुडियार गांव में त्रिभुवन सिंह से हुई। धीरे-धीरे यह गैंग पूर्वांचल
में सक्रीय होने लगा। दोनों ने मिलकर यूपी में शराब, रेशम और कोयला के धंधे
के काले खेल में उतर गए। इस माफिया डॉन का एम्पायर धीरे-धीरे बंगाल,
मुंबई, बिहार, उड़ीसा तक फैल गया। इस दरमियान वह अंडर ग्राउंड था। इसी समय
एक गैंग और तेजी से उभर रहा था त्रिभुवन सिंह के पिता के हत्या आरोपी मकनू
सिंह और साधू सिंह का। गाजीपुर में मकनू की हत्या कर दी जाती है और आरोप
रणजीत सिंह और साहब सिंह के ऊपर गया। इसी जगह से साधू सिंह और बृजेश गैंग
के बीच खूनी जंग की शुरुआत हो गई।
अक्टूबर 1988 वाराणसी पुलिस लाइन साधू सिंह ने त्रिभुवन सिंह के भाई
हेड कांस्टेबल राजेंद्र सिंह की हत्या कर दी। इस मामले में कैंट थाने में
साधू सिंह, मुख़्तार अंसारी के साथ गाजीपुर के ही भीम सिंह पर मुकदमा दर्ज
हुआ। 1990 में त्रिभुवन के भाई की हत्या का बदला लेने के लिए बृजेश और
त्रिभुवन सिंह ने पुलिस बनकर गाजीपुर अस्पताल में साधू सिंह को इलाज के
दौरान गोलियों से छलनी कर दिया। उस समय यह यूपी का सबसे चर्चित कांड रहा।
साधू सिंह के गैंग की कमांड सीधे मुख़्तार अंसारी के पास आ गई। बृजेश सिंह
ने मुंबई के जेजे हॉस्पिटल में घुसकर गावली गिरोह के शार्प शूटर हलधंकर
समेत चार पुलिस वालों की हत्या कर दी। इसके बाद बृजेश ने पीछे मुड़कर नहीं
देखा। वह यूपी समेत देश के कई राज्यों पर राज करता रहा।
पूर्वांचल का शार्प शूटर मुन्ना बरजरंगी भी भर चुका है राजनीति की हुंकार
मुन्ना बजरंगी को अपना दल ने मडियाहू विधान सभा से चुनाव में टिकट
दिया था। इस राजनीति के खेल में जनता के सामने उनकी पहली भागीदारी थी,
जिसमें उसकी हार हुई।
मुन्ना बजरंगी ने अपनी भूमिका यूपी के अंदर कांट्रेक्ट किलर के रूप
में बनाई और बहुत जल्दी बृजेश और मुख़्तार अंसारी के पैरलर तीसरे डॉन के रूप
में उभर आया। प्रेम प्रकाश उर्फ़ मुन्ना बजरंगी ने पहली बार 1982 में
सुरेरी गांव में मारपीट की घटना को अंजाम दिया और पुलिस की डायरी में धारा
147,148,323 आईपीसी के तहत मुकदमा दर्ज हुआ। 1984 में रामपुर थाने में
मुन्ना के खिलाफ पहली बार हत्या और डकैती का मुदमा दर्ज हुआ। मुन्ना के
क्राइम का ग्राफ तेजी से बढ़ने लगा और 1993 में उसने जौनपुर के लाइन बाज़ार
थाना के कचहरी रोड पर दिन दहाड़े भाजपा नेता राम चन्द्र सिंह और उनके सरकारी
गनर अब्दुल्लाह समेत तीन लोगों के हत्या में कर दी।
इसके बाद मुन्ना ने वाराणसी का रुख कर लिया और कई वारदातों को अंजाम
दिया। 1995 में उसने कैंट इलाके में छात्र नेता राम प्रकाश शुक्ल की हत्या
कर दी। सबसे बड़ी वारदात को अंजाम देते हुए मुन्ना बजरंगी ने 1996 में
रामपुर थाना के जमालपुर के पास AK-47 से ब्लाक प्रमुख कैलाश दुबे पंचायत
सदस्य राजकुमार सिंह समेत तीन लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। उसने अपना
नेटवर्क धीरे-धीरे देश की राजधानी दिल्ली तक बना लिया और 1998 से 2000 के
बीच उसने कई घटनाओं को वहां भी अंजाम दिया। मुन्ना की छवि यूपी के अंदर एक
कांट्रेक्ट किलर की बन गई। व्यापारियों, डॉक्टरों और सरकारी ठेकों में
मुन्ना का हस्तक्षेप होने लगा।
2002 के बाद मुन्ना ने एक बार फिर से पूर्वांचल में पकड़ बनाने के लिए
वाराणसी के चेतगंज में स्वर्ण व्यवसायी की दिन दहाड़े गोली मारकर हत्या कर
दी। इस समय तक मुन्ना का अपराध की दुनिया में मुख़्तार अंसारी के लिए काम
करने लगा। 2005 में मुन्ना बजरंगी ने मुख़्तार अंसारी से बीजेपी विधायक
कृष्णानंद राय की हत्या का कांट्रेक्ट लिया और गोडउर के पास घटना को अंजाम
भी दिया। इस घटना में मुन्ना ने अपराध के नई इबारत को छुआ और विधायक समेत 7
लोगों को मौत के घाट उतार दिया। फ़िलहाल मुन्ना कुछ मामलों में बरी भी हो
चुका है। बताया जाता है कि इस घटना के बाद मुन्ना मुख़्तार का करीबी हो गया
और पूर्वांचल के कई जिलों में वसूली का काम वही देखने